हिंदू धर्म में भगवान शिव को संहार के देवता माना जाता है लेकिन वह केवल विनाश के नहीं, तप, शांति और ध्यान के भी प्रतीक हैं। उनके निवास स्थान के रूप में कैलास पर्वत और मानसरोवर झील को विशेष स्थान प्राप्त है। यह स्थान न केवल पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि भौगोलिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी रहस्यमयी माना जाता है। हजारों वर्षों से यह क्षेत्र तीर्थयात्रियों, योगियों और साधकों के लिए आस्था व रहस्य का केंद्र रहा है।
कैलास पर्वत और मानसरोवर झील तिब्बत में स्थित हैं। कैलास पर्वत समुद्र तल से करीब 22,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और यह हिमालय की सबसे पवित्र चोटी मानी जाती है। इसके पास ही स्थित है मानसरोवर झील, जो एक बेहद शांत, गहरी और पवित्र जलराशि है। ऐसा माना जाता है कि इस झील का जल स्वयं ब्रह्मा जी ने बनाया था।
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भगवान शिव ने कैलास को ही क्यों चुना?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब सृष्टि का आरंभ हुआ, तो ब्रह्मा जी ने इस संसार को रचा, विष्णु जी पालनकर्ता बने और महादेव को संहार और तप का कार्य सौंपा गया। भगवान शिव को एक ऐसा स्थान चाहिए था जो संसार के हलचल से दूर, शांत, ऊंचा, शुद्ध और तप के अनुकूल हो। कैलास पर्वत की ऊंचाई, उसका वातावरण और वहां की शांति ने उन्हें आकर्षित किया। यह स्थान केवल भौतिक नहीं, आध्यात्मिक रूप से भी ऊर्जावान माना जाता है।
एक और कथा के अनुसार, जब शिवजी ने माता पार्वती से विवाह किया, तो वे उनके साथ हिमालय के उत्तरी भाग में स्थित कैलास पर्वत पर रहने लगे। यह स्थान इतना पवित्र है कि देवताओं के लिए भी यहां आना तप के बाद ही संभव होता है।
मानसरोवर से जुड़ी मान्यताएं
मानसरोवर झील को ब्रह्मा जी की मानस संकल्प से उत्पन्न माना जाता है, इसलिए इसका नाम ‘मानसरोवर’ पड़ा। यह झील इतनी पवित्र मानी जाती है कि इसका जल पी लेने मात्र से पाप समाप्त हो जाते हैं और स्नान करने से मन, शरीर और आत्मा शुद्ध हो जाती है।
यह भी माना जाता है कि मानसरोवर झील में देवता, ऋषि-मुनि और सिद्धात्माएं नियमित रूप से स्नान करने आते हैं। पूर्णिमा की रात को इस झील में अद्भुत दिव्य प्रकाश दिखाई देता है जिसे आम लोग नहीं समझ पाते, परंतु साधक उसे विशेष आध्यात्मिक अनुभव मानते हैं।
कैलास पर्वत का रहस्य
कैलास पर्वत एक मात्र ऐसा पर्वत है जिसे किसी ने अब तक फतेह नहीं किया है। दुनिया के कई पर्वतारोहियों ने माउंट एवरेस्ट सहित सैकड़ों चोटियों पर विजय पाई लेकिन कैलास पर चढ़ाई असंभव मानी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि जब भी कोई कैलास पर चढ़ने का प्रयास करता है, वह किसी अनदेखी शक्ति द्वारा रोक दिया जाता है या स्वयं रुक जाता है।
रूस के वैज्ञानिकों ने भी कैलास पर्वत के बारे में अध्ययन किया और कहा कि इसकी बनावट ‘पिरामिड’ जैसी है, जिससे यह ऊर्जा का एक विशाल केंद्र बन जाता है। कुछ लोग इसे ‘पृथ्वी का ऊर्जा चक्र’ भी कहते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि कैलास पर्वत पर अदृश्य गुरुत्व और चुम्बकीय शक्तियां कार्य करती हैं, जो सामान्य मनुष्यों को वहां टिकने नहीं देतीं।
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कैलास को चार धर्मों में मान्यता
- यह भी खास बात है कि कैलास पर्वत केवल हिंदू धर्म में ही नहीं, बल्कि जैन, बौद्ध और तिब्बती बों धर्म में भी अत्यंत पवित्र माना गया है।
- हिंदू धर्म में यह भगवान शिव का घर है।
- जैन धर्म में इसे ऋषभदेव (प्रथम तीर्थंकर) का मोक्ष स्थल माना गया है।
- बौद्ध इसे “मेरु पर्वत” कहते हैं जो ब्रह्मांड का केंद्र है।
- तिब्बती लोग इसे ‘कंग रिनपोछे’ कहते हैं और इसे धर्म का मूल आधार मानते हैं।
कैलास की परिक्रमा
कैलास की परिक्रमा को बहुत पुण्यदायी माना गया है। यह करीब 52 किलोमीटर लंबा रास्ता है, जिसे श्रद्धालु पैदल पूरा करते हैं। यह परिक्रमा केवल बाहरी यात्रा नहीं होती, बल्कि यह एक तरह की आत्मिक साधना मानी जाती है। ऐसा विश्वास है कि जो व्यक्ति सच्चे मन से इसकी परिक्रमा करता है, उसे जन्म-मरण के बंधनों से मुक्ति मिलती है।