उत्तराखंड की देवभूमि में कई शक्तिपीठ स्थित हैं, जिनमें से एक प्रमुख और प्रसिद्ध मंदिर है मां कुंजापुरी देवी मंदिर, जो टिहरी गढ़वाल जिले में स्थित है। यह मंदिर मां दुर्गा के शक्तिशाली रूप को समर्पित है और हर साल हजारों श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं। यह न सिर्फ एक धार्मिक स्थल है, बल्कि एक अद्भुत प्राकृतिक दृश्य वाला स्थान भी है जहां से हिमालय की चोटियां और सूर्योदय का दृश्य मन मोह लेता है। हम जानेंगे मां कुंजापुरी मंदिर की पौराणिक कथा, मान्यताएं और ऐतिहासिक जानकारी, आसान और साफ़ भाषा में।
मां कुंजापुरी मंदिर, उत्तराखंड राज्य के टिहरी गढ़वाल जिले में स्थित है। यह स्थान ऋषिकेश से लगभग 27 किलोमीटर दूर है और समुद्र तल से लगभग 1,676 मीटर (5,500 फीट) की ऊंचाई पर बसा हुआ है। मंदिर तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं लेकिन ऊपर पहुंचने पर मिलने वाला दृश्य बेहद आकर्षक और शांति से भरा होता है।
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पौराणिक कथा: मां सती और शिव का संबंध
मां कुंजापुरी मंदिर से जुड़ी कथा दक्ष प्रजापति और उनकी पुत्री सती की है, जो हिंदू धर्म की बहुत प्रसिद्ध कहानी है। कथा के अनुसार, देवी सती ने भगवान शिव से विवाह किया था लेकिन उनके पिता दक्ष को शिव का यह विवाह स्वीकार नहीं था। एक बार दक्ष ने एक विशाल यज्ञ आयोजित किया और जानबूझकर शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया। सती को जब यह अपमान सहन नहीं हुआ, तब उन्होंने उसी यज्ञ में आग में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए।
जब भगवान शिव को यह ज्ञात हुआ, तो वे क्रोधित हो गए और उन्होंने सती के मृत शरीर को उठाकर आकाश में तांडव करना शुरू कर दिया। इससे सृष्टि का संतुलन बिगड़ गया। तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। जहां-जहां सती के अंग गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ बने। कुंजापुरी मंदिर उस स्थान पर बना है जहां मां सती का ऊपरी शरीर या छाती (कुंज) गिरा था। इसलिए इसे ‘कुंजापुरी’ कहा गया।
मां कुंजापुरी मंदिर की धार्मिक मान्यताएं
यह स्थान 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। मान्यता है कि मां कुंजापुरी देवी हर संकट से अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। यहां नवरात्रों में विशेष पूजा और मेले का आयोजन होता है, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। जो भक्त सच्चे मन से मां की आराधना करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
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मंदिर से जुड़ी खास बातें
मंदिर की ऊंचाई ऐसी है कि वहां से पूर्व में सूर्योदय का अद्भुत दृश्य दिखाई देता है, पश्चिम में हरिद्वार, ऋषिकेश और डून घाटी तक नजारा देखा जा सकता है और उत्तर दिशा में बर्फ से ढकी हुई हिमालय की चोटियां- जैसे स्वर्गारोहिणी, चौखंबा और बंदरपूंछ पर्वत दिखाई देते हैं।
यह मंदिर सैकड़ों वर्षों पुराना माना जाता है, और स्थानीय राजाओं द्वारा इसकी देखभाल की जाती थी। वर्तमान में इसे उत्तराखंड सरकार और मंदिर समिति के माध्यम से संरक्षित किया जा रहा है। मंदिर परिसर में देवी की मूर्ति को सजीव रूप में पूजा जाता है और प्रतिदिन आरती होती है।