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पंढरपुर मंदिर: जहां भगवान कृष्ण स्वयं करते हैं भक्तों का इंतजार

महाराष्ट्र के सोलापुर में स्थित भगवान श्रीकृष्ण के इस मंदिर को विठोबा मंदिर के नाम से भी जानते हैं, इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण और देवी रुक्मिणी का एक साथ दर्शन होता है।

Bhagwan Vitthal Picture

भगवान विठ्ठल की तस्वीर: Photo Credit: X handle/Vitthal Rukmini Today darshan

महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में स्थित पंढरपुर का विठोबा मंदिर (जिसे श्रीकृष्ण और देवी रुक्मिणी का मंदिर भी कहा जाता है) महाराष्ट्र के सबसे प्रमुख और पूजनीय तीर्थ स्थलों में गिना जाता है। यह मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र है और खासतौर पर विठ्ठल-रुक्मिणी के दर्शन के लिए प्रसिद्ध है, जिन्हें भगवान श्रीकृष्ण और उनकी पत्नी रुक्मिणी का रूप माना जाता है। पंढरपुर में इस मंदिर के स्थित होने की वजह से यहां भगवान को पंढरीनाथ के नाम से भी जाना जाता है। 

 

इस मंदिर के इतिहास की बात करें तो कहा जाता है कि मंदिर की स्थापना 11वीं शताब्दी में हुई थी। मान्यताओं के अनुसार, मुख्य मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में देवगिरी के यादव शासकों ने करवाया था। महाराष्ट्र में भगवान श्री कृष्ण को विट्ठल नाम से भी पुकारा जाता है इसीलिए इस मंदिर को विट्ठल मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। 

 

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पौराणिक मान्यताएं

पंढरपुर मंदिर से जुड़ी एक पुरानी और प्रसिद्ध कथा है। कहा जाता है कि एक गरीब ब्राह्मण पुंडलिक अपने माता-पिता की सेवा में लीन था। एक दिन भगवान श्रीकृष्ण स्वयं द्वारका से चलकर पुंडलिक के घर आए पर वह उस समय अपने माता-पिता की सेवा कर रहा था।

 

कथा के अनुसार, पुंडलिक ने भगवान से क्षमा मांगी और कहा कि वह पहले माता-पिता की सेवा पूरी करेगा। उसने भगवान से थोड़ी प्रतीक्षा करने को कहा और उन्हें एक ईंट (मराठी में 'विठ' कहा जाता है) पर खड़े होने को कहा।

 

भगवान श्रीकृष्ण ईंट पर खड़े हो गए और पुंडलिक की भक्ति से प्रसन्न होकर वहीं स्थिर हो गए। मान्यता के अनुसार, भगवान का यही स्वरूप आज 'विठोबा' के रूप में पूजा जाता है। साथ में देवी रुक्मिणी भी हैं, जो यहां रुक्मिणी देवी मंदिर में विराजित हैं।

 

मंदिर की आध्यात्मिक मान्यता

यह मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह भक्ति आंदोलन और विशेष रूप से वारकरी संप्रदाय (यह महाराष्ट्र का एक वैष्णव भक्ति संप्रदाय है) का केंद्र है। संत नामदेव, संत तुकाराम, संत ज्ञानेश्वर जैसे महान संतों ने यहां आकर भगवान विठोबा की भक्ति की।

 

वारकरी परंपरा के अनुसार, लाखों श्रद्धालु हर वर्ष आषाढ़ी एकादशी और कार्तिकी एकादशी पर पदयात्रा करते हुए पंढरपुर आते हैं। यह पदयात्रा ‘वारी’ कहलाती है और इसका उद्देश्य भगवान विठोबा के दर्शन करना होता है।

 

इस मंदिर को भक्तिपथ का केंद्र माना जाता है, जहां जाति, वर्ग, भाषा आदि का भेद मिट जाता है और लोग यहां भक्ति की भावना से आते हैं। 

 

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मंदिर की विशेषताएं

  • विठोबा की मूर्ति काले पत्थर से बनी है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण अपने दोनों हाथ कमर पर रखे हुए खड़े हैं।
  • यह मूर्ति अत्यंत आकर्षक है और भक्त इसे 'माऊली' (मां समान भगवान) कहते हैं।
  • देवी रुक्मिणी का मंदिर विठोबा मंदिर से कुछ दूरी पर स्थित है, जिन्हें भगवान कृष्ण की पत्नी के रूप में पूजा जाता है।
  • मंदिर परिसर में कई और उपमंदिर भी हैं, जहां संतों की स्मृतियां बनी हुई हैं।
  • यहां पर वारकरी भजन-कीर्तन करते हुए भक्तों को प्रेम, सेवा और त्याग का संदेश देते हैं।

पंढरपुर कैसे पहुंचें?

नजदीकी रेलवे स्टेशन:

पंढरपुर का अपना रेलवे स्टेशन है – Pandharpur Railway Station, जो महाराष्ट्र के कई प्रमुख शहरों जैसे पुणे, मुंबई, सोलापुर और नागपुर से जुड़ा हुआ है।

 

सड़क से जाने का रास्ता:
पंढरपुर मुंबई से लगभग 400 किलोमीटर और पुणे से करीब 210 किलोमीटर दूर है। बसें और निजी वाहन आसानी से उपलब्ध हैं। महाराष्ट्र राज्य परिवहन की नियमित बस सेवाएं यहां चलती हैं।

 

नजदीकी एयरपोर्ट:
यहां का नजदीकी एयरपोर्ट सोलापुर एयरपोर्ट है, जो लगभग इस स्थान से 75 किलोमीटर दूर है। वहां से टैक्सी या बस लेकर पंढरपुर पहुंचा जा सकता है।

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