जैन धर्म में पर्यूषण को सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र धार्मिक पर्व माना जाता है। यह पर्व जैन धर्म के अनुयायियों के लिए आत्मनिरीक्षण, तपस्या और संयम का समय के रूप में माना जाता है, जिसमें वे अपने मन, वचन और कर्म की शुद्धि करते हैं। इस साल पर्यूषण पर्व की शुरुआत 21 अगस्त से होगी। यह पर्व 10 दिनों तक चलता है। पर्यूषण के शाब्दिक अर्थ को 'अपने भीतर ठहरना' से जोड़ा जाता है। मान्यताओं के अनुसार, इसका उद्देश्य इंद्रियों और इच्छाओं को नियंत्रित कर आत्मा की शुद्धि प्राप्त करना है।
पर्यूषण पर्व के दौरान जैन अनुयायी उपवास, ध्यान, प्रार्थना और धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करते हैं। पर्व का अंतिम दिन क्षमावाणी (मिच्छामि दुक्कड़म्) के रूप में मनाया जाता है, जब लोग एक-दूसरे से क्षमा मांगते हैं और कहते हैं कि अगर जानबूझकर या अनजाने में किसी को ठेस पहुंची हो तो उन्हें क्षमा करें। इस दिन के उद्देश्य को समाज में शांति, सामंजस्य और सामूहिक भक्ति का संदेश फैलाने के रूप में देखा जाता है।
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पर्यूषण क्या है?
पर्यूषण जैन धर्म का सबसे प्रमुख धार्मिक और आध्यात्मिक पर्व है। इसे मुख्य रूप से साधु-संतों के उपदेशों का पालन और आत्मशुद्धि के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व जैन धर्म के अनुयायियों के लिए आंतरिक आत्मनिरीक्षण, तप और संयम का समय होता है। जैन धर्म में दो मुख्य संप्रदाय हैं, जिनमें से एक को दिगंबर के नाम से जानते हैं। वहीं, दूसरे संप्रदाय को श्वेतांबर के नाम से जानते हैं। दोनों संप्रदाय पर्यूषण को महत्व देते हैं लेकिन तिथि और अवधि में थोड़ा अंतर हो सकता है।
पर्यूषण पर्व की अवधि
- श्वेतांबर संप्रदाय: यह पर्व 8 दिन मनाते हैं, जिसे 'अष्टान्हिका' कहा जाता है।
- दिगंबर संप्रदाय: यह पर्व 10 दिन मनाते हैं, जिसे 'दसलक्षण' पर्व कहा जाता है।
- इस वर्ष, श्वेतांबर संप्रदाय के लोग 21 से 28 अगस्त तक और दिगंबर संप्रदाय के लोग 28 अगस्त से 6 सितंबर तक पर्यूषण पर्व मनाएंगे।
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पर्यूषण पर्व की मान्यताएं और धार्मिक सिद्धांत
पर्यूषण पर्व के दौरान जैन धर्म के अनुयायी पांच मुख्य सिद्धांतों का पालन करते हैं।
- अहिंसा: किसी भी जीवित प्राणी को शारीरिक या मानसिक रूप से नुकसान न पहुंचाना।
- सत्य: हमेशा सच बोलना।
- अस्तेय (अचौर्य): चोरी न करना।
- ब्रह्मचर्य: आत्म-नियंत्रण और संयम का पालन करना।
- अपरिग्रह: सांसारिक वस्तुओं के प्रति आसक्ति (प्रेम) का त्याग करना।
इन सिद्धांतों का पालन करके जैन अनुयायी आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति की ओर अग्रसर होते हैं।
क्षमावाणी – पर्यूषण का अंतिम दिन
पर्यूषण पर्व के समापन पर 'क्षमावाणी' या 'मिच्छामि दुक्कड़म्' मनाया जाता है। इस दिन लोग एक-दूसरे से विनम्रता के साथ क्षमा मांगते हैं और कहते हैं, 'अगर जाने-अनजाने में किसी को ठेस पहुंचाई हो, तो कृपया मुझे क्षमा करें।' यह दिन आत्मा की शुद्धि और समाज में शांति स्थापित करने का प्रतीक है।
पर्यूषण के दौरान की जाने वाली साधनाएं
- उपवास और तपस्या: लोग अपने शरीर और मन को शुद्ध करने के लिए उपवास और तपस्या करते हैं।
- ध्यान और प्रार्थना: आध्यात्मिक उन्नति के लिए ध्यान और प्रार्थना की जाती है।
- धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन: जैन धर्म के ग्रंथों का अध्ययन करके आत्मा की शुद्धि की जाती है।
- सामायिक: सामायिक का अर्थ है आत्मनिरीक्षण और आत्म-नियंत्रण की प्रक्रिया।
इन साधनाओं के माध्यम से जैन अनुयायी अपने पापों से मुक्ति प्राप्त करने और आत्मा की शुद्धि की दिशा में अग्रसर होते हैं
पर्यूषण का वैश्विक प्रभाव
पर्यूषण पर्व केवल भारत में ही नहीं, बल्कि ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जापान, जर्मनी जैसे देशों में भी धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एकजुटता, शांति और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक है।