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कालभैरव अष्टकम् स्तोत्र: अर्थ के साथ जानिए इस स्तोत्र का प्रभाव

कालाष्टमी व्रत के दिन भगवान काल भैरव की उपासना और उनके स्तोत्र का पाठ करने से विशेष लाभ मिलता है।

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भगवान शिव के रौद्र रूप हैं भगवान कालभैरव।(Photo Credit: AI Image)

सनातन धर्म में भगवान शिव के अनेक रूप हैं, जिनमें वह भोलेनाथ भी हैं, रौद्र भी; शांत भी हैं, संहारक भी। शिव के इन सभी रूपों में 'कालभैरव' का स्वरूप अत्यंत रहस्यमयी, उग्र और प्रभावशाली माना गया है। वह समय के स्वामी कहे जाते हैं- जो अधर्म, अहंकार और अज्ञान का विनाश करते हैं। कालभैरव की उपासना विशेष रूप से कालाष्टमी पर की जाती है और इस दिन ‘कालभैरव अष्टकम्’ स्तोत्र का पाठ अत्यंत पुण्यदायक माना गया है।

 

यह स्तोत्र आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा रचित है, और इसमें कालभैरव के महिमा, गुण, रूप और प्रभाव का सुंदर वर्णन किया गया है। आइए, अब हम इस स्तोत्र के प्रत्येक श्लोक का सरल अर्थ और उसके भाव को समझते हैं।

कालभैरव स्तोत्र (अर्थ सहित)

श्लोक 1 –

देवराजसेव्यमानपावनांघ्रिपङ्कजं
व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम् ।
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥

 

मैं उन भगवान कालभैरव की वंदना करता हूं जो देवताओं द्वारा पूजित हैं, जिनके चरणकमल पवित्रता प्रदान करते हैं। जिनके शरीर में सर्पों की माला है, सिर पर चंद्रमा है, वह कृपा की मूर्ति हैं। नारद जैसे ऋषि जिनकी स्तुति करते हैं और जो दिगंबर (वस्त्रहीन, निर्विकार) रूप में काशी नगरी के स्वामी हैं।

 

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श्लोक 2 –

भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं
नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम् ।
कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥

 

वह अनगिनत सूर्यों जैसे तेजस्वी हैं, संसार सागर से पार कराने वाले हैं। वह नीले कंठ वाले, त्रिनेत्रधारी हैं, जो इच्छित फल प्रदान करते हैं। वह काल के भी काल हैं, जिन्होंने आंखों में कमल समान शांति लिए हुए हैं, और त्रिशूल धारण करते हैं।

श्लोक 3 –

शूलटङ्कपाशदण्डपाणिमादिकारणं
श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम् ।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥

 

जिनके हाथों में त्रिशूल, अंकुश, पाश और दंड हैं, जिनका शरीर श्यामवर्ण है, जो आदि देव हैं, निरोगी और अक्षर (अविनाशी) हैं। जो भयानक रूप में वीरता से भरपूर हैं और जिनको तांडव नृत्य प्रिय है।

 

श्लोक 4 –

भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं
भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम् ।
विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥

 

वह भोग और मोक्ष देने वाले हैं, सुंदर और आकर्षक स्वरूप वाले हैं। भक्तों पर प्रेम रखने वाले हैं और समस्त लोकों की रक्षा करने वाले हैं। जिनके कमर में सुनहरी घंटे (किंकिणी) की ध्वनि गूंजती रहती है।

श्लोक 5 –

धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशकं
कर्मपाशमोचकं सुशर्मदायकं विभुम् ।
स्वर्णवर्णशेषपाशशोभिताङ्गमण्डलं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥

 

वह धर्म की रक्षा करते हैं और अधर्म का विनाश करते हैं। कर्म बंधनों को काटते हैं और सुख प्रदान करते हैं। उनके अंगों में सर्पों के बने गहने शोभायमान हैं।

श्लोक 6 –

रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं
नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरंजनम् ।
मृत्युदर्पनाशनं करालदंष्ट्रमोक्षणं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥

 

जिनके चरण रत्नमयी पादुकाओं से सुशोभित हैं, जो अद्वितीय हैं, भक्तों के प्रिय हैं, जो निर्लिप्त और निर्विकार हैं। जिनसे मृत्यु भी भय खाती है।

श्लोक 7 –

अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसंततिं
दृष्टिपातनष्टपापजालमुग्रशासनम् ।
अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकाधरं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥

 

उनका अट्टहास ब्रह्मा द्वारा रचित ब्रह्मांड को भी कंपा देता है। उनकी दृष्टि से पाप नष्ट हो जाते हैं। वह उग्र और शक्तिशाली शासन करने वाले हैं। आठ सिद्धियां देने वाले और कपाल माला धारण करने वाले हैं।

 

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श्लोक 8 –

भूतसंघनायकं विशालकीर्तिदायकं
काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम् ।
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥

 

वह भूतगणों के स्वामी हैं, जिनकी कीर्ति विशाल है। काशी में वास करने वालों के पाप-पुण्य का शुद्धिकरण करते हैं। वह नीति के ज्ञाता हैं और सनातन समय से सृष्टि के स्वामी हैं।

श्लोक 9 –

कालभैरवाष्टकं पठंति ये मनोहरं
ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम् ।
शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं
प्रयान्ति कालभैरवांघ्रिसन्निधिं नरा ध्रुवम् ॥

 

जो व्यक्ति इस सुंदर कालभैरव अष्टकम् का पाठ करता है, उसे ज्ञान, मोक्ष और पुण्य की प्राप्ति होती है। यह शोक, मोह, लालच, क्रोध और ताप को दूर करता है। अंततः ऐसे व्यक्ति को कालभैरव की शरण प्राप्त होती है।

कालभैरव स्तोत्र का महत्व

कालाष्टमी हर माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी को आती है, परंतु सावन मास में इसका महत्व और भी विशेष हो जाता है क्योंकि यह माह भगवान शिव का प्रिय होता है। सावन काल में शिव की उपासना से अनेकगुणा फल प्राप्त होता है। इस दिन कालभैरव अष्टकम् का पाठ करने से शत्रु भय समाप्त होता है। मान्यता है कि इस स्तोत्र से दुर्भाग्य और पूर्व जन्म के दोष शांत होते हैं, इसके साथ अकाल मृत्यु और दुर्घटनाओं का भय मिटता है व धन-समृद्धि और आत्मबल में वृद्धि होती है। इस दिन व्रत या जल-फल को ग्रहण करके भगवान कालभैरव की पूजा, दीपदान और इस स्तोत्र का पाठ करने से विशेष फल मिलता है।

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