हिंदू धर्म में महाकुंभ को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। महाकुंभ में अमृत स्नान का विशेष महत्व होता है। कुंभ मेले के दौरान कुछ विशेष तिथियों, जैसे अमावस्या और पूर्णिमा, के दिन अमृत स्नान किया जाता है, जिसे अत्यंत शुभ माना जाता है। महाकुंभ 2025 में अब तक दो अमृत स्नान हो चुके हैं और जल्द ही तीसरा अमृत स्नान किया जाएगा। आइए जानते हैं इस स्नान की तिथि और इसके महत्व के बारे में।
महाकुंभ 2025: तीसरा अमृत स्नान
महाकुंभ में तीसरा अमृत स्नान बसंत पंचमी के दिन किया जाएगा। वैदिक पंचांग के अनुसार, बसंत पंचमी का पर्व 3 फरवरी 2025, सोमवार को मनाया जाएगा। धर्मशास्त्रों में इस दिन के महत्व का विशेष वर्णन किया गया है। बसंत पंचमी के दिन अमृत स्नान के साथ-साथ मां सरस्वती की उपासना का भी विधान है।
बसंत पंचमी का महत्व
बसंत पंचमी को विद्या, ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से विद्यार्थी, कलाकार, संगीतकार और लेखक मां सरस्वती की पूजा करते हैं और ज्ञान, बुद्धि एवं संगीत में प्रगति की कामना करते हैं। इस पर्व को बसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक भी माना जाता है। इस दौरान सर्दियों का अंत होने लगता है और प्रकृति में नवजीवन का संचार होता है। खेतों में सरसों के पीले फूल खिलते हैं, जिससे वातावरण आनंदमय हो जाता है।
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इस दिन पीले रंग का विशेष महत्व होता है। लोग पीले वस्त्र धारण करते हैं, पीले रंग के व्यंजन बनाते हैं और मां सरस्वती को पीले फूल अर्पित करते हैं। शिक्षा और ज्ञान की महत्ता को दर्शाने वाला यह पर्व विशेष रूप से छोटे बच्चों के लिए ‘अक्षरारंभ’ (पहली बार पढ़ाई शुरू करने की परंपरा) के लिए शुभ माना जाता है।
बसंत पंचमी और महाकुंभ का संबंध
जब कुंभ मेले का आयोजन होता है और बसंत पंचमी का शुभ दिन आता है, तब इसका महत्व कई गुना बढ़ जाता है। इस दिन अमृत स्नान करने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। कुंभ मेले में बसंत पंचमी के दिन लाखों श्रद्धालु एवं साधु-संत गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में पवित्र स्नान करते हैं और सुख-समृद्धि की प्रार्थना करते हैं।
ऐसी मान्यता है कि इस दिन पवित्र स्नान करने से जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं और आत्मा शुद्ध हो जाती है। विशेष रूप से अखाड़ों के संतों का शाही स्नान बहुत महत्वपूर्ण होता है। नागा साधु, संन्यासी, महामंडलेश्वर और अन्य संतगण विशेष अनुशासन के साथ स्नान के लिए संगम तट पर आते हैं और एक दिव्य वातावरण का निर्माण करते हैं।
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