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मां दुर्गा ने भक्त से मांगा था झूला! दिलचस्प है झूला देवी मंदिर की कथा

अल्मोड़ा के रानीखेत में देवी दुर्गा का प्रसिद्ध झूला देवी मंदिर है। इस मंदिर में लोगों की अपार आस्था है। इस मंदिर में मान्यता पूरी होने पर लोग घंटी बांधते हैं। आइए जानते हैं क्यों इस मंदिर को झूला देवी कहा जाता है।

jhula devi temple

झूला देवी मंदिर (Photo Credit: Exotic Miles)

उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। यहां पर कई प्रसिद्ध मंदिर और शक्ति पीठ है। आज हम आपको यहां के मशहूर झूला देवी मंदिर के बारे में बता रहे हैं। झूला देवी मंदिर अल्मोड़ा के रानीखेत में स्थित है। इस मंदिर में श्रद्धालुओं की अपार आस्था है। यहां पर मां दुर्गा की पूजा अर्चना की जाती है। इस मंदिर में मनोकामना पूरी होने पर लोग घंटी बांधकर अपनी आस्था प्रकट करते हैं। आइए इस मंदिर से जुड़ी जरूरी बातों के बारे में जानते हैं।

 

यह मंदिर करीब 700 साल पुराना है जहां देश- विदेश से श्रद्धालु आते हैं। खासतौर से नवरात्रि के समय में इस मंदिर में बहुत भीड़ होती है। यहां पर रहने वाले लोगों के मुताबिक, एक समय था चौबटिया क्षेत्र में बाघों और तेंदुओं का आतंक रहता था। मंदिर से डेढ़ किलोमीटर दूर पिलखोली गांव के एक व्यक्ति को मां ने सपने में कहा था कि इस जगह पर देवी की मूर्ति दबी हुई है। उस मूर्ति को निकालकर उसमें प्राण प्रतिष्ठा करवाने से जंगली जानवरों के आतंक से निजात मिल जाएगा।

 

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कैसे पड़ा झूला देवी मंदिर नाम

इसके बाद लोगों ने उस जगह पर मंदिर का निर्माण करवाया। बताया जाता है कि मंदिर निर्माण के बाद सावन के महीने में इस मंदिर के प्रांगण में बच्चे झूला डालकर झूला झूलते थे। देवी ने उसी व्यक्ति को सपने में दर्शन देकर कहा कि मंदिर के प्रांगण में बच्चे झूला झूलते हैं और बच्चों को झूला झूलते देखकर मेरी भी इच्छा होती है।

 

इसके बाद ग्रामीणों ने वहां पर माता को झूले में रख दिया और तब से आज तक देवी मां उसी झूले पर विराजमान हैं और तब से ही मां को झूला देवी के नाम से जाना जाता है। झूला देवी मंदिर में श्रद्धालु मां से मन्नत मांगते हैं। जिन लोगों की मन्नत पूरी होती है वे लोग मंदिर में जाकर घंटी बांधते हैं। 

 

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कैसे पहुंचे झूला देवी मंदिर

रोड वे- आप दिल्ली के आनंद विहार से बस लेकर रानीखेत पहुंचे। रानीखेत से आपको चौबटिया तक के लिए प्राइवेट टैक्सी लेनी होगी। रानीखेत से चौबटिया करीब 7 किलोमीटर दूर है।

 

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