भारत को देवी उपासना की भूमि कहा जाता है। यहां अनेक शक्तिपीठ हैं, जो देवी के विभिन्न रूपों को समर्पित हैं। उत्तराखंड के नैनीताल में स्थित नैना देवी मंदिर भी एक अत्यंत प्रसिद्ध और पवित्र शक्तिपीठ है। यह मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आस्था, इतिहास और पौराणिक गाथा से जुड़ा हुआ एक विशेष केंद्र है।
नैना देवी मंदिर, उत्तराखंड राज्य के प्रसिद्ध हिल स्टेशन नैनीताल में स्थित है। यह मंदिर नैनी झील के उत्तरी किनारे पर बसा है, जो प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। चारों ओर पहाड़ियों और झील के बीच बसा यह मंदिर भक्तों और पर्यटकों दोनों को आकर्षित करता है।
नैना देवी मंदिर की पौराणिक कथा
नैना देवी मंदिर का संबंध शक्ति के 51 शक्तिपीठों में से एक से है। यह कथा सती और शिव से जुड़ी है। पौराणिक कथा के अनुसार, जब राजा दक्ष ने यज्ञ किया और भगवान शिव को उसमें आमंत्रित नहीं किया, तो उनकी पुत्री सती ने दुखी होकर यज्ञ में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए।
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यह देखकर भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने सती के शरीर को अपने कंधे पर उठाकर सृष्टि भर में घूमना शुरू किया। ब्रह्मांड की स्थिरता बनाए रखने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को कई हिस्सों में विभाजित कर दिया। जहां-जहां सती के अंग गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ बने। कहा जाता है कि नैनीताल में सती की आंखें (नयन) गिरी थीं। इसी कारण इस स्थान का नाम "नैना देवी" पड़ा और यह स्थल शक्तिपीठ बन गया।
मंदिर की धार्मिक विशेषताएं
मंदिर में तीन मुख्य मूर्तियां हैं – बाईं ओर देवी काली, बीच में नैना देवी (सती के नेत्र) और दाईं ओर भगवान गणेश। देवी नैना देवी को शक्ति, रक्षा और करुणा का प्रतीक माना जाता है। इसके साथ नैनी झील को भी माता की आंखों के समान माना जाता है। झील के दर्शन और मंदिर की पूजा एक साथ करने से पूर्ण फल की प्राप्ति मानी जाती है। बता दें कि नैना देवी को 'सर्वदुखहारी' माना जाता है। यह देवी भक्तों की रक्षा करती हैं और उनके मनोवांछित फल प्रदान करती हैं।
मान्यता है कि जो श्रद्धालु सच्चे मन से माता नैना देवी के दर्शन करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस मंदिर में पूजा करने से मानसिक तनाव, भय और रोग दूर होते हैं। विशेष रूप से आंखों के रोग में माता से प्रार्थना करने से लाभ मिलता है। नैना देवी मंदिर धार्मिक दृष्टि से तो पवित्र है ही, साथ ही यह पर्यटन के दृष्टिकोण से भी प्रमुख स्थान है। हर साल लाखों श्रद्धालु और पर्यटक यहां आते हैं। यह मंदिर हिंदू संस्कृति, प्रकृति और आस्था का मिलन स्थल है।