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यहां पूरी होती है हर मनोकामना, जानिए टपकेश्वर महादेव के बारे में

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में प्रकृति की गोद में एक बेहद प्राचीन मंदिर है। यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पूजा-पाठ और भगवान शिव के दर्शन करने आते हैं।

Tapkeshwar Temple.

टपकेश्वर महादेव मंदिर। (Photo Credit: Social media)

देवभूमि उत्तराखंड में भगवान भोलेनाथ का एक बेहद प्राचीन मंदिर है। मंदिर का उल्लेख महाभारत और रामायण में भी मिलता है। हर साल लाखों श्रद्धालु यहां दर्शन को आते हैं। हाल ही में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी इस प्राचीन मंदिर पहुंचे और पूजा-पाठ की। यह मंदिर है उत्तराखंड के राजधानी में स्थित ‘टपकेश्वर महादेव मंदिर’। सीएम धामी ने लिखा, 'देहरादून में स्थित ‘टपकेश्वर महादेव मंदिर’ लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। यह पावन स्थान न केवल धार्मिक मान्यताओं के लिए बल्कि अपनी अद्भुत प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी विख्यात है। यहां स्थित पवित्र शिवलिंग पर गुफा की छत से निरंतर जल की बूंदें टपकती रहती है। देहरादून आगमन पर इस दिव्य मंदिर के दर्शन अवश्य करें।
   
पौराणिक मान्यता कहती है कि भगवान शिव ने यहां देवेश्वर के रूप में दर्शन दिया था। मंदिर के प्राचीन शिवलिंग पर एक चट्टान से पानी की बूंदे लगातार टपकती हैं। इसी कारण से ही इस मंदिर को 'टपकेश्वर महादेव मंदिर' के नाम से जाना जाता है। देहरादून में यह मंदिर टोंस नदी के किनारे पर स्थित है। द्वापर युग में टोंस को तमसा के नाम से जाना जाता था। मंदिर का मुख्य गर्भगृह एक गुफा के अंदर स्थित है। यहां दो शिवलिंग हैं। मंदिर के पास ही मां संतोषी की भी गुफा है।

 

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प्रकृति की गोद में है मंदिर

मंदिर के आस-पास कई झरने हैं। यहां प्रकृति का सुरम्य वातावरण लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करता है। मंदिर दो पहाड़ियों के बीच में स्थित है। सावन के महीने में मंदिर में मेला लगता है। मान्यता यह है कि यहां मांगी गई भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। अगर आप यहां जाना चाहते हैं तो सबसे नजदीक देहरादून बस और रेलवे स्टेशन हैं। शहर से मंदिर की दूरी महज 6 किमी है और यह गढ़ी कैंट में स्थित है। 

 

 

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गुरु द्रोणाचार्य ने यहां 12 साल तक की पूजा-अर्चना

पौराणिक मान्यता के मुताबिक टपकेश्वर मंदिर में स्थित गुफा गुरु द्रोणाचार्य का निवास स्थान है। माना यह भी जाता है कि उनके बेटे अश्वत्थामा का जन्म भी यही हुआ था। पौराणिक कथा के मुताबिक अश्वत्थामा की मां उन्हें दूध पिलाने में असमर्थ थीं। इसके बाद भगवान शिव की पूजा-अर्चना की। भगवान शिव की कृपा से गुफा की छत से दूध की धारा शिवलिंग पर बहने लगी। कलयुग में यह धारा पानी में बदल गई। एक मान्यता यह भी है कि गुरु द्रोणाचार्य ने इसी गुफा में भगवान शिव की 12 वर्षों तक आराधना की। भगवान के दर्शन के बाद गुरु द्रोणाचार्य ने यहां शिवलिंग की स्थापना की। 

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