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यहां विश्राम करते हैं भगवान विष्णु, ब्रह्मांड का केंद्र है 'क्षीरसागर'

क्षीरसागर को भगवान विष्णु का निवास स्थान कहा जाता है। आइए जानते हैं क्या है इस स्थान से जुड़ी खास बातें और इसका महत्व।

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क्षीरसागर में निवास करते हैं भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी।(Photo Credit: AI Image)

हिंदू धर्म में भगवान विष्णु को सृष्टि के पालनहार के रूप में पूजा जाता है। बता दें कि भगवान विष्णु साल में देवशयनी एकादशी के दिन से 4 महीने अपने निवास स्थान पर विश्राम करते हैं, जिसे चातुर्मास कहा जाता है। वेद एवं पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु का निवास स्थान क्षीरसागर है, जिसे 'दूध का महासागर' भी कहा जाता है। यह कोई सामान्य सागर नहीं, बल्कि एक दिव्य और अलौकिक समुद्र है जहां समय व संसार के नियम वैसे नहीं चलते जैसे पृथ्वी पर होते हैं।

 

क्षीरसागर का उल्लेख वेदों, पुराणों और महाकाव्यों में बार-बार मिलता है। यह ब्रह्मांड के मध्य में स्थित एक दिव्य समुद्र है, जो शुद्धता, अमरत्व और आध्यात्मिक ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। यह सागर भगवान विष्णु के विश्राम स्थल के रूप में वर्णित है, जहां वह शेषनाग (अनंत नाग) की शैय्या पर लेटे रहते हैं और उनके देवी लक्ष्मी भी रहती हैं।

 

यह स्थान केवल एक महासागर नहीं है, बल्कि यह सृष्टि के रचना, पालन और संहार में अहम भूमिका निभाती है। विष्णु वहां योगनिद्रा में रहते हैं और संपूर्ण ब्रह्मांड उनके भीतर स्थित माना जाता है। कहा जाता है कि क्षीरसागर में समय ठहर जाता है और सिर्फ दिव्य ऊर्जा का अनुभव होता है।

 

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क्षीरसागर में क्या-क्या होता है?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन की घटना इसी क्षीरसागर में घटित हुई थी, जिसमें देवताओं और असुरों ने मिलकर मंदार पर्वत को मथनी और वासुकी नाग को रस्सी बनाकर समुद्र को मथा था। इस मंथन से 14 रत्न निकले थे, जिनमें लक्ष्मी जी, अमृत, ऐरावत हाथी, कामधेनु, कल्पवृक्ष, धन्वंतरि आदि थे। लक्ष्मी जी जब समुद्र से प्रकट हुईं, तब उन्होंने भगवान विष्णु को पति रूप में वरण किया और तभी से दोनों क्षीरसागर में निवास करते हैं।


क्षीरसागर में श्वेत प्रकाश, अमृत समान लहरें और दिव्य ऊर्जा की लहरें होती हैं। वहां कोई दुख, बीमारी या क्लेश नहीं होता। यह स्थान केवल योगियों, ऋषियों और सिद्ध पुरुषों की ध्यानावस्था में अनुभव किया जा सकता है। यह एक प्रकार का ब्रह्मांड के संतुलन का केंद्र है।

वेदों में वर्णित सात समुद्र

वेदों और पुराणों में 'सप्त सागर' की अवधारणा भी आती है। ये सात समुद्र अलग-अलग तत्वों, गुणों और चेतना के स्तरों को दर्शाते हैं। यह सभी 7 सागर हैं- 

लवण (नमक) सागर

यह समुद्र खारे पानी का है, जिसे आज के समुद्रों जैसा माना जा सकता है। यह सबसे पहला और बाहरी सागर माना गया है, जो जंभूद्वीप को घेरता है। यह समुद्र संसार की कठोरता, अनुभवों की तीव्रता और जीवन के संघर्षों का प्रतीक माना जाता है।

 

इक्षुरस (गन्ने के रस) सागर

यह मीठे गन्ने के रस से भरा हुआ बताया गया है। इसका संबंध जीवन की मधुरता और सुखद अनुभवों से है। यह सागर हमें यह सिखाता है कि जीवन में संघर्षों के बाद भी आनंद की धारा संभव है।

सुरा (मदिरा) सागर

इस सागर को मदिरा से भरा बताया गया है, जो चेतना को भ्रमित करने वाले तत्वों का प्रतीक है। यह व्यक्ति के मोह, माया और भटकाव का सूचक है। यह सागर दर्शाता है कि जीवन में विवेकहीनता कैसे चेतना को नीचे खींच सकती है।

घृत (घी) सागर

यह सागर घी से भरा हुआ है, जो पवित्रता, पोषण और ऊर्जावान जीवन का प्रतीक है। यह सागर दिव्यता और तपस्या से अर्जित ऊर्जा को दर्शाता है।

क्षीर (दूध) सागर

यह समुद्र सबसे पवित्र माना गया है और भगवान विष्णु का निवास स्थल भी यही है। दूध शुद्धता, ज्ञान और आत्मिक शांति का प्रतीक है। यह आत्मा की उस अवस्था को दर्शाता है जहां वह परमात्मा से एकाकार होती है।

दधि (दही) सागर

यह सागर स्थिरता, गाढ़े विचार और गहराई का संकेत देता है। जैसे दही दूध से परिपक्व होकर बनता है, वैसे ही यह चेतना की परिपक्व अवस्था को दर्शाता है।

शुद्ध जल सागर

यह सागर शुद्ध जल से भरा है और इसे सबसे भीतर माना गया है। यह मन की निर्मलता, संयम और आध्यात्मिक शांति का प्रतिनिधि है।

 

इनमें क्षीरसागर को सबसे दिव्य और सात्विक माना गया है क्योंकि यह भगवान विष्णु का निवास स्थान है। यह सातों सागर ब्रह्मांड के सात द्वीपों के चारों ओर स्थित बताए जाते हैं, जैसे जंभूद्वीप, प्लक्षद्वीप आदि।

 

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दार्शनिक दृष्टि से क्षीरसागर

योग और वेदांत दर्शन के अनुसार क्षीरसागर केवल कोई भौतिक जलाशय नहीं बल्कि चेतना की गहराई का प्रतीक है। जिस प्रकार दूध में मक्खन छिपा होता है, उसी प्रकार आत्मा की दिव्यता इस संसार रूपी सागर में छिपी होती है। क्षीरसागर में भगवान विष्णु का विश्राम इस बात का संकेत है कि जब आत्मा ध्यान और साधना में स्थित होती है, तब वह परम शांत, स्थिर और संतुलित अवस्था में प्रवेश करती है।

 

शेषनाग 'अनंतता' और 'समय' का प्रतीक है। भगवान विष्णु पालक हैं, जो संतुलन बनाए रखते हैं और लक्ष्मी जी समृद्धि और ऊर्जा की द्योतक हैं। जब ये तीनों क्षीरसागर में एक साथ होते हैं, तो वह स्थिति ब्रह्मांडीय संतुलन और शांति की सर्वोच्च अवस्था मानी जाती है।

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