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शिव के साकार और निराकार रूप का संगम: गुडीमल्लम शिवलिंग

आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित पारशुरामेश्वर मंदिर शिव भक्तों के प्रमुख श्रद्धा स्थल के रूप में माना जाता है। इस मंदिर में स्थित शिवलिंग आस्था और शोध का केंद्र बना हुआ है।

Shree Parsurameswara Temple

पारशुरामेश्वर मंदिर: Photo Credit: X handle/ Anu Satheesh

आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले का एक छोटा सा गांव गुडीमल्लम आज दुनिया भर के श्रद्धालुओं और इतिहासकारों के लिए आस्था और शोध का केंद्र बना हुआ है। माना जाता है कि यहां भारत का सबसे प्राचीन शिवलिंग गुडीमल्लम लिंगम स्थित है। यह शिवलिंग साधारण नहीं है, बल्कि इसकी विशेषता और रहस्य इसे अन्य शिवलिंगों से अलग और अद्वितीय बनाता हैं। लगभग तीसरी सदी ईसा पूर्व से पहली सदी ईस्वी के बीच निर्मित यह शिवलिंग प्राचीन भारतीय कला और धार्मिक परंपरा का अनमोल उदाहरण माना जाता है।

 

गुडीमल्लम लिंगम की सबसे खास बात यह है कि यहां शिवजी की आकृति मानवीय रूप में लिंग पर बनी हुई है। इस मूर्ति में भगवान शिव बौने जैसी आकृति पर खड़े दिखते हैं। सामान्य रूप से शिवलिंग निराकार रूप में पूजे जाते हैं लेकिन इस शिवलिंग में साकार और निराकार दोनों ही स्वरूपों का अद्भुत संगम दिखाई देता है। यही वजह है कि इसे भारतीय शैव परंपरा के सबसे पुराने और दुर्लभ साक्ष्यों में गिना जाता है।

 

 

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गुडीमल्लम लिंगम की पौराणिक कथा

गुडीमल्लम लिंगम की पौराणिक कथा ऋषि परशुराम से जुड़ी है, प्रचलित कथा के अनुसार, भगवान परशुराम अपनी माता के वध के पाप से मुक्ति के लिए शिव जी की तपस्या की थी। उन्होंने जंगल में लिंग ढूंढा, एक तालाब खोदा और हर दिन उसमें खिलने वाले फूल भगवान शिव को अर्पित करते थे। उन्होंने फूल की रक्षा के लिए यक्षी चित्रसेन को नियुक्त किया था। एक दिन चित्रसेन ने फूल से शिव जी की पूजा की, जिससे परशुराम क्रोधित हुए और उनमें युद्ध शुरू हो गया। कथा के अनुसार,  इस पर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने दोनों को अपने में विलीन कर लिया। मान्यता है कि इसमें भगवान ब्रह्मा चित्रसेन के रूप में, भगवान विष्णु परशुराम के रूप में और शिव लिंगम के रूप में निवास करते हैं।

 

एक अन्य कथा के अनुसार, मान्यता है कि इस स्थान पर भगवान परशुराम ने कठोर तपस्या की थी और शिवजी ने उन्हें दर्शन देकर वरदान दिया था। इसलिए इस मंदिर का नाम पारशुरामेश्वर मंदिर पड़ा। यहां स्थापित लिंग को अत्यंत प्राचीन शिवलिंग माना जाता है और इसे स्वयंभू भी कहा जाता है।

 

 

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गुडीमल्लम लिंगम की विशेषता

  • यह भारत का सबसे प्राचीन शिवलिंग माना जाता है, जिसे लगभग तीसरी सदी ईसा पूर्व से पहली सदी ईस्वी का माना जाता है।
  • सामान्य शिवलिंगों के विपरीत इसमें शिवजी की मानवीय आकृति बनी हुई है, जिसमें वह एक बौने जैसी आकृति पर खड़े दिख रहे हैं।
  • यह शैली भारतीय कला में अद्वितीय है और प्रारंभिक शैव प्रतिमाओं की झलक देती है।

गुडीमल्लम लिंगम का महत्व

  • धार्मिक दृष्टि से यह भगवान शिव का अत्यंत प्राचीन स्वरूप माना जाता है, जो भक्तों को शिव जी के मानवीय रूप से जोड़ता है।
  • ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टि से भी इसका महत्व बहुत बड़ा है क्योंकि यह प्रारंभिक शैव स्थापत्य और मूर्तिकला का उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है।
  • यहां दर्शन और पूजा से श्रद्धालुओं को शिव जी के आशीर्वाद की प्राप्ति होती है और इसे पापों का नाश करने वाला माना गया है।

वहां कैसे पहुंचे?

  • सड़क मार्ग: तिरुपति से केवल 13 से 15 किमी दूर होने की वजह से टैक्सी और निजी वाहन से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
  • नजदीकी रेलवे स्टेशन: निकटतम रेलवे स्टेशन तिरुपति जंक्शन है, जहां से मंदिर तक सीधा सड़क मार्ग उपलब्ध है।
  • नजदीकी एयरपोर्ट: निकटतम हवाई अड्डा तिरुपति एयरपोर्ट है।

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