logo

ट्रेंडिंग:

कल्पेश्वर महादेव: पूरे साल खुले रहने वाले एक मात्र केदार की कहानी

उत्तराखंड के चमोली में स्थित कलपेश्वर महादेव मंदिर का अपना एक खास स्थान है। आइए जानते हैं, इस स्थान से जुड़ी कहानी और मान्यताएं।

Image of Kalpeshwar mahadev Mandir

कल्पेश्वर महादेव मंदिर(Photo Credit: lakshpuri/ Instagram)

भगवान शिव के प्रसिद्ध मंदिरों में द्वादश ज्योतिर्लिंगों के बाद पंच केदारों का स्थान आता है, जो उत्तराखंड के अलग-अलग हिस्सों में स्थित हैं। यह पांच केदार अपनी अलग-अलग विशेषताओं के लिए भक्तों में प्रसिद्ध हैं। इन्हीं में से एक उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित कल्पेश्वर महादेव मंदिर भगवान शिव के पंच केदारों में से एक है। यह एकमात्र ऐसा केदार मंदिर है जो पूरे साल खुला रहता है। समुद्र तल से लगभग 2,200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम है।

पौराणिक कथा से जुड़ी मान्यता

कल्पेश्वर महादेव मंदिर की कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई है। जब पांडवों ने महाभारत युद्ध में अपने ही रिश्तेदारों और गुरुओं का वध किया, तो उन्हें यह पाप बोध हुआ। इस पाप से मुक्ति पाने के लिए वे भगवान शिव का आशीर्वाद लेने हिमालय की ओर गए। लेकिन भगवान शिव उनसे नाराज़ थे, इसलिए उन्होंने उन्हें दर्शन नहीं दिए।

 

यह भी पढ़ें: चार वेदों के अलावा 5वां महावेद कौन सा है, विस्तार से जानिए

 

शिवजी ने एक बैल (नंदी) का रूप धारण कर लिया और छिप गए। पांडवों ने उनका पीछा किया। भीम ने एक विशाल शिला पर पैर रखकर नीचे छिपे शिवजी को बाहर आने पर मजबूर किया। इस पर शिवजी पाँच भागों में विभाजित होकर अलग-अलग स्थानों पर प्रकट हुए। उन्हीं पाँच स्थानों को पंचकेदार कहा जाता है:

 

केदारनाथ – पीठ (कूबड़)

तुङ्नाथ – बाहें

रुद्रनाथ – मुख

मध्यमेश्वर – नाभि

कल्पेश्वर – जटाएं

 

इस प्रकार, कल्पेश्वर वह स्थान है जहां भगवान शिव की जटाएं पूजी जाती हैं।

इतिहास और धार्मिक महत्व

कल्पेश्वर मंदिर प्राचीन समय से साधु-संतों और भक्तों का तपस्थल रहा है। इसे अलाकनंदा और कल्पगंगा नदियों के संगम क्षेत्र में माना जाता है। मंदिर में एक गुफा है जिसमें शिवलिंग स्थापित है। यह गुफा प्राकृतिक चट्टानों के बीच बनी हुई है, और अंदर पहुँचने के लिए झुककर जाना पड़ता है, जो इसे और भी रहस्यमयी बनाता है।

 

माना जाता है कि यहीं पर आदिगुरु शंकराचार्य ने तप किया था। कई संतों ने यहाँ साधना की और शिव तत्व को प्राप्त किया। यहाँ की विशेषता यह है कि यह पंचकेदारों में सबसे छोटा लेकिन आध्यात्मिक रूप से अत्यंत प्रभावशाली स्थल है।

पूजा और धार्मिक परंपराएं

कल्पेश्वर महादेव में शिवलिंग की पूजा होती है। भक्त जल, बेलपत्र, धतूरा, दूध और भस्म अर्पित करते हैं। शिवजी की आराधना ध्यान, जप और मंत्रोच्चार के साथ होती है। केदारनाथ और अन्य केदार सर्दियों में बर्फबारी के कारण बंद हो जाते हैं, लेकिन कल्पेश्वर मंदिर साल भर खुला रहता है। इसलिए श्रद्धालु कभी भी आकर यहाँ शिव के दर्शन कर सकते हैं। इन अवसरों पर यहां विशेष पूजा और धार्मिक अनुष्ठान होते हैं। इस समय यहाँ श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या में भीड़ लगती है।

 

यह भी पढ़ें: तनोट माता से बाबा बर्फानी तक, वह मंदिर जिनमें सैनिकों की है अटूट आस्था

आवागमन और यात्रा मार्ग

कल्पेश्वर मंदिर तक पहुंचने के लिए पहले हेलंग गांव तक सड़क मार्ग से पहुँचा जाता है, जो ऋषिकेश-बदरीनाथ मार्ग पर स्थित है। इसके बाद देवग्राम तक 10-12 किलोमीटर का ट्रैक (पैदल मार्ग) करना होता है। यह रास्ता घने जंगलों और पहाड़ियों से होकर जाता है, जो यात्रियों को प्रकृति के अद्भुत दर्शन कराता है।

आध्यात्मिक अनुभव

कल्पेश्वर सिर्फ एक मंदिर नहीं, बल्कि एक साधना-स्थली है। यहाँ की शांत और दिव्य वायु मन को एक विशेष प्रकार की ऊर्जा और शांति प्रदान करती है। भक्तों का विश्वास है कि यहाँ की यात्रा और पूजा से शिव की कृपा सहज रूप से प्राप्त होती है और जीवन की अनेक परेशानियाँ दूर होती हैं।

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

और पढ़ें

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap