लाखामंडल मंदिर उत्तराखंड के देहरादून जिले में स्थित एक बहुत प्राचीन और पवित्र शिव मंदिर है। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व भी बहुत गहरा है। यह स्थान अपनी गुफाओं, प्राचीन संरचनाओं और विशेष धार्मिक मान्यताओं के लिए भी प्रसिद्ध है। लाखामंडल मंदिर यमुना नदी के किनारे, पहाड़ों से घिरे एक शांत वातावरण में स्थित है, जहां आने वाले श्रद्धालुओं को आत्मिक शांति और अद्भुत ऊर्जा का अनुभव होता है।
लाखामंडल मंदिर का संबंध महाभारत काल से भी जुड़ा हुआ है। लाखामंडल मंदिर न केवल शिवभक्तों के लिए एक तीर्थस्थल है, बल्कि यह एक ऐसा स्थल है जहां इतिहास, पौराणिकता और आध्यात्मिकता एक साथ देखने को मिलती है। यहां आने से न केवल धार्मिक संतुष्टि मिलती है, बल्कि मन को गहरी शांति और ऊर्जा भी प्राप्त होती है। गुप्त सुरंगों, प्राचीन मूर्तियों और रहस्यमय शिवलिंग के दर्शन हर किसी के लिए अविस्मरणीय अनुभव साबित होते हैं।
लाखामंडल मंदिर की विशेषता
लाखामंडल मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यहां भगवान शिव की पूजा 'शिवलिंग' के रूप में होती है, जो विशेष रूप से ग्रेफाइट (लेखन पत्थर) से बना हुआ है। जब श्रद्धालु इस शिवलिंग पर जल या तेल चढ़ाते हैं, तो वह पत्थर चमकने लगता है और उसमें लोगों की छाया प्रतिबिंबित (रिफ्लेक्शन) होती है। इस रहस्यमयी चमक और छाया की वजह से यह शिवलिंग बहुत अद्भुत माना जाता है।
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मंदिर परिसर में कई छोटे-छोटे प्राचीन मंदिर भी हैं, जिनमें देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। यहां की मूर्तियों की बनावट और वास्तुकला गुप्त और वर्धन काल की बताई जाती हैं, जो इस मंदिर को ऐतिहासिक रूप से भी महत्वपूर्ण बनाती है।

पौराणिक मान्यताएं
मान्यताओं के अनुसार, प्रसिद्ध तीर्थस्थल लाखामंडल मंदिर में विश्व का पहला शिवलिंग स्थापित है। लिंग पुराण में ब्रह्मा जी और विष्णु जी के बीच हुए संघर्ष का वर्णन है, जिसके परिणामस्वरूप भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त हुआ और इस मंदिर की स्थापना हुई थी। मान्यता है कि इस मंदिर में अनोखे अनुष्ठान होते हैं, जिनमें यह मान्यता भी शामिल है कि यहां आने के बाद मृत व्यक्ति कुछ समय के लिए पुनर्जीवित हो जाते हैं।
एक अन्य किंवदंती के अनुसार, इस मंदिर का अस्तित्व महाभारत में पांडवों के अज्ञातवास के दौरान युधिष्ठिर से जुड़ा है। जब कौरवों ने पांडवों को जिंदा जलाने की साजिश रची थी और मां शक्ति ने पांडवों को बचा लिया था।
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एक अन्य कथा के अनुसार, महाभारत काल में पांडवों ने यहां एक लाख शिवलिंगों की स्थापना की थी, जिसकी वजह से इस स्थान लाखामंडल के नाम से जानते हैं। यह भी मान्यता है कि इस स्थान पर भगवान शिव ने भी कुछ समय ध्यान लगाया था, जिससे यह और अधिक पवित्र हो गया।
धार्मिक मान्यताएं
लाखामंडल मंदिर को मोक्षदायिनी भूमि माना जाता है। स्थानीय लोगों का विश्वास है कि इस मंदिर में पूजा करने से पितृ दोष समाप्त होता है और पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है। यहां अक्सर श्राद्ध कर्म, तर्पण और पिंडदान जैसे धार्मिक अनुष्ठान भी किए जाते हैं।
यह भी मान्यता है कि इस स्थान पर मृत्यु के बाद मुक्ति का मार्ग खुलता है, इसलिए यहां मृतकों की अस्थियां विसर्जित करना शुभ माना जाता है। कई श्रद्धालु अपने परिजनों की आत्मा की शांति के लिए यहां विशेष पूजा करते हैं।
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मंदिर तक पहुंचने का रास्ता
लाखामंडल मंदिर देहरादून जिले में, यमुना घाटी के करीब स्थित है। यह स्थान देहरादून से लगभग 115 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
सड़क के रास्ते कैसे पहुंचे: देहरादून से वाया विकासनगर – कोटी – हनोल होते हुए लाखामंडल तक पहुंचा जा सकता है। यह सड़क पहाड़ी है लेकिन अच्छी स्थिति में है। निजी गाड़ी या टैक्सी से यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है।
नजदीकी रेलवे स्टेशन: देहरादून रेलवे स्टेशन यहां का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है। स्टेशन से टैक्सी या बस से लाखामंडल पहुंच सकते हैं।
नजदीकी एयपोर्ट: यहां का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट जौलीग्रांट एयरपोर्ट (देहरादून) है, जो इस स्थान से लगभग 140 किलोमीटर दूर है। वहां से सड़क के रास्ते से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
बस सेवा: देहरादून से लाखामंडल के लिए सीधी बस सेवा उपलब्ध नहीं है लेकिन विकासनगर या नजदीकी कस्बों तक बस मिल जाती है, वहां से टैक्सी या जीप लेकर आगे जाया जा सकता है।