पुरी के भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा न सिर्फ एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि एक गहरा सांस्कृतिक और आध्यात्मिक अनुभव भी है। हर साल आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को भगवान जगन्नाथ, बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर सवार होकर पुरी के श्रीमंदिर से निकलते हैं और गुंडिचा मंदिर की ओर जाते हैं। गुंडिचा मंदिर को भगवान की मौसी का घर माना जाता है।
बता दें कि 28 जून पर आज भगवान जगन्नाथ सहित तीनों भाई-बहन गुंडिचा मंदिर पहुंचेंगे जहां वह 7 दिनों तक निवास करेंगे। इन 7 दिनों में भगवान जगन्नाथ, बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के लिए विशेष अनुष्ठान किए जाएंगे।
गुंडिचा मंदिर में 7 दिन रुकते हैं भगवान
भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा गुंडिचा मंदिर में कुल 7 दिन तक ठहरते हैं। इस प्रवास को ‘गुंडिचा यात्रा’ या ‘नव दिन यात्रा’ भी कहा जाता है, जिसमें भगवान अपने भक्तों को आम दर्शन देने के लिए बाहर आते हैं। इस समय मंदिर को बहुत ही सुंदर ढंग से सजाया जाता है और भगवान के लिए विशेष भोग, सेवाएं और पूजा होती हैं। यह समय भक्तों के लिए बहुत शुभ और पवित्र माना जाता है।
यह भी पढ़ें: मंगला आरती से मजार पर रुकने तक, जानें जगन्नाथ रथ यात्रा के जरूरी पड़ाव
गुंडिचा मंदिर में रुकने के दौरान भगवान जगन्नाथ और उनके भाई बहन सहित सभी देवी-देवताओं के लिए रोज अलग-अलग पूजा अनुष्ठान होते हैं। जिस आम व्यक्ति के जीवन में मौसी के घर जानें पर हर दिन अच्छे पकवान और आतिथ्य किया जाता हैए, उसी तरह गुंडिचा मंदिर में ‘महाप्रसाद’ की व्यवस्था होती है, जिसमें विशेष रूप से पका हुआ चावल, दाल, सब्जी और मीठे पकवान भगवान को चढ़ाए जाते हैं। भगवान की सेवा में लगे सेवकों द्वारा विशेष वेशभूषा और श्रृंगार किया जाता है। साथ ही भक्तों के लिए कीर्तन, भजन और कथा आदि का आयोजन होता है। इस पूरे सप्ताह मंदिर का वातावरण भक्ति-भाव से भरा होता है।
7 दिनों के बाद श्री मंदिर लौटते हैं भगवान
इन सात दिनों के बाद, भगवान रथों पर चढ़कर वापस श्रीमंदिर लौटते हैं। इस वापसी यात्रा को ‘बहुड़ा यात्रा’ कहा जाता है। बहुड़ा यात्रा, रथ यात्रा के ठीक नौवें दिन आयोजित होती है। यह भी एक भव्य उत्सव होता है। भगवान जब लौटते हैं, तो रास्ते में एक खास स्थान आता है- जिसे ‘अर्धपथ रास्ता’ कहते हैं, वहां मां लक्ष्मी प्रतीकात्मक रूप में भगवान से नाराज होकर आती हैं और सवाल करती हैं कि वह बिना बताये कहां चले गए थे। इसे ‘लक्ष्मी नारायण मिलन’ का भावपूर्ण रूप कहा जाता है।
भगवान के श्रीमंदिर लौटने के बाद, वह तुरंत मंदिर में प्रवेश नहीं करते। उन्हें मंदिर में प्रवेश देने से पहले ‘सुनाबेशा’ (सोने का श्रृंगार) होता है, जिसमें भगवान को सोने के आभूषणों से सजाया जाता है और वह सिंहासन पर बैठते हैं। यह दिन बहुत खास माना जाता है क्योंकि लाखों श्रद्धालु इस सुनाबेशा के दर्शन के लिए उमड़ पड़ते हैं।
यह भी पढ़ें: नंदिघोष: भगवान जगन्नाथ का भव्य रथ, निर्माण से मान्यताओं तक सब जानें
इसके बाद एक और विशेष पूजा ‘नीलाद्री बिजे’ होती है। यह दिन भगवान जगन्नाथ के फिर से श्रीमंदिर में लौटने और सिंहासन पर विराजमान होने का प्रतीक होता है। इस दिन देवी लक्ष्मी भगवान से नाराजगी खत्म करती हैं और उन्हें भीतर प्रवेश देती हैं। भक्तों के लिए यह दिन बेहद हर्ष और श्रद्धा का होता है, क्योंकि भगवान की अपनी यात्रा पूरी होती है और वह पुनः अपने मूल स्थान पर विराजमान हो जाते हैं।