उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में स्थित बाबा औघड़नाथ मंदिर न सिर्फ एक धार्मिक स्थल है, बल्कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम और कांवड़ यात्रा की परंपरा से गहराई से जुड़ा हुआ है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसे 'काली पलटन मंदिर' के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर का इतिहास, उसका पौराणिक महत्व और आजादी के संघर्ष में उसकी भूमिका – तीनों ही इसे विशेष बनाते हैं।
बाबा औघड़नाथ मंदिर की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि इसे शिव की तपस्वी औघड़ रूप में पूजा जाता है। 'औघड़' शब्द का अर्थ होता है वह साधु जो सांसारिक बंधनों से मुक्त हो और केवल तप में लीन रहे। यह मंदिर प्राचीन काल से ही भगवान शिव की भक्ति का केंद्र रहा है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, यहां स्थापित शिवलिंग स्वयं प्रकट (स्वयंभू) हुआ था और इसकी पूजा हजारों वर्षों से की जा रही है।
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कांवड़ यात्रा से क्या है मंदिर का संबंध
मंदिर का स्थान कांवड़ यात्रा के पवित्र मार्ग में भी आता है। सावन महीने में लाखों शिवभक्त हरिद्वार से गंगाजल लाकर पैदल यात्रा करते हुए इस मंदिर में आकर बाबा औघड़नाथ को जल अर्पित करते हैं। यह स्थान उन भक्तों के लिए खास होता है जो मेरठ या उसके आसपास के क्षेत्रों से कांवड़ यात्रा में भाग लेते हैं। मंदिर की मान्यता है कि यहां जल चढ़ाने से शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
औघड़नाथ मंदिर का इतिहास और क्यों कहा जाता है क्रांति तीर्थ
अब बात करें बाबा औघड़नाथ मंदिर के ऐतिहासिक और राजनीतिक महत्व की। यह वही स्थान है जिसे भारत के स्वतंत्रता संग्राम के पहले युद्ध यानी 1857 की क्रांति का एक प्रमुख केंद्र माना जाता है। उस समय मेरठ में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की एक छावनी थी, जिसे काली पलटन कहा जाता था। इस छावनी के सैनिक अकसर मंदिर आया करते थे। माना जाता है कि मंदिर के पुजारियों और संतों ने क्रांतिकारी विचारों को छुपाकर सैनिकों में फैलाने का कार्य किया।
1857 में जब मंगल पांडे और अन्य सैनिकों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया, तो मेरठ से ही इसकी चिंगारी उठी थी। बाबा औघड़नाथ मंदिर उन स्थानों में से था जहां देशभक्त गुप्त रूप से मिलते थे और आजादी के विचारों का आदान-प्रदान होता था। यही कारण है कि ब्रिटिश सरकार ने मंदिर को लंबे समय तक निगरानी में रखा था। कई पुजारियों को हिरासत में भी लिया गया था, लेकिन इससे देशभक्तों का हौसला कम नहीं हुआ।
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मंदिर को 'क्रांति तीर्थ' भी कहा जाता है, क्योंकि यहीं से वह लहर चली जिसने भारत को अंग्रेज़ों की गुलामी से मुक्त करने की दिशा में पहला संगठित प्रयास किया। मंदिर के आंगन में आज भी एक स्मारक है जो 1857 की क्रांति की याद दिलाता है। यहां हर वर्ष स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिसमें स्थानीय लोग, स्कूल के बच्चे और अधिकारी शामिल होते हैं।
आज बाबा औघड़नाथ मंदिर केवल एक पूजा स्थल नहीं, बल्कि इतिहास, आस्था और राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक बन गया है। मंदिर का सौंदर्य भी समय के साथ बढ़ा है, लेकिन उसकी आत्मा आज भी वैसी ही है – एक ऐसी जगह जो भक्ति और देशभक्ति दोनों का संगम है।