हिमाचल प्रदेश के मनाली में स्थित हिडिंबा देवी मंदिर न केवल श्रद्धा का केंद्र है बल्कि आस्था और पौराणिक इतिहास का भी अनोखा संगम है। मान्यता के अनुसार, जब भी कोई आपदा आती है, तो यहां के लोग हिडिंबा देवी मंदिर में बचाव के लिए गुहार लगाते है। पिछले कुछ दिनों से इस मंदिर में लगातार वहां के स्थायी लोग बाढ़ और तबाही से बचने के लिए मंदिर में विशेष पूजा-पाठ कर रहे हैं। देवदार के घने जंगलों के बीच स्थित यह प्राचीन मंदिर अपनी अनूठी वास्तुकला और रहस्यमयी लोककथाओं के लिए देश-दुनिया से आने वाले पर्यटकों को आकर्षित करता है। मान्यता के अनुसार, सोलहवीं शताब्दी में राजा बहादुर सिंह ने इस मंदिर को बनवाया था। यह मंदिर पगोडा शैली की लकड़ी की छतों और अद्भुत नक्काशी के लिए विशेष पहचान रखता है। यहां देवी की प्रतिमा नहीं, बल्कि उनके चरण चिह्न पूजे जाते हैं।
माना जाता है कि महाभारत काल में जब पांडव वनवास के दौरान मनाली पहुंचे थे, तभी भीम ने राक्षस हिडिंब का वध किया था और उसकी बहन हिडिंबा से विवाह किया था। इसी हिडिंबा को आज देवी का स्वरूप मानकर इस मंदिर में पूजा जाता है। हर साल मई में लगने वाले हिडिंबा मेला में यहां की स्थानीय संस्कृति और परंपराओं की झलक देखने को मिलती है।
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मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा
इस मंदिर से जुड़ी कथा महाभारत काल की है। कहा जाता है कि जब पांडव अपने वनवास के दौरान मनाली क्षेत्र में पहुंचे थे, तब यहां हिडिंब नाम का राक्षस अपनी बहन हिडिंबा के साथ रहता था। हिडिंब ने पांडवों को पकड़ने की योजना बनाई थी लेकिन भीम ने उसका वध कर दिया। इसके बाद हिडिंबा भीम के साहस और पराक्रम से प्रभावित हुई और उससे विवाह कर लिया। उनके विवाह से घटोत्कच का जन्म हुआ, जो आगे चलकर महाभारत युद्ध में पांडवों की ओर से एक वीर योद्धा के रूप में लड़े थे। हिडिंबा ने बाद में कठोर तपस्या की और उन्हें देवी का स्वरूप माना जाने लगा।

इस मंदिर से जुड़ी एक और कथा प्रचलित है, जिसमें बताया गया है कि हिडिंबा एक राक्षसी थी, जो अपने भाई हिडिम्ब के साथ यहां रहा करती थी। कहा जाता है कि उन्होंने वचन लिया था कि जो भी उनके भाई हिडिम्ब को युद्ध में हरा देगा, वह उसे अपने वर के रूप में स्वीकार करेंगी। कुछ समय बाद पांडव निर्वासन के वक्त जब यहां पहुंचे तब उन्होंने हिडिम्ब से लड़ाई में उसे हरा दिया। इसके बाद हिडिम्बा और भीम की शादी हो गई।
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मंदिर से जुड़ी मान्यता
हिडिंबा मंदिर की मान्यता, गहरी धार्मिक और पौराणिक आस्था से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि महाभारत काल में भीम और हिडिंबा के विवाह के बाद, हिडिंबा ने कठोर तपस्या की और देवी के रूप में पूजित होने लगीं। स्थानीय लोगों का विश्वास है कि हिडिंबा देवी आज भी अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और उनकी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।

यह भी मान्यता है कि युद्ध और संकट के समय घटोत्कच, जो हिडिंबा और भीम के पुत्र थे। वह पांडवों की सहायता के लिए उपस्थित हुए थे। इस वजह से देवी हिडिंबा को शक्ति, बल और संरक्षण की देवी माना जाता है।
मंदिर तक जाने का रास्ता
- हिडिंबा मंदिर मनाली बस स्टैंड से लगभग 2 किमी की दूरी पर है।
- वहां तक जाने के लिए:
- पैदल घने देवदार के जंगलों के बीच से सुंदर रास्ता है।
- ऑटो/टैक्सी आसानी से मिल जाते हैं।
- नजदीकी रेलवे स्टेशन: जोगिंदर नगर (लगभग 165 किमी दूर)
- नजदीकी एयरपोर्ट: भुंतर (लगभग 52 किमी दूर)