भारत खंड में कई ऐसे महान संत और कवि हुए, जिन्होंने धर्म के प्रचार-प्रसार में अहम भूमिका निभाई। इन्हीं में से एक थे महाकवि कालिदास, जो राजा विक्रमादित्य के दरबार में नवरत्नों में से एक थे। महाकवि कालिदास को उनके संस्कृत नाट्य और महाकव्यों के लिए प्रसिद्धि प्राप्त है, जिनमें अभिज्ञान शाकुंतलम्, रघुवंशम्, कुमारसंभवम् जैसे नाटक और महाकाव्य शामिल हैं। हालांकि, धार्मिक इतिहासकार बताते हैं कि कालिदास पहले एक मुर्ख थे, लेकिन राजकुमारी से विवाह होने के बाद वह संस्कृत के महान पंडित बन गए और उन्हें यह आशीर्वाद स्वयं माता काली ने दिया था। आइए जानते हैं क्या है पूरी कथा-
कालिदास और विद्योत्तमा की कथा
मालव्य राज्य की राजकुमारी विद्योत्तमा, प्राचीन भारत की एक महान विदुषी थीं और उन्हें अपनी शास्त्रों के ज्ञान और तर्कशीलता के लिए प्रसिद्ध प्राप्त थी। उन्होंने यह प्रण लिया था कि वे केवल उसी व्यक्ति से विवाह करेंगी, जो उन्हें शास्त्रार्थ में पराजित कर सके। कई विद्वान उनकी शर्त को स्वीकार करते, लेकिन हारकर वापस लौट जाते। इससे आहत होकर कुछ पंडितों ने मिलकर एक योजना बनाई। वह ऐसे व्यक्ति की खोज में निकल पड़े जो एक साधारण और अनपढ़ व्यक्ति हो। इसी खोज में वह एक वृक्ष के नीचे पहुंचे, जहां एक व्यक्ति पेड़ की डाल पर बैठकर उसी डाल को काट रहा था। वह कोई और नहीं कालिदास थे। तब उन पंडितों ने कालिदास को राजकुमारी के सामने प्रस्तुत किया।
इससे पहले पंडितों ने कालिदास को यह सिखाया कि उन्होंने किसी भी जवाब का बोलकर उत्तर नहीं देना है। जब कालिदास राजदरबार में आए तब साथ आए पंडितों ने विद्योत्तमा के सामने यह शर्त रखी कि कालिदास केवल इशारों में ही बात करते हैं और वह इसी माध्यम से प्रतियोगिता में हिस्सा लेंगे। राजकुमारी ने इस शर्त को स्वीकार कर लिया।
शास्त्रार्थ शुरू हुआ और विद्योत्तमा ने सबसे पहले अपनी एक उंगली उठाई, यह संकेत था कि केवल ब्रह्म (परमात्मा) ही एक है। कालिदास, इस संकेत को गलत समझकर, तीन उंगलियां उठाई, तब पंडितों ने कहा कि तीन देवता हैं- ब्रह्मा, विष्णु, और महेश। विद्योत्तमा इसे उनके तर्क का उत्तर मानकर स्वीकार कर लेती हैं।
इसके बाद, विद्योत्तमा ने हथेली फैलाई, यह दर्शाने के लिए कि ब्रह्मांड में सभी चीजें पंचतत्व से बनी हुई है। कालिदास ने इसे थप्पड़ मारने का इशारा समझा और उन्होंने अपनी मुट्ठी बंद करके मुक्का दिखाया। पंडितों ने इसका अर्थ समझाया कि पंचतत्व से ब्रह्मांड का निर्माण हुआ लेकिन ये सभी जब चीजें अंततः एकजुट हो जाती हैं तभी इस संसार का निर्माण होता है।
कालिदास से हुआ विद्योत्तमा का विवाह
विद्योत्तमा ने इस संवाद को अपनी हार मान लिया और कालिदास से विवाह कर लिया। लेकिन विवाह के बाद, उन्हें पता चला कि कालिदास अनपढ़ और अशिक्षित हैं। विद्योत्तमा इस सत्य से आहत हुईं और कालिदास को यह कहते हुए छोड़ दिया कि वह केवल तभी उनके योग्य बन सकते हैं, जब वे सच्चा ज्ञान अर्जित करें।
विद्योत्तमा के शब्दों ने कालिदास को गहराई से प्रभावित किया। उन्होंने अपनी शिक्षा आरंभ की और कठोर परिश्रम के बाद संस्कृत साहित्य के महान कवि बन गए। कालिदास ने फिर विचार किया कि उन्हें अब घर जाना चाहिए। दरवाजे पर कालिदास ने संस्कृत का स्पष्ट उच्चारण करते हुए दरवाजा खोलने के लिए कहा। विद्योत्तमा लगा कि दरवाजे पर कोई विद्वान आया है और जैसे ही उन्होंने दरवाजा खोला व अपने पति को सामने पाया तो वह दंग रह गईं।
कालिदास और माता काली की कथा
एक कथा यह भी है कि घर छोड़ने के बाद कालिदास ज्ञान की खोज में कई स्थानों पर भटके। इस दौरान उन्होंने कठिन तप भी किया। इसी दौरान वे माता काली के एक प्राचीन मंदिर पहुंचे। मंदिर के भीतर माता काली की मूर्ति के सामने बैठकर उन्होंने माता से ज्ञान के लिए प्रार्थना की। कालिदास की सच्ची भक्ति और तपस्या से प्रसन्न होकर माता काली ने उन्हें दर्शन दिए।
माता ने कहा, ‘तुम्हारा हृदय शुद्ध है, और तुम्हारी भक्ति सच्ची। मैं तुम्हें ज्ञान और काव्य की अद्वितीय शक्ति प्रदान करती हूं। अब से तुम अपने शब्दों से दुनिया को प्रेरित करोगे।’ इसके बाद माता ने कालिदास के मस्तिष्क और हृदय को ज्ञान के अमृत से अभिषेक किया और वह संस्कृत साहित्य के महानतम कवि बन गए।