महाशिवरात्रि के दिन देशभर के विभिन्न भगवान शिव को समर्पित विभिन्न मंदिरों में भक्तों की बड़ी संख्या में भीड़ उमड़ती है। उन्हीं तीर्थ स्थलों में से एक है, प्रयागराज का कोटेश्वर महादेव मंदिर, जिसे श्रद्धालु अत्यंत आस्था के साथ पूजते हैं। यह मंदिर गंगा के किनारे स्थित है और इसके बारे में मान्यता है कि स्वयं भगवान शिव यहां उपस्थित हैं। इस मंदिर का उल्लेख कई पौराणिक ग्रंथों में मिलता है और यह धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
कोटेश्वर महादेव मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, त्रेतायुग में जब भगवान श्री राम अपने वनवास के दौरान प्रयागराज पहुंचे, तब उन्होंने यहां गंगा तट पर शिवलिंग स्थापित कर महादेव की उपासना। मान्यता है कि इस स्थान पर तपस्या करने से करोड़ों पुण्यों की प्राप्ति होती है, इसलिए इसे 'कोटेश्वर' नाम दिया गया।
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एक अन्य कथा के अनुसार, एक समय पर एक ऋषि ने यहां कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। ऋषि ने प्रार्थना की कि इस स्थान पर शिव का वास सदा बना रहे ताकि यहां आने वाले हर भक्त को मोक्ष प्राप्त हो सके। भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और तभी से यह स्थान कोटेश्वर महादेव के रूप में प्रसिद्ध हो गया।
कोटेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास
ऐतिहासिक रूप से इस मंदिर का उल्लेख कई प्राचीन ग्रंथ और धार्मिक साहित्य में मिलता है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण सैकड़ों वर्ष पूर्व हुआ था और समय-समय पर इसका जीर्णोद्धार किया गया। मुगलों के शासनकाल में इसे बहुत क्षति पहुंचाई गई लेकिन श्रद्धालुओं ने इसे फिर स्थापित किया। वर्तमान में यह मंदिर एक भव्य स्वरूप में स्थित है, जहां प्रतिदिन भक्तों की भीड़ उमड़ती है।
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कोटेश्वर महादेव मंदिर का धार्मिक महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो भी श्रद्धालु यहां आकर सच्चे मन से पूजा करता है, उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।खासकर महाशिवरात्रि के अवसर पर विशेष अनुष्ठान होते हैं, जिसमें शिवभक्त बड़ी संख्या में शामिल होते हैं। कहा जाता है जो भी भक्त इस तीर्थस्थल पर भगवान शिव की विधिवत उपासना करते हैं, उन्हें करोड़ों शिवलिंग के उपासना का पुण्य मिलता है और व्यक्ति जीवन-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।