हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष स्थान है। हर मास में दो एकादशी आती हैं- एक कृष्ण पक्ष में और दूसरी शुक्ल पक्ष में। श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को कामिका एकादशी कहा जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है और इसे करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।
कामिका एकादशी 2025 तिथि और कथा
वैदिक पंचांग के अनुसार, श्रावण मास के कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि 20 जुलाई दोपहर 12:15 मिनट पर शुरू हो रही है और इस तिथि का समापन 21 जुलाई सुबह 09:40 मिनट पर होगा। ऐसे में कामिका एकादशी व्रत 21 जुलाई 2025, सोमवार के दिन स्मार्त और वैष्णव दोनों सम्प्रदायों में रखा जाएगा। वहीं एकादशी व्रत का पारण 22 जुलाई के दिन किया जाएगा।
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पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से इस व्रत की महिमा पूछी, तो उन्होंने कहा कि कामिका एकादशी व्रत करने से शिव, विष्णु और ब्रह्मा तीनों की कृपा प्राप्त होती है। यह व्रत इतना पुण्यदायक होता है कि इसमें किया गया छोटा-सा भी जप, ध्यान, दान या सेवा हजारों यज्ञों के फल के समान माना गया है।
इस दिन व्यक्ति को ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करना चाहिए। फिर घर को साफ करके पूजा स्थल को सजाना चाहिए। भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र को पीले वस्त्र पहनाकर, फूल, तुलसी, फल आदि से पूजा करनी चाहिए। दीप जलाकर विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना उत्तम माना जाता है। इस दिन कई लोग रात्रि जागरण भी करते हैं, जिससे व्रती का मन ईश्वर में लगा रहता है।
कामिका एकादशी का क्या है महत्व?
कामिका एकादशी के दिन व्रत रखने से नकारात्मकता दूर होती है, मन शुद्ध होता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है। यह व्रत क्रोध, ईर्ष्या, मोह, लोभ जैसे मानसिक दोषों को भी कम करता है। जो व्यक्ति इस दिन विधिपूर्वक व्रत करता है और भगवान की पूजा करता है, उसे पूर्व जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है।
धार्मिक मान्यताओं में यह भी कहा गया है कि इस दिन तुलसी का एक पत्ता भी अगर भगवान विष्णु को अर्पित किया जाए, तो वह लाखों सोने के दान के बराबर फल देता है। इस दिन पीपल, तुलसी और शमी वृक्ष की पूजा करने से भी विशेष पुण्य प्राप्त होता है।
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कामिका एकादशी विशेष रूप से उन लोगों के लिए शुभ मानी जाती है जो ईश्वर प्राप्ति की राह पर चलना चाहते हैं या अपने जीवन में आत्मिक शांति की तलाश कर रहे हैं। यह व्रत मन को नियंत्रित करने, इच्छाओं पर संयम रखने और सात्त्विक जीवन अपनाने की प्रेरणा देता है।
व्रत का पारण (उपवास समाप्त करना) अगले दिन सूर्योदय के बाद उचित समय पर किया जाता है। पारण में फलाहार या हल्के भोजन का सेवन किया जाता है। व्रत के अंत में ब्राह्मणों को भोजन करवाना या जरूरतमंदों को अन्न-दान करना श्रेष्ठ माना गया है।