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अखाड़ों से कैसे बाहर निकाले जाते हैं महामंडलेश्वर, क्या है प्रक्रिया?

अखाड़ों के महामंडलेश्वर एक विशेष भूमिका निभाते हैं। अखाड़ों से कैसे बाहर निकाले जाते हैं 'महामंडलेश्वर'? जानते हैं क्या है प्रक्रिया?

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किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी।(Photo Credit: Wikimedia Commons)

सनातन धर्म में अखाड़ों का विशेष महत्व होता है। ये अखाड़े प्राचीन समय से ही संतों और नागा साधुओं की तपस्या, साधना और ज्ञान के केंद्र रहे हैं। अखाड़ों का संचालन एक सख्त अनुशासन और परंपरा के अनुसार होता है, जिसमें सबसे उच्च पद 'आचार्य महामंडलेश्वर' का होता है। इस उपाधि बैठे संत अखाड़े और आश्रम का प्रतिनिधित्व करते हैं और इनका कर्तव्य अखाड़े को सुचारु रूप से चलाना और सनातन धर्म के प्रति लोगों को जागरूक करना होता है।

 

हाल ही में महाकुंभ के दौरान किन्नर अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी को अखाड़े के संस्थापक ऋषि अजय दास द्वारा निष्काषित कर दिया गया था। साथ ही कुंभ के दौरान नई-नई महामंडलेश्वर बनी पूर्व बॉलीवूड अभिनेत्री ममता कुलकर्णी को भी अखाड़े से निष्काषित किया गया था।

 

बता दें कि अखाड़ों में आचार्य महामंडलेश्वर और महामंडलेश्वर का पद किसी भी संन्यासी के लिए बहुत ही उच्च माना जाता है लेकिन अगर कोई महामंडलेश्वर अखाड़े की परंपराओं और नियमों का उल्लंघन करता है, तो उन्हें पद से हटा दिया जाता है और अखाड़े से निष्कासित कर दिया जाता है।

 

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महामंडलेश्वर को हटाने के कारण

अखाड़ों में महामंडलेश्वर को तभी बाहर निकाला जाता है, जब वह अखाड़े के नियमों का पालन नहीं करते या कोई ऐसा कृत्य करते हैं, जिससे अखाड़े की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचता है। कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं:

 

नैतिक आचरण का उल्लंघन – कोई महामंडलेश्वर यदि किसी भी प्रकार के अनैतिक आचरण में लिप्त पाया जाता है, जैसे धन, सत्ता या भौतिक सुख-सुविधाओं में अधिक लिप्त होता है, तो उन्हें अखाड़े से बाहर किया जा सकता है।

 

अखाड़े के नियमों का उल्लंघन – अखाड़ों की कठोर परंपराओं का पालन अनिवार्य होता है। कोई महामंडलेश्वर यदि इन नियमों को तोड़ता है, तो उन्हें अखाड़े से निष्कासित कर दिया जाता है।

 

धार्मिक मर्यादा का उल्लंघन – हिंदू धर्म और सनातन परंपरा का पालन न करना, किसी गलत विचारधारा का प्रचार करना या समाज में भ्रम फैलाना भी निष्कासन का कारण बन सकता है।

 

राजनीति में अधिक हस्तक्षेप – अखाड़े संतों के लिए होते हैं, न कि राजनीतिक गतिविधियों के लिए। कोई महामंडलेश्वर यदि राजनीति में अधिक संलिप्त हो जाता है और अखाड़े के सिद्धांतों के विरुद्ध कार्य करता है, तो उन्हें पद से हटा दिया जाता है।

 

विवादों में शामिल होना – किसी महामंडलेश्वर का नाम यदि किसी विवाद, अपराध, भ्रष्टाचार या किसी कानूनी मामले में आता है, तो भी अखाड़ा परिषद उन्हें बाहर करने का निर्णय ले सकती है।

 

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महामंडलेश्वर को हटाने की प्रक्रिया

महामंडलेश्वर को पद से हटाने की एक निश्चित प्रक्रिया होती है, जिसे अखाड़ा परिषद और अखाड़े के वरिष्ठ संत मिलकर तय करते हैं। इस प्रक्रिया के कुछ महत्वपूर्ण चरण इस प्रकार हैं:

 

शिकायत और जांच – जब किसी महामंडलेश्वर के खिलाफ कोई शिकायत आती है या उनके किसी कृत्य पर संदेह होता है, तो अखाड़ा परिषद या संबंधित अखाड़े की एक जांच समिति बनाई जाती है। यह समिति सभी तथ्यों की जांच करती है।

 

स्पष्टीकरण मांगना – जांच में यदि महामंडलेश्वर पर लगे आरोप सही पाए जाते हैं, तो अखाड़ा परिषद उनसे स्पष्टीकरण मांगती है। उन्हें अपने पक्ष में तर्क देने का पूरा अवसर दिया जाता है।

 

बैठक और निर्णय – अखाड़ा परिषद की एक विशेष बैठक बुलाई जाती है, जिसमें सभी वरिष्ठ संत और पदाधिकारी मिलकर इस विषय पर चर्चा करते हैं। अगर अधिकतर सदस्य महामंडलेश्वर को हटाने के पक्ष में होते हैं, तो उन्हें पद से हटा दिया जाता है।

 

निष्कासन की घोषणा – यदि अखाड़ा परिषद यह तय कर लेती है कि महामंडलेश्वर को हटाया जाना चाहिए, तो एक आधिकारिक घोषणा की जाती है। इसे सार्वजनिक रूप से घोषित किया जाता है और मीडिया को भी इसकी जानकारी दी जाती है।

 

अखाड़े से निष्कासन – महामंडलेश्वर को पद से हटाने के बाद अखाड़े से निष्कासित कर दिया जाता है और उन्हें अखाड़े की किसी भी गतिविधि में भाग लेने की अनुमति नहीं होती है। कई मामलों में, उन्हें अखाड़े की संपत्ति और सुविधाओं से भी वंचित कर दिया जाता है।

 

नए महामंडलेश्वर की नियुक्ति – निष्कासित महामंडलेश्वर के स्थान पर एक नए महामंडलेश्वर की नियुक्ति की जाती है, जिसके लिए अखाड़ा परिषद एक वरिष्ठ संत का चयन करती है।

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