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अखाड़े अपने नाम के साथ क्यों लगाते हैं 'पंचदशनाम'? यहां जानें कारण

कई अखाड़े ऐसे हैं, जिनके नाम के साथ 'पंचदशनाम' जोड़ते हैं। आइए जानते हैं, क्या है इस नाम का मतलब और क्यों होता है इसका प्रयोग।

Image of Akhada in Kumbh Mela

कुंभ में अखाड़े की शाही बाराती।(Photo Credit: PTI)

भारत में सनातन धर्म में अखाड़े एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये अखाड़े धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के साथ-साथ साधु-संतों के बीच अनुशासन और उन्हें एकजुट रखने का काम करते हैं। बता दें कि भारत में 13 प्रमुख अखाड़े हैं। इन अखाड़ों की स्थापना आदिगुरु शंकराचार्य ने की थी, जब उन्होंने देश विभिन्न हिस्सों में 4 मठों की स्थापना की। बात दें कि कुछ प्रमुख अखाड़े ऐसे भी हैं जिनके नाम के साथ 'पंचदशनाम' शब्द जुड़ा होता है। यह नाम इन अखाड़ों की पहचान और उनकी परंपरा को दर्शाता है। आइए, इसके पीछे के कारण और इसका महत्व समझते हैं।

पंचदशनाम अखाड़ा का अर्थ

'पंचदशनाम' शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – 'पंच' और 'दशनाम'। 'पंच' का अर्थ है पांच और 'दशनाम' का अर्थ है दस नाम। यहां 'पंचदशनाम' का मतलब है पांच मुख्य संन्यासी परंपराओं से जुड़े दस नाम। ये नाम संन्यासी समुदाय के विभिन्न सम्प्रदायों को दर्शाते हैं। इन सम्प्रदायों के अनुयायी अपने नाम के साथ इन्हें जोड़ते हैं, जो उनकी पहचान और गुरु परंपरा को दर्शाता है।

 

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पंचदशनाम अखाड़ा क्यों लगाते हैं?

अखाड़े अपने नाम के साथ 'पंचदशनाम अखाड़ा' इसलिए जोड़ते हैं क्योंकि यह उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है। यह नाम उनके संन्यासी समुदाय की शाखा और उनके गुरु परंपरा को बताता है। यह परंपरा आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित की गई थी, जिन्होंने संन्यासी समुदाय को व्यवस्थित करने के लिए दस नामों की स्थापना की थी। इन नामों के माध्यम से संन्यासी अपने सम्प्रदाय और गुरु परंपरा से जुड़े रहते हैं और यह उनकी पहचान होती है।

अखाड़ों के दशनाम कौन-कौन से हैं?

दशनामी अखाड़ों में गिरी, पुरी, भारती, सरस्वती, तीर्थ, अरण्य, वन, सागर, परवत और आश्रम इन नामों का इस्तेमाल किया जाता है। साथ ही इस परंपरा में शंकराचार्य, महामंडलेश्वर, आचार्य, महंत आदि पद निर्धारित किए जाते हैं। मठों में सबसे ऊंचा पद शंकरचार्यों का होता है और अखाड़ों में आचार्य महामंडलेश्वर सबसे प्रतिष्ठित और ऊंचा पद होता है।

पंचदशनाम अखाड़ा का महत्व

पंचदशनाम अखाड़ा संन्यासी परंपरा के लिए एकता और अनुशासन के लिए जाना जाता है। यह नाम उनकी धार्मिक पहचान को स्पष्ट करता है और उन्हें एक विशेष समुदाय से जोड़ता है। इसके अलावा, यह नाम उनकी गुरु-शिष्य परंपरा और उनके धार्मिक सिद्धांतों को भी दर्शाता है। यह परंपरा संन्यासियों को एक साथ लाने और उनके बीच सहयोग बनाए रखने में मदद करती है। नागा साधु भी इसी अखाड़े से संबंध रखते हैं।

 

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किन अखाड़ों में पंचदशनाम नाम का इस्तेमाल होता है?

भारत में कई प्रमुख अखाड़े हैं, जो अपने नाम के साथ 'पंचदशनाम अखाड़ा' शब्द का उपयोग करते हैं। ये अखाड़े संन्यासी समुदाय के विभिन्न सम्प्रदायों से जुड़े हुए हैं, जो इस प्रकार हैं:

 

  • श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा: यह अखाड़ा सबसे बड़ा, प्रसिद्ध और शक्तिशाली अखाड़ों में से एक है। यह अखाड़ा शैव परंपरा से जुड़ा हुआ है और इसके अनुयायी भगवान शिव की पूजा करते हैं।
  • श्री पंचदशनाम निरंजनी अखाड़ा: यह अखाड़ा भी शैव परंपरा से जुड़ा हुआ है। इस अखाड़े के साधु-संत ध्यान और योग के माध्यम से आत्मज्ञान प्राप्त करने पर जोर देते हैं।
  • श्री पंचदशनाम अटल अखाड़ा: यह अखाड़ा वैष्णव परंपरा से जुड़ा हुआ है। इस अखाड़े के अनुयायी भगवान विष्णु और उनके अवतारों की पूजा करते हैं।
  • श्री पंचदशनाम आह्वान अखाड़ा: यह अखाड़ा भी वैष्णव परंपरा से जुड़ा हुआ है। इस अखाड़े के साधु-संत भक्ति और सेवा के माध्यम से मोक्ष प्राप्त करने में विश्वास रखते हैं।
  • श्री पंचदशनाम महानिर्वाणी अखाड़ा: यह अखाड़ा शैव और वैष्णव दोनों परंपराओं से जुड़ा हुआ है। इस अखाड़े के साधु-संत धर्म और समाज की सेवा को महत्व देते हैं।

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।

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