महादेव और पंच तत्व, वे 5 मंदिर जहां एक हो जाते हैं प्रकृति और भगवान
धर्म-कर्म
• TIRUVANNAMALAI 09 Jul 2025, (अपडेटेड 09 Jul 2025, 3:04 PM IST)
भगवान शिव की उपासना पंच तत्व रूप में भी की जाती है। दक्षिण भारत में 5 ऐसे मंदिर हैं जो इन पंच तत्वों को समर्पित है।

अन्नामलाईश्वरर मंदिर (तिरुवन्नामलई, तमिलनाडु)- अग्नि तत्त्व को समर्पित।(Photo Credit: Wikimedia Commons)
भारत में आस्था और प्रकृति का गहरा संबंध है। हिन्दू धर्म में पंच तत्व– पृथ्वी (भूमि), जल, अग्नि, वायु और आकाश, को ब्रह्मांड के मूल तत्त्व माना जाता है। इसलिए इनकी उपासना को भी विशेष स्थान प्राप्त है। दक्षिण भारत में इन 5 तत्त्वों की उपासना शिव के पंच रूपों में की जाती है। इन्हें पंच भूत स्थल कहते हैं। हर मंदिर एक-एक तत्त्व को समर्पित है और हर स्थल की अपनी अनोखी कथा और आध्यात्मिक महत्ता है।
पंच भूत स्थल
अन्नामलाईश्वरर मंदिर (तिरुवन्नामलई, तमिलनाडु)- अग्नि तत्त्व
यह मंदिर शिव के अग्नि स्वरूप की उपासना के लिए प्रसिद्ध है। यहां भगवान शिव को अन्नामलाईश्वरर कहा जाता है और देवी पार्वती को ऊननामुलैयाल। इस मंदिर से जुड़ी कई मान्यताएं प्रचलित हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव ने खेल-खेल में अपनी आंखें बंद कर ली, जिससे पूरी सृष्टि में अंधकार छा गया। देवी पार्वती से सृष्टि को इस अंधकार से मिल रहा कष्ट देखा नहीं गया और उन्होंने भगवान शिव अंधकार को मिटाने की प्रार्थना करने लगीं। माता पार्वती की प्रार्थना पर भगवान शिव अन्नामलाई पहाड़ी (जिसे अरुणाचल भी कहा जाता है) के ऊपर अग्नि के एक विशाल स्तंभ के रूप में प्रकट हुए, जिससे संसार में प्रकाश लौट आया। इसलिए हर साल कार्तिक दीपम के दिन यहां पर्वत के शिखर पर अग्नि प्रज्वलित की जाती है, जो शिव की अनंत ज्योति का प्रतीक है।
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जम्बुकेश्वरर मंदिर (त्रिची, तमिलनाडु) – जल तत्त्व
यह मंदिर भगवान शिव के जल स्वरूप का प्रतीक है। शिव यहां जम्बुकेश्वरर और पार्वती अखंडा नयकी के रूप में विराजमान हैं। इस स्थान से जुड़ी पौराणिक कथा यह है कि एक बार पार्वती ने भगवान शिव से ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने की इच्छा जताई। शिव ने उन्हें यह ज्ञान देने के लिए यह स्थान चुना। पार्वती ने यहां घोर तपस्या की और शिव को जल के बीच ध्यान करते देखा। इसी कारण, यह स्थान जल तत्त्व का प्रतीक बना। इस मंदिर के गर्भगृह में एक छोटा जलकुंड (उंडिया) है, जहां से पानी हमेशा रिसता रहता है, चाहे कितनी भी गर्मी क्यों न हो। यह भगवान शिव की जलीय उपस्थिति का प्रतीक माना जाता है।
एकाम्बरेश्वरर मंदिर (कांचीपुरम, तमिलनाडु) – पृथ्वी तत्त्व
यह मंदिर भगवान शिव के पृथ्वी रूप को समर्पित है। यहां शिव जी को एकाम्बरेश्वरर और पार्वती को कामाक्षी कहा जाता है। मान्यता है कि पार्वती जी ने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए यहां मिट्टी का शिवलिंग बनाया और कठोर तप किया। एक बार कावेरी नदी में बाढ़ आ गई, जिससे शिवलिंग बह सकता था, तब पार्वती ने अपने शरीर से लिपटकर उसे बचाया। उनकी भक्ति देखकर शिव प्रसन्न हुए और दर्शन दिए। मंदिर परिसर में आज भी वह पवित्र आम का पेड़ (मंगलम) स्थित है, जिसकी चार शाखाएं चार वेदों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
अरुणाचलेश्वरर मंदिर (कालहस्ती, आंध्र प्रदेश) – वायु तत्त्व
यह मंदिर भगवान शिव के वायु रूप की उपासना का स्थान है। शिव यहां कालहस्तेश्वरर और पार्वती ज्ञानप्रसूनांबा के रूप में पूजे जाते हैं। यहां से जुड़ी कथा के अनुसार एक बार मयूर, चंद्र और इन्द्र जिन्हें हाथी, सांप और मकड़ी बनने का श्राप मिला था, ने भगवान शिव की भक्ति की। सभी ने अपने-अपने तरीके से शिव की सेवा की। मकड़ी ने जाल बनाकर शिवलिंग को ढका, सांप ने फूल चढ़ाया और हाथी ने रोज जलाभिषेक किया। एक दिन इन तीनों की सेवा टकरा गई और वह मर गए। हालांकि उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें मोक्ष प्रदान किया। इसी कारण इस स्थान का नाम कालहस्ती पड़ा – 'काला' (सांप), 'हस्ति' (हाथी), और 'शृंगी' (मकड़ी)। इस मंदिर में जो दीपक जलता है, वह बिना किसी हवा के भी हिलता रहता है- यह वायु तत्त्व की उपस्थिति का प्रमाण माना जाता है।
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चिदंबरम नटराज मंदिर (चिदंबरम, तमिलनाडु) – आकाश तत्त्व
यह मंदिर भगवान शिव के आकाश रूप की उपासना के लिए प्रसिद्ध है। यहां शिव नटराज के रूप में तांडव करते हुए दर्शाए जाते हैं। इस मंदिर की कथा यह है कि एक बार ऋषियों ने सोचा कि उनकी तंत्र शक्तियां भगवान से अधिक हैं। शिव जी ने उन्हें अपनी तांडव नृत्य से यह दिखाया कि प्रकृति और ब्रह्मांड पर केवल उन्हीं का नियंत्रण है। उन्होंने चिदंबरम में तांडव किया और आकाश-ऊर्जा को प्रकट किया। मंदिर में एक विशेष स्थान “चिदंबर रहस्य” कहलाता है, जहां कोई मूर्ति नहीं है बल्कि एक खाली स्थान है। यह स्थान आकाश तत्त्व का प्रतिनिधित्व करता है, जो यह दर्शाता है कि परमात्मा अदृश्य होते हुए भी उपस्थित होते हैं।
पंच भूत स्थलों का आध्यात्मिक महत्व
इन पांच स्थलों की यात्रा यह बताती है कि महादेव सिर्फ मूर्ति अथवा शिवलिंग रूप में ही नहीं, बल्कि प्रकृति के कण-कण में विराजमान हैं। यह सभी मंदिर मानव जीवन को पांच तत्त्वों के संतुलन से जोड़ने का माध्यम हैं। मान्यता है कि जो व्यक्ति भगवान शिव के इन पंच तत्वों की उपासना करता है, उन्हें सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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