भगवान श्रीकृष्ण का जन्माष्टमी पर्व हिंदू धर्म में एक अत्यंत पावन और श्रद्धा से जुड़ा हुआ त्योहार है। यह पर्व भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को आता है, जब रात के समय भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था।
मान्यता है कि जब धरती पर अधर्म और पाप का बोझ अत्यधिक बढ़ गया था, तब भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण रूप में जन्म लेकर अत्याचारी कंस का अंत किया और धर्म की पुनः स्थापना की।
कृष्ण जन्माष्टमी 2025 तिथि
वैदिक पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 15 अगस्त रात्रि 11:45 मिनट से 16 अगस्त रात्रि 09:34 मिनट तक रहेगा। बात दें कि स्मार्त समुदाय में जन्माष्टमी पर्व पर भगवान श्री कृष्ण की पूजा मध्यरात्रि में की जाती है, ऐसे में स्मार्त समुदाय में 15 अगस्त के दिन जन्माष्टमी पर्व मनाया जाएगा। इसके साथ 16 अगस्त के दिन वैष्णव समुदाय में व्रत और पूजा की जाएगी।
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कृष्ण जन्माष्टमी से जुड़ी मान्यताएं
श्रीमद्भागवत, हरिवंश पुराण, विष्णु पुराण और महाभारत जैसे अनेक धर्मग्रंथों में भगवान कृष्ण के जन्म और उनके बाल्यकाल से जुड़ी अनेक लीलाओं का वर्णन मिलता है। जन्माष्टमी केवल उनके जन्म का उत्सव नहीं है, बल्कि यह भी एक प्रतीक है कि जब-जब अन्याय बढ़ता है, तब-तब ईश्वर किसी न किसी रूप में अवतरित होते हैं। भगवान कृष्ण के जीवन से जुड़ी प्रत्येक घटना, चाहे वह बाल लीलाएं हों, गोपियों के साथ रास हो या फिर कुरुक्षेत्र के युद्ध में दिया गया भगवद्गीता का उपदेश- हर एक का गहरा धार्मिक और दार्शनिक महत्व है।
इस दिन भक्त उपवास करते हैं, रात्रि जागरण करते हैं और रात बारह बजे भगवान श्रीकृष्ण का विशेष पूजन किया जाता है क्योंकि मान्यता है कि ठीक इसी समय उन्होंने मथुरा में जन्म लिया था। भक्तजन भगवान को झूले में विराजमान करते हैं, उनका अभिषेक करते हैं और विशेष मंत्रों व भजनों के माध्यम से आराधना करते हैं। घरों और मंदिरों में श्रीकृष्ण की बाल रूप की मूर्तियों को सजाया जाता है और झांकियां बनाई जाती हैं जो उनके जन्म से लेकर बाल लीलाओं तक की घटनाओं को दर्शाती हैं।
जन्माष्टमी पूजा का महत्व
जन्माष्टमी के दिन पूजा का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह दिन भक्तों को भक्ति, प्रेम और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। श्रीकृष्ण का जीवन हर युग के लिए एक आदर्श है। उनके द्वारा दिया गया कर्म का संदेश- ’कर्म करो, फल की चिंता मत करो’ आज भी लोगों के जीवन में गूंजता है। जन्माष्टमी का उपवास आत्म-संयम, श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक माना जाता है। यह दिन यह याद दिलाता है कि जीवन में हर कठिनाई का समाधान ईश्वर की भक्ति और सत्य के मार्ग पर चलकर ही संभव है।
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जन्माष्टमी का पर्व केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इस दिन कई जगहों पर ‘दही-हांडी’ की परंपरा निभाई जाती है, जिसमें श्रीकृष्ण की बाल लीला की झलक मिलती है। यह त्योहार जीवन में प्रेम, करुणा, विनम्रता और धर्म की भावना को जाग्रत करता है। अंततः, यह पर्व हमें ईश्वर में आस्था रखने और कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य व धर्म का पालन करने की सीख देता है।