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डाक से लेकर दंड तक, कितने तरह की होती है कांवड़ यात्रा?

सावन का महीना शुरू हो चुकी है और कावंड़िए, कांवड़ लेकर निकल रहे हैं। हर कांवड़, एक जैसी नहीं होती, कई तरह की कांवड़ यात्रा प्रचलन में है। क्या है इन यात्राओं में अंतर, आइए समझते हैं।

Kawad  yatra

कांवड़ यात्री | Photo Credit: FreePik

सावन के महीने की शुरुआत हो चुकी है। कावंड़िए पवित्र यात्रा पर निकल चुके हैं। गंगा और पवित्र नदियों का जल लेकर भक्त, शिव मंदिरों की ओर जा रहे हैं। कुछ भक्त गाड़ियों से कांवड़ लेकर जाते हैं, कुछ पैदल, कुछ दौड़ते हुए तो कुछ लेटकर। हर कांवड़ का संकल्प अलग होता है। कांवड़ कुल मिलाकर चार तरह की होती है। सबसे पहले साधारण कांवड़ आती है। वहीं, दूसरे स्थान पर डाक कांवड़, खड़ी कांवड़ और दंडी कांवड़ का भी प्रचलन है।


कांवड़ यात्रा का मकसद भगवान शिव को प्रसन्न करना, पापों का प्रायश्चित करना और आत्मशुद्धि प्राप्त करना होता है। कांवड़ यात्रा में हिंदू धर्म के अधिकतर लोग सात्त्विक जीवन शैली अपनाते हैं। कांवड़िया यात्रा के दौरान 'बोल बम' और 'हर हर महादेव' जैसे नारे लगाते हुए अपने नजदीकी शिवालय में जाकर जल चढ़ाते हैं। कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़िया ब्रह्मचर्य, संयम और सेवा भावना का पालन करते हैं। यह यात्रा भारत के विभिन्न भागों जैसे हरिद्वार, गंगोत्री, गढ़मुक्तेश्वर, वाराणसी और देवघर जैसे तीर्थ स्थलों से शुरू होकर प्रमुख शिव धामों तक पहुंचती है।

कांवड़ यात्रा के प्रकार

साधारण कांवड़

यह कांवड़ का सबसे साधारण या आम प्रकार माना जाता है। इसमें भक्त पवित्र नदी से जल भरकर धीरे-धीरे नजदीकी शिव मंदिर (शिवालय) तक पैदल जाते हैं। इस यात्रा में कांवड़िया बीच-बीच में आराम भी करते हैं। जरूरत पड़ने पर सीमित वाहनों का उपयोग भी करते हैं। यह कांवड़ यात्रा मुख्यतः ग्रामीणों और परिवारों के बीच लोकप्रिय है।

 

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डाक कांवड़

 

यह कांवड़ यात्रा अन्य यात्राओं से कठिन है। इसमें भक्त पवित्र नदी से जल भरकर बिना रुके और बिना आराम किए दौड़ते हुए यात्रा पूरी करते हैं। इस यात्रा में समय का विशेष ध्यान रखा जाता है। डाक कांवड़ यात्रा को अत्यधिक भक्ति और ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। इस यात्रा के दौरान कांवड़िया किसी भी प्रकार के वाहन का उपयोग नहीं करते हैं।

 

खड़ी कांवड़

 

इस कांवड़ यात्रा का सबसे मुख्य नियम यह है कि इसमें कांवड़ को जमीन पर नहीं रखा जाता है। इस यात्रा में शिवलिंग पर जल चढ़ाने तक भक्तों को बारी-बारी से कांवड़ को कंधे पर उठाना होता है। यह यात्रा अनुशासन और भक्ति की मांग करती है। इस कांवड़ यात्रा को सबसे कठिन यात्राओं में से एक माना जाता है।

 

दंडी कांवड़


दंडी कांवड़ इन सभी कांवड़ यात्राओं में सबसे कठिन कांवड़ यात्रा मानी जाती है। इसमें कांवड़िया दंड बैठक करके शिवालय तक की यात्रा पूरी करते हैं। इस यात्रा को पूरा करने में काफी समय लगता है क्योंकि इसमें दंड बैठक की स्थिति में लगातार लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। हालांकि, यह यात्रा युवा लोगों के बीच काफी लोकप्रिय है, वहीं कुछ पारंपरिक लोग इसे भक्ति से जुड़ा मानते हैं।

कांवड़ यात्रा के प्रमुख नियम

सात्त्विक जीवनशैली का पालन


कांवड़ यात्रा के दौरान भक्तों को सात्त्विक भोजन करना चाहिए। मांसाहारी भोजन, शराब और किसी भी प्रकार का नशा पूर्ण रूप से वर्जित है। कांवड़ यात्रा के दौरान भक्तों को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और शरीर की पवित्रता बनाए रखने का ध्यान रखना चाहिए।

 

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कांवड़ को जमीन पर न रखें


यह नियम विशेषतः खड़ी कांवड़ पर लागू होता है। सामान्य कांवड़ में भी यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाता है कि कांवड़ जमीन को न छुए। इसके लिए यात्रा के दौरान स्टैंड या अन्य साधनों का उपयोग किया जाता है।

 

जल चढ़ाने के नियम


कांवड़ियों को पवित्र जल सीधे शिवलिंग पर चढ़ाना चाहिए और उसमें कोई अशुद्धि नहीं होनी चाहिए। कई कांवड़िये जल लाने के बाद सीधे मंदिर जाते हैं और बिना देरी किए जल चढ़ाते हैं। विशेषकर डाक कांवड़ में समय का पालन अत्यंत आवश्यक होता है।

 

‘बोल बम’ का जाप

 

यात्रा के दौरान भक्त 'बोल बम', 'हर हर महादेव' और 'बाबा बर्फानी की जय' जैसे नारे लगाते रहते हैं। इससे वातावरण भक्तिमय होने के साथ-साथ मानसिक एकाग्रता में भी मदद मिलती है।

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