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जनस्थान शक्तिपीठ: वह शक्तिपीठ जहां भगवान राम ने किया था दैत्यों का वध

51 शक्तिपीठों में नासिक में स्थित जनस्थान शक्तिपीठ का अपना विशेष महत्व है। आइए जानते हैं, इस स्थान से जुड़ी मान्यताएं और इतिहास।

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देवी दुर्गा।(Photo Credit: Pixabay)

हिंदू धर्म में आदिशक्ति की विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शक्ति उपासना से व्यक्ति को सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है। साथ ही भारत के विभिन्न हिस्सों में आदिशक्ति को समर्पित 51 शक्तिपीठ मौजूद हैं, जिन्हें मोक्षदायिनी कहा जाता है। 51 शक्तिपीठों में से एक है जनस्थान शक्तिपीठ, जो महाराष्ट्र के नासिक में स्थित है, को भी विशेष स्थान प्राप्त है। मान्यता है कि यहां देवी सती की ठोड़ी गिरी थी, जिससे यह स्थान अत्यंत पवित्र और सिद्ध स्थानों में गिना जाता है। यह स्थान धार्मिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।

जनस्थान शक्तिपीठ पौराणिक कथा

हिंदू धर्म के ग्रंथों के अनुसार, देवी सती ने अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में आत्मदाह कर लिया था क्योंकि उनके पति भगवान शिव का वहां अपमान किया गया था। जब भगवान शिव को यह ज्ञात हुआ, तो वे अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने देवी सती के शरीर को अपने कंधे पर उठाकर तांडव नृत्य करना शुरू कर दिया।

 

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इससे पूरे ब्रह्मांड में विनाश की स्थिति उत्पन्न हो गई। इस आपदा को रोकने के लिए, भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया। जहां-जहां ये अंग गिरे, वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए। नासिक स्थित जनस्थान शक्तिपीठ वह स्थान है, जहां देवी सती की ठोड़ी गिरी थी।

जनस्थान शक्तिपीठ का धार्मिक महत्व

जनस्थान नाम का उल्लेख रामायण में भी मिलता है। यह स्थान लंकापति रावण के छोटे भाई खर-दूषण के राज्य का हिस्सा था। जब भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण वनवास के दौरान पंचवटी क्षेत्र में निवास कर रहे थे, तब खर-दूषण ने उन पर हमला किया था। भगवान राम ने इस युद्ध में खर-दूषण का वध किया और तब से यह स्थान जनस्थान के रूप में प्रसिद्ध हुआ। यह मंदिर देवी सती को समर्पित है लेकिन यहां भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण की मूर्तियां भी स्थापित हैं। ऐसा माना जाता है कि यहां देवी की उपासना करने से भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

मंदिर का इतिहास और वास्तुकला

जनस्थान शक्तिपीठ का इतिहास बहुत प्राचीन है। यह मंदिर अनेक बार पुनर्निर्मित हुआ और वर्तमान में एक भव्य स्वरूप में विद्यमान है। मंदिर में देवी सती की पवित्र मूर्ति स्थापित है, जो अत्यंत भव्य और दिव्य ऊर्जा से युक्त मानी जाती है। साथ ही इस शक्तिपीठ में भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण की मूर्तियां भी स्थापित हैं। यह शक्तिपीठ नासिक के पंचवटी क्षेत्र के निकट स्थित है, जो रामायण काल से ही पवित्र माना जाता है। इसके साथ यह मंदिर साधकों और तपस्वियों के लिए एक विशेष स्थान माना जाता है।

 

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मान्यताएं और धार्मिक अनुष्ठान

भक्तों का विश्वास है कि इस मंदिर में सच्चे मन से प्रार्थना करने से इच्छाएं पूर्ण होती हैं। यह शक्तिपीठ शक्ति साधना और तंत्र अनुष्ठानों के लिए भी महत्वपूर्ण स्थान है। नवरात्रि के दौरान यहां विशेष पूजा, हवन, जागरण और भजन संध्याओं का आयोजन किया जाता है। साथ ही रामनवमी और शिवरात्रि पर हजारों भक्त यहां दर्शन के लिए आते हैं। इसके साथ नासिक न केवल जनस्थान शक्तिपीठ का घर है, बल्कि यह त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग, कालाराम मंदिर और गोदावरी नदी के तट जैसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों के लिए भी प्रसिद्ध है। इसके अलावा, यह स्थान कुंभ मेले का भी आयोजन करता है, जो हर 12 वर्षों में यहां आयोजित होता है।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।

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