भारत के दो प्रसिद्ध सूर्य मंदिर कोणार्क और मोढेरा में स्थित हैं लेकिन यहां पूजा नहीं होती है। जानिए क्या है कारण और इनका इतिहास।
कोणार्क सूर्य मंदिर(Photo Credit: Wikimedia Commons)
भारत में कई ऐसे तीर्थ स्थल है जिनका पौराणिक और प्राचीन महत्व बहुत अधिक है। उत्तर में भोलेनाथ के धाम केदारनाथ या दक्षिण में रामेश्वरम सबका अपना-अपना एक खास इतिहास है। ये तीर्थ स्थल विभिन्न देवी-देवताओं की उपासना के लिए समर्पित हैं। हालांकि, कुछ मंदिर ऐसे भी जहां केवल पर्यटन के लिए लोग आते हैं। इनमें सूर्य देव के दो प्रमुख मंदिर कोणार्क सूर्य मंदिर और मोढेरा सूर्य मंदिर शामिल हैं।
कोणार्क सूर्य मंदिर
कोणार्क सूर्य मंदिर ओडिशा के पूरी जिले में स्थित भारत का एक अद्भुत और भव्य स्थापत्य चमत्कार है। यह मंदिर सूर्य देवता को समर्पित है और इसे विशाल रथ के आकार में बनाया गया है। इस रथ में 12 जोड़ी पत्थर के विशाल पहिए और 7 घोड़े हैं, जो सूर्य के रथ को दर्शाते हैं। मान्यता है कि सूर्य देवता के पुत्र, शंभा को एक शाप के कारण कोढ़ हो गया था। उन्हें सलाह दी गई कि वे समुद्र के किनारे सूर्य की आराधना करें। शंभा ने वर्षों तक तप किया और सूर्य ने उन्हें दर्शन देकर ठीक कर दिया। कृतज्ञ होकर शंभा ने यहां सूर्य मंदिर बनवाया। हालांकि, इसका पुनर्निर्माण गंगा वंश के राजा नरसिंह देव प्रथम करवाया था। बता दें कि मंदिर को इस प्रकार बनाया गया है कि सूर्य की पहली किरण मुख्य गर्भगृह पर सीधे पड़ती थी। इसकी नक्काशी, मूर्तिकला और संरचना इतनी अद्वितीय है कि इसे 'ब्लैक पैगोडा' कहा गया।
कोणार्क मंदिर अब एक ऐतिहासिक धरोहर बन गया है लेकिन यहां सक्रिय पूजा 16वीं शताब्दी के बाद से बंद हो गई। इसके कई कारण माने जाते हैं:
विदेशी आक्रमण: मुस्लिम आक्रमणों के समय मंदिर को काफी नुकसान पहुंचा। कहा जाता है कि कलापहाड़ नामक एक सेनापति ने इस मंदिर को नुकसान पहुंचाया और इसका गर्भगृह तोड़ दिया।
गर्भगृह का ढह जाना: मंदिर का मुख्य भाग (शिखर) समय के साथ ढह गया, जिससे अंदर पूजा करना असंभव हो गया।
आस्था का केंद्र बदलना: बाद में पुजारियों और श्रद्धालुओं ने पास के पुरी के जगन्नाथ मंदिर को पूजा का मुख्य केंद्र बना लिया।
आज यह मंदिर यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित है और केवल ऐतिहासिक दर्शन के लिए खुला रहता है।
मोढेरा सूर्य मंदिर
मोढेरा सूर्य मंदिर(Photo Credit: Wikimedia Commons)
गुजरात के मोढेरा क्षेत्र में स्थित यह सूर्य मंदिर भी सूर्य भगवान को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है, जिसे चालुक्य वंश के राजा भीमदेव प्रथम ने 11वीं शताब्दी (1026 ई.) में बनवाया था। यहां की मान्यता भी शंभा से जुड़ी है, जहां उन्होंने सूर्य की तपस्या कर अपने रोग से मुक्ति पाई थी। इसके अलावा, कहा जाता है कि स्वयं भगवान राम ने रावण वध के पश्चात अपने दोषों के निवारण के लिए यहां सूर्य की आराधना की थी।
मंदिर की वास्तुकला
मंदिर तीन मुख्य भागों में बंटा है, जिसमें से एक भाग में सूर्य कुंड है, जहां स्नान कर भक्त मंदिर में प्रवेश करते थे। एक भाग में सभा मंडप है, यह एक सुंदर हॉल है जहां नृत्य और धार्मिक गतिविधियां होती थीं। वहीं तीसरा और मुख्य भाग गर्भगृह है, जहां सूर्य देव की मूर्ति स्थापित थी और सुबह की पहली किरण सीधे मूर्ति पर पड़ती थी।