कहीं युद्ध, कहीं प्रेम, कहीं पलायन, कृष्ण विवाह कहानियां क्या हैं?
धर्म-कर्म
• NEW DELHI 12 Aug 2025, (अपडेटेड 13 Aug 2025, 12:53 PM IST)
श्रीमद्भागवत पुराण में वर्णित है कि भगवान श्रीकृष्ण की 8 पटरानियां थीं और 16100 रानियां थी। श्रीकृष्ण की आठ पटरानियों से जुड़ी कथाएं पुराणों और महाभारत में विस्तार से मिलती हैं।

श्रीकृष्ण और उनकी पत्नियों की प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo Credit: AI
भगवान कृष्ण, भगवान विष्णु के पूर्ण अवतार कहे जाते हैं। उन्होंने कई ऐसी लीलाएं कीं, जिन्हें कोई और नहीं कर सकता था। चाहे युद्ध में अदम्य वीरता दिखानी हो या रण छोड़कर भाग जाना हो, उन्होंने प्रचलित सिद्धांतों से अलग, कई काम किए, जो सामान्य जीवन में अनुकरणीय नहीं हो सकते हैं। श्रीमद्भागवत पुराण में यह कथा आती है कि श्रीकृष्ण की आठ मुख्य पत्नियां थीं, जिन्हें 'अष्टभार्या' कहा जाता है। पुराणों के अनुसार, रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवती, कालिंदी, मित्रवृन्दा (या मित्राविंदा), नाग्नजिति (या सात्या), भद्रा और लक्ष्मणा से श्रीकृष्ण का विवाह हुआ था। पुराणों में इन्हें श्रीकृष्ण की 8 पटरानियों के रूप में माना जाता था। इन सभी से जुड़ी कथाएं पुराणों और महाभारत में विस्तार से मिलती हैं।
इन अष्टभार्याओं के अलावा, महाभारत और भागवत पुराण में वर्णन है कि नरकासुर का वध करने के बाद श्रीकृष्ण ने 16,100 बंदी राजकुमारियों को मुक्त कर उनसे विवाह किया था जिससे उनका समाज में सम्मान बना रहे। इस प्रकार, भगवान श्रीकृष्ण का विवाह केवल प्रेम या शक्ति के लिए नहीं, बल्कि धर्म और मर्यादा की रक्षा के लिए भी हुआ था।
कैसे हुआ श्रीकृष्ण और रुक्मिणी का विवाह?
इन्हें श्रीकृष्ण की पहली और सबसे प्रिय पत्नी माना जाता है। रुक्मिणी विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री थीं। उनका विवाह शिशुपाल से तय हुआ था लेकिन वह मन ही मन कृष्ण को चाहती थीं। उन्होंने श्रीकृष्ण को पत्र भेजकर अपने अपहरण का अनुरोध किया। कथाओं केश्रीकृष्ण ने रुक्मिणी का स्वयंवर में ही हरण कर लिया।
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कैसे हुआ था सत्यभामा से श्रीकृष्ण का विवाह?
सत्यभामा के पिता राजा सत्राजित यदुवंशी राजा थे। एक बार सूर्यदेव सत्राजित से खुश होकर उन्हें स्यमंतक मणि नाम का अद्भुत रत्न दिया था। मान्यता के अनुसार, यह एक ऐसी मणि थी, जो रोज सोने का ढेर उत्तपन्न करती थी।
एक दिन सत्राजित के भाई प्रसेन यह मणि पहनकर शिकार पर निकले लेकिन जंगल में शेर ने उनकी हत्या कर दी। शेर को मारकर जाम्बवान (जामवंत) मणि को लेकर अपनी गुफा में चले गए। मान्यताओ के अनुसार, द्वारका में अफवाह फैल गई कि मणि के लालच में कृष्ण ने प्रसेन की हत्या कर दी। आरोप से आहत श्रीकृष्ण जंगल में खोज के लिए निकले। लंबी तलाश के बाद वह जाम्बवान की गुफा में पहुंचे और 28 दिन तक उनका युद्ध चला। अंत में जाम्बवान ने पहचान लिया कि श्रीकृष्ण वही भगवान राम हैं, जिनकी वह पहले सेवा कर चुके थे। उन्होंने क्षमा मांगी, मणि लौटा दी और अपनी पुत्री जाम्बवती का विवाह श्रीकृष्ण से कर दिया।
श्रीकृष्ण मणि लेकर द्वारका लौटे और सत्राजित को सौंप दी। श्रीकृष्ण की ईमानदारी और वीरता से प्रभावित होकर सत्राजित ने अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह उनसे कर दिया। मान्यता है कि विवाह में दहेज के रूप में उन्होंने स्यमंतक मणि भी कृष्ण जी को भेंट की थी।
सत्यभामा अपने साहस, सुंदरता और कभी-कभी नटखट अभिमान के लिए प्रसिद्ध थीं। आगे चलकर पारिजात पुष्प की कथा में भी उनका नाम अमर हुआ, जब श्रीकृष्ण ने इंद्रलोक से पारिजात वृक्ष लाकर उन्हें उपहार दिया।
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जाम्बवती कैसे हुई श्रीकृष्ण की शादी?
इनके विवाह की कथा एक मणि से जुड़ी हुई है। एक दिन राजा सत्राजित के भाई प्रसेन मणि पहनकर शिकार पर निकले लेकिन जंगल में शेर ने उनकी हत्या कर दी। शेर को मारकर जाम्बवान (जामवंत) मणि को लेकर अपनी गुफा में चले गए। मान्यताओ के अनुसार, द्वारका में अफवाह फैल गई कि मणि के लालच में कृष्ण ने प्रसेन की हत्या कर दी।
आरोप से आहत श्रीकृष्ण जंगल में खोज के लिए निकले। लंबी तलाश के बाद वह जाम्बवान की गुफा में पहुंचे और 28 दिन तक उनका युद्ध चला। अंत में जाम्बवान ने पहचान लिया कि श्रीकृष्ण वही भगवान राम हैं, जिनकी वह पहले सेवा कर चुके थे। उन्होंने क्षमा मांगी, मणि लौटा दी और अपनी पुत्री जाम्बवती का विवाह श्रीकृष्ण से कर दिया था।
भगवान श्रीकृष्ण से कैसे हुआ कालिंदी का विवाह?
कालिंदी, सूर्यदेव की पुत्री थीं और यमुना नदी की अधिष्ठात्री देवी के रूप में पूजित होती हैं। कथा के अनुसार, कालिंदी का हृदय बचपन से ही भगवान कृष्ण को पति के रूप में पाने की लालसा से भरा था। उन्होंने प्रण लिया कि जब तक श्रीकृष्ण स्वयं उनसे विवाह नहीं करेंगे, तब तक वे कठोर तपस्या करती रहेंगी।
एक दिन श्रीकृष्ण अर्जुन को साथ लेकर वन विहार पर निकले थे। जिस वन वह विहार कर रहे थे, वहां उन्होंने एक सुंदर, तेजोमयी युवती को कुटिया में तपस्या करते देखा। श्रीकृष्ण ने उनसे परिचय पूछा, तो कालिंदी ने बताया, 'मैं सूर्यदेव की पुत्री हूं। मैंने आपको पति के रूप में पाने का संकल्प लिया है और जब तक आप स्वीकार नहीं करेंगे, मैं यहीं तपस्या करती रहूंगी।'
श्रीकृष्ण उनकी भक्ति और दृढ़ निश्चय से अत्यंत प्रसन्न हुए। उनकी मनोकामना पूर्ण करने के लिए भगवान कृष्ण ने उनसे शादी की थी।
भगवान कृष्ण और मित्राविंदा के विवाह की कथा
पहली कथा के अनुसार मित्रविन्दा के भाई विन्द और अनुविन्द उसका विवाह दुर्योधन से करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने रीति रिवाज के अनुसार स्वयंवर का आयोजन किया और बहन को समझाया कि वरमाला दुर्योधन के गले में ही डाले। जब श्रीकृष्ण को इस बात का पता चला की बलपूर्वक दुर्योधन के गले में वरमाला डलवाई जाएगी तो उन्होंने भरी सभा में मित्रवन्दा का हरण किया और विन्द एवं अनुविन्द को पराजित कर मित्रविन्दा को द्वारिका ले गए। वहां उन्होंने विधिवत रूप से मित्रविन्दा से विवाह किया।
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दूसरी कथा के अनुसार विन्द और अनुविन्द ने स्वयंवर आयोजित किया तो इस बात की खबर बलराम को भी चली। स्वयंवर में रिश्तेदार होने के बावजूद भी भगवान कृष्ण और बलराम को न्योता नहीं था। बलराम को इस बात पर क्रोध आया। बलराम ने कृष्ण को बताया कि स्वयंवर तो एक ढोंग है। मित्रविन्दा के दोनों भाई उसका विवाह दुर्योधन के साथ करना चाहते हैं। दुर्योधन भी ऐसा करके अपनी शक्ति बढ़ाना चाहता है। युद्ध में अवंतिका के राजा दुर्योधन को ही समर्थन देंगे। बलराम ने श्रीकृष्ण को यह भी बताया कि मित्रविन्दा तो आपसे प्रेम करती है फिर आप क्यों नहीं कुछ करते हो? यह सुनकर भगवान कृष्ण अपनी बहन सुभद्रा के साथ अवंतिका पहुंचे। उनके साथ बलराम भी थे।
श्रीकृष्ण ने सुभद्रा को मित्रविन्दा के पास भेजा यह पुष्टि करने के लिए कि मित्रविन्दा उन्हें चाहती है या नहीं। मित्रविन्दा ने सुभद्रा को अपने मन की बात बता दी। मित्रविन्दा के प्रेम की पुष्टि होने के बाद श्रीकृष्ण और बलराम ने स्वयंवर स्थल पर धावा बोल दिया और मित्रविन्दा का हरण करके ले गए। इस दौरान उनको दुर्योधन, विन्द और अनुविन्द से युद्ध करना पड़ा। सभी को पराजित करने के बाद वे मित्रविन्दा को द्वारिका ले गए और वहां जाकर उन्होंने विधिवत विवाह किया।
नाग्नजिति (सात्या) के विवाह की कथा
भगवान कृष्ण की पांचवी पत्नी सात्या थीं। इनका नाम नाग्नजिति भी था। नाग्नजिति, राजा नग्नजित की पुत्री थीं। राजा ने अपनी बेटी की इच्छा के अनुसार ऐसा स्वयंवर रखा, जो केवल श्रीकृष्ण जीत सकते थे। स्वयंवर की शर्त थी कि जो भी सात पागल सांडो को एक ही अखाड़े में नाथेगा, वही सत्या का पति होगा। कृष्णजी ने शर्त पूरी कर स्वयंवर जीता और सत्या से विवाह किया।
कौन थीं भद्रा कैसे हुआ था विवाह?
भद्रा, भगवान श्रीकृष्ण की अष्टमहिषियों (आठ प्रमुख पत्नियों) में से एक थीं। वह श्रीकृष्ण की चचेरी बहन भी थीं, क्योंकि भद्रा महात्मा श्रुतकीर्ति की पुत्री थीं और श्रुतकीर्ति, कृष्ण जी के पिता वसुदेव की बहन थीं।
मान्यताओं के अनुसार, भद्रा का बचपन से ही मन भगवान कृष्ण में रमा हुआ था। उन्होंने यह निश्चय कर लिया था कि वह केवल कृष्ण को ही अपना पति बनाएंगी। भद्रा की माता और पिता भी इस संकल्प से सहमत थे। जब भद्रा विवाह योग्य हुईं, तो उन्होंने स्वयंवर की परंपरा का पालन करने के बजाय सीधे अपने माता-पिता से निवेदन किया कि वे उनका विवाह श्रीकृष्ण से करा दें।
मान्यता है कि श्रुतकीर्ति और उनके पति ने वसुदेव से बात की और श्रीकृष्ण को विवाह का प्रस्ताव भेजा। भगवान ने प्रसन्नतापूर्वक यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। फिर विधि-विधान से, मंगलमय वातावरण में, भद्रा का विवाह द्वारका में श्रीकृष्ण से संपन्न हुआ।
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कैसे हुआ था लक्ष्मणा और श्रीकृष्ण का विवाह?
मान्यताओं के अनुसार, लक्ष्मणा मद्र देश के राजा वृहत्सेना की राजकुमारी थी, जो श्री कृष्ण से असीम प्रेम करती थी। उनके पिता समेत उनका परिवार श्री कृष्ण के साथ उनके विवाह के विपरीत था।
श्रीमद्भागवत महापुराण की मानें तो जब भगवान श्रीकृष्ण को इस बात का पता चला कि लक्ष्मणा उनसे प्रेम करती है और उनसे विवाह करना चाहती हैं, ऐसे में वह अकेले ही लक्ष्मणा का हरण करके उन्हें अपने साथ ले आए थे। कहा जाता है कि जैसे गरुड़ ने स्वर्ग से अमृत का हरण किया था, वैसे ही भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयंवर में अकेले ही लक्ष्मणा को हर लिया था।
इसके अलावा लक्ष्मणा के विवाह से जुड़ी एक मान्यता ये भी प्रचलित है कि इनके पिता ने इनके लिए अच्छा वर ढूंढने के लिए स्वयंवर प्रतियोगिता का आयोजन किया था जिसमें पानी में मछली की परछाई देखकर मछली पर निशाना लगाना निश्चित हुआ था।
कथाओं के अनुसार कृष्ण ने पानी में मछली की परछाई को देखकर निशाना लगाया और स्वयंवर में विजयी होकर लक्ष्मणा को जीत लिया, जिसके बाद उन दोनों का विवाह संपन्न करवाया गया था।
इसके अतिरिक्त अन्य मान्यता के अनुसार भगवन कृष्णा ने जरासंध, दुर्योधन और अर्जुन सहित कई सारे योद्धाओं को धनुष प्रतियोगिता में हराकर लक्ष्मण को हासिल किया था।
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