भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा 27 जून से शुरू हो चुकी है। यह यात्रा 9 दिनों तक चलती है। भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई भगवान बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी के घर श्रीगुंडिचा मंदिर जाते हैं। इस यात्रा में देश, विदेश से लोग शामिल होते हैं ताकि भगवान के दर्शन कर पाएं और उनका आशीर्वाद पा सकें। रथ यात्रा के दौरान कई परंपराएं निभाई जाती हैं जिसमें से एक छेरा पहरा की रस्म है। आइए जानते हैं क्या होता है छेरा पहरा की रस्म?
छेरा पहरा रथयात्रा का सबसे प्रथम अनुष्ठान है। इस रस्म में गजपति राजा सोने के झाड़ू से रथों के आग झाड़ू लगाते हैं और चंदन मिश्रत जल का छिड़काव करते हैं और इसके बाद भगवान का रथ खींचा जाता है। इस काम को हर कोई नहीं कर सकता है। यह काम सिर्फ राजा के वंशज ही कर सकते हैं जिन्हें गजपति कहा जाता है। गजपति को भगवान जगन्नाथ का पहला सेवक माना जाता है। इस परंपरा के माध्यम से यह बताया जाता है कि भगवान के घर में सब एक सामान है।
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कैसे शुरू हुई छेरा पहरा की परंपरा

प्राचीन कथा के मुताबिक, राजा इंद्रद्युम्न ने भगवान जगन्नाथ पुरी का मंदिर बनवाया और रथयात्रा निकालने की परंपरा शुरू की। उन्होंने खुद सोने की झाड़ू से रथयात्रा मार्ग की सफाई की। इसके बाद से यह परंपरा चली आ रही है। आज भी राजवंश के लोग इस परंपरा को निभा रहे हैं। सोने को सबसे पवित्र माना जाता है। साथ ही सोने को सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
मौसी के घर जाते हैं भगवान जगन्नाथ

हर साल भगवान जगन्नाथ की यात्रा श्रीगुंडिचा मंदिर पहुंचती हैं। इस मंदिर में भगवान 7 दिनों के लिए रहते हैं और इसी मंदिर को उनकी मौसी का घर माना जाता है। इन 7 दिनों तक उनकी पूजा, भोग और सेवा उसी तरह से होती है जैसे श्री मंदिर में होती है। 7 दिन बाद बहुदा यात्रा के दौरान भगवान पुरी के श्रीमंदिर लौटते हैं।
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रथ यात्रा का महत्व
आमतौर पर भगवान जगन्नाथ अपने मंदिर के गर्भगृह में रहते हैं और केवल इस दिन बाहर निकलकर अपने भक्तों को दर्शन देते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो भी व्यक्ति भगवान के रथ को खींचता है उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।