उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है, जहां कई पवित्र तीर्थ और मंदिर स्थित हैं। उत्तराखंड में चार धाम यात्रा को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। यहां भगवान विष्णु को समर्पित पंच बद्री अत्यंत पवित्र माने जाते हैं। ये पांच मंदिर गढ़वाल क्षेत्र में स्थित हैं और भगवान विष्णु के विभिन्न रूपों की पूजा इन स्थानों पर की जाती है। पंच बद्री यात्रा आध्यात्मिक शांति और भगवान विष्णु की कृपा पाने का एक दिव्य मार्ग है। आइए जानते हैं इन पांच बद्री मंदिरों के नाम, स्थान, उनसे जुड़ी पौराणिक कथाएं और मान्यताएं।
बद्रीनाथ (श्री बद्री विशाल)
स्थान: चमोली जिले में, अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है।
कथा और मान्यता
बद्रीनाथ पंच बद्री में सबसे प्रमुख है। मान्यता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में इस मंदिर की स्थापना की थी। भगवान विष्णु यहां तपस्या में लीन थे और लक्ष्मी जी ने उन्हें तेज धूप से बचाने के लिए बेर (बदरी) वृक्ष का रूप लिया। तभी से भगवान विष्णु को बद्रीनाथ नाम मिला। यह स्थान वैकुंठ का प्रतीक माना जाता है और माना जाता है कि यहां की यात्रा से मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह चार धामों में से एक है।
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योगध्यान बद्री
स्थान: पांडुकेश्वर गांव, जो बद्रीनाथ मार्ग पर जोशीमठ से लगभग 20 किमी पहले है।
कथा और मान्यता
मान्यता है कि पांडवों के पिता राजा पांडु ने यहीं भगवान विष्णु की तपस्या की थी। उन्होंने यहीं योग मुद्रा में ध्यान किया और अपने पापों का प्रायश्चित किया। यहां विष्णु जी की प्रतिमा ध्यान की अवस्था में है, इसलिए इसे योगध्यान बद्री कहते हैं। यह मंदिर साल भर खुला रहता है और शीतकाल में बद्रीनाथ जी की पूजा यहीं की जाती है।
भविष्य बद्री
स्थान: जोशीमठ से लगभग 17 किमी दूर सुभाई गांव के पास स्थित है।
कथा और मान्यता
भविष्य बद्री का अर्थ है ‘भविष्य में पूजनीय’। मान्यता है कि जब कलियुग में पाप बढ़ेंगे और बद्रीनाथ मार्ग बंद हो जाएगा, तब भगवान विष्णु भविष्य बद्री में पूजे जाएंगे। यह भी मान्यता है कि जब नर-नारायण की तपस्या से धरती कांप उठेगी और बद्रीनाथ के मार्ग बंद हो जाएंगे, तब भविष्य बद्री ही प्रमुख तीर्थ बनेगा।
वृद्ध बद्री
स्थान: जोशीमठ से लगभग 7 किमी दूर अणिमठ गांव में स्थित है।
कथा और मान्यता
वृद्ध बद्री का अर्थ है ‘वृद्ध अवस्था वाले बद्री’। कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने यहां वृद्ध ब्राह्मण के रूप में दर्शन दिए थे। यह मंदिर उन लोगों के लिए विशेष है जो वृद्धावस्था में धर्म के मार्ग पर चलना चाहते हैं या अपने जीवन के अंत में पुण्य कमाना चाहते हैं। मंदिर शांत वातावरण में स्थित है और ध्यान व साधना के लिए आदर्श माना जाता है।
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आदि बद्री
स्थान: कर्णप्रयाग से लगभग 17 किमी दूर नारायण बगड़ क्षेत्र में स्थित है।
कथा और मान्यता
कहा जाता है कि जब बद्रीनाथ क्षेत्र बर्फ से ढका रहता था, तब आदि गुरु शंकराचार्य ने भगवन विष्णु की उपासना के लिए इस मंदिर की स्थापना की थी। यह मंदिर कई छोटे-छोटे मंदिरों का समूह है, जिनमें सबसे बड़ा मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। एक मान्यता यह भी है कि यह मंदिर पांडवों द्वारा बनाया गया था। यहां दर्शन करने से विष्णु भक्ति और पुण्य दोनों की प्राप्ति होती है।
पंच बद्री की यात्रा का महत्व
पंच बद्री की यात्रा को अत्यंत शुभ माना जाता है। माना जाता है कि इन पांचों मंदिरों के दर्शन करने से व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष का मार्ग सरल होता है। यह यात्रा शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकती है, लेकिन आध्यात्मिक रूप से बेहद फलदायक है।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।