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सिंहस्थ कुंभ: मुगलकालीन परंपरा को बदलकर अब किया जाएगा 'अमृत स्नान'

कुंभ मेला में शाही स्नान को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। बता दें कि कुंभ में शाही स्नान का नाम बदल दिया गया है।

Image of Kumbh Mela

सांकेतिक चित्र(Photo Credit: AI Image)

नासिक में 2027 में होने वाले सिंहस्थ कुंभ मेले में एक बड़ा पारंपरिक बदलाव देखने को मिलेगा। इस बार सदियों पुरानी परंपरा ‘शाही स्नान’ की जगह ‘अमृत स्नान’ को अपनाया जाएगा। यह फैसला महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, अखाड़ा परिषद और कुंभ मेले के आयोजकों के बीच हुई एक बैठक में लिया गया।

 

अखिल भारतीय वैष्णव अखाड़ा के प्रवक्ता महंत भक्ति चरण दास ने बताया कि कुंभ मेला देश में चार जगहों- प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है, जहां अमृत की बूंदें समुद्र मंथन के समय गिरी थीं। उन्होंने कहा कि ‘शाही स्नान’ शब्द का चलन मुगल काल में शुरू हुआ था, इसलिए अब इसे बदलकर ‘अमृत स्नान’ कहा जाएगा। 

इसलिए कहा जाएगा ‘अमृत स्नान’

इस बदलाव का उद्देश्य मेले को भव्यता और प्रदर्शन से हटाकर अधिक आध्यात्मिक और धार्मिक स्वरूप देना है। संतों का मानना है कि यह स्नान एक आध्यात्मिक अनुशासन का प्रतीक होना चाहिए, न कि किसी शाही प्रदर्शन का। ‘अमृत स्नान’ नाम इस भावना को अधिक सही रूप से दर्शाता है।

 

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हिंदू मान्यताओं के अनुसार, कुंभ मेले के दौरान पवित्र स्नान करने से सारे पापों का नाश होता है। ‘अमृत स्नान’ नाम समुद्र मंथन की उस पौराणिक कथा से जुड़ा है, जिसमें अमृत की कुछ बूंदें नासिक समेत चार स्थानों पर गिरी थीं। इसलिए इस नए नाम से मेले को उसकी मूल आध्यात्मिक भावना से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है।

सिंहस्त कुंभ की तैयरियां

मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि 2027 के कुंभ मेले की तैयारियां पहले ही शुरू हो चुकी हैं। नासिक और त्र्यंबकेश्वर में होने वाले मेले को लेकर सभी 13 प्रमुख अखाड़ों के संतों और महंतों के साथ बैठक की गई। उन्होंने बताया कि इस बार मेला लंबे समय तक चलेगा और कई महत्वपूर्ण 'अमृत स्नान' की तिथियां और पर्व देखने को मिलेंगे।

 

सरकार ने गोदावरी नदी की सफाई को लेकर भी योजना बनाई है ताकि नदी अविरल और स्वच्छ बनी रहे। इसके लिए लगभग 2,000 करोड़ रुपये के कार्यों की योजना बनाई गई है। नासिक का कुंभ मेला भारत के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक है, जो हर 12 साल में एक बार होता है। इसमें लाखों श्रद्धालु गोदावरी नदी के तट पर पवित्र स्नान के लिए जुटते हैं।

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