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महागौरी: शिव की अर्धांगिनी, जिन्हें कहते हैं वृषारूढ़ा

चैत्र नवरात्रि के आठवें दिन महागौरी की उपासना की जाती है। महागौरी आदिशक्ति हैं। आइए जानते हैं इस दिन की मान्यता, पूजा विधि और महत्व।

Mahaguri

देवी महागौरी। (Photo Credit: Social Media)

चैत्र नवरात्रि के आठवें दिन की अधिष्ठात्री देवी महागौरी हैं। इन्हें आदिशक्ति भी कहते हैं। देवी भागवत पुराण में देवी के स्वरूप का वर्णन है। यह गौर वर्ण की देवी हैं। देवी के स्वरूप के बारे में लिखा गया है कि वह शंख की तरह गौर वर्ण की हैं। वह कुंद के फूल जैसी प्रतीत होती हैं। देवी की आयु हमेशा 8 वर्ष के बालिका की रहती है। सफेद वस्त्र और आभूषण पहनने वाली देवी को श्वेताम्बरा भी कहा जाता है। 

देवी के विग्रह में देवी भागतवत में प्रसंग है कि उनकी 4 भुजाएं हैं, वह बैल पर बैठती हैं। दुर्गा सप्तशती में देवी का एक नाम वृषारूढ़ा भी है। देवी हमेशा अभय मुद्रा में रहती हैं। इनके हाथों में त्रिशूल और डमरू विराजता है। 

भगवान शिव को पाने के लिए किया था तप
भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए महागौरी ने कठिन तपस्या की थी। इनका शरीर काला पड़ गया था। भगवान शिव कठिन तपस्या से जब प्रसन्न हुए तो इन्हें गंगा जल से नहला दिया। इनका स्वरूप गौर वर्ण का हो गया। तब से इन्हें महागौरी भी कहा जाने लगा। महागौरी, भगवान शिव की अर्धांगिनी हैं। 

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महागौरी की पूजा कैसे करें?
महागौरी की पूजा कल्याणकारी कही गई है। जो भक्त सच्चे मन से इनकी पूजा-अर्चना करते हैं, उन्हें इनकी उपासना से मोक्ष की प्राप्ति होती है। जो साधक मां गौरी की उपासना कर रहे हों, उन्हें देवी मां का बीज मंत्र पढ़ना चाहिए। श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम: और ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महागौर्ये नम: का जाप करना चाहिए। दुर्गा सप्तशती में 'या देवी सर्वभूतेषु गौरी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:' भी देवी की आरधना का एक शक्तिशाली मंत्र बताया गया है। 

साधक अष्टमी तिथि को श्वेत रंग का वस्त्र पहुंचे, श्वेत वस्तुओं का दान दें। इस दिन कन्या पूजन भी किया जाता है। 9 कन्याओं को भोजन कराना चाहिए और उन्हें उपहार भी देना चाहिए। पूजा के दौरान सात्विक फलाहार ग्रहण करना चाहिए।

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डिस्क्लेमर: यह जानकारी पौराणिक मान्यताओं पर आधारित है। देवी सप्तशती और श्रीमद् देवी भागवत के आधार पर इसे लिखा गया है। 

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