परिवर्तिनी एकादशी की पौराणिक कथा क्या है, व्रत कैसे रहें? सब जान लीजिए
धर्म-कर्म
• NEW DELHI 01 Sept 2025, (अपडेटेड 01 Sept 2025, 3:03 PM IST)
हिन्दू धर्म में परिवर्तिनी एकादशी को महत्वपूर्ण व्रतों में से एक माना जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है, इस दिन व्रत करने से विष्णु जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo Credit: AI
भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाने वाली परिवर्तिनी एकादशी इस साल भक्तों के लिए विशेष महत्व लेकर आई है। इसे पद्मा एकादशी और जयंती एकादशी भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर करवट बदलते हैं और यही वजह है कि इसे परिवर्तिनी एकादशी नाम दिया गया है। वहीं, पुराणों के अनुसार इस व्रत का संबंध भगवान विष्णु के वामन अवतार से जुड़ा है।
मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है। भक्तों को विशेष रूप से ब्रह्मचर्य का पालन कर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। इस दिन दान का भी अत्यधिक महत्व है, कहा जाता है कि अन्न, वस्त्र और दक्षिणा दान करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
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कब है परिवर्तिनी एकादशी 2025?
वैदिक पंचांग के अनुसार, परिवर्तिनी एकादशी की शुरुआत 3 सितम्बर 2025 को सुबह 3:50 मिनट से होगी और इस तिथि का समापन 4 सितम्बर को शाम के समय 4:21 मिनट पर होगी। सनातन धर्म में उदया तिथि का महत्व है, इसलिए 3 सितम्बर को परिवर्तिनी एकादशी मनाई जाएगी।
परिवर्तिनी एकादशी की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, त्रेतायुग में भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया था। राजा बलि ने अपने पराक्रम और यज्ञ-दान के बल पर तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था। देवताओं ने यह देख इंद्र के नेतृत्व में भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वह उन्हें इस संकट से मुक्त करें। तब भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण किया और बलि से भिक्षा में तीन पग भूमि मांगी।
जब बलि ने वचन दे दिया, तो वामन रूपी विष्णु ने विराट स्वरूप धारण कर लिया। एक पग से पृथ्वी नाप ली, दूसरे से आकाश और तीसरे पग के लिए स्थान न मिलने पर बलि ने अपना सिर अर्पित कर दिया। भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर बलि को पाताल लोक का स्वामी बना दिया और उसे यह वरदान दिया कि वह स्वयं पाताल में निवास करेंगे। मान्यता है कि परिवर्तिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा से करवट बदलते हैं।
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परिवर्तिनी एकादशी की विशेषता
यह दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु को समर्पित है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से पाप नष्ट होते हैं, मोक्ष की प्राप्ति होती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस दिन व्रत करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और भक्त को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, इन चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है।
इस व्रत से जुड़ी मान्यता है कि इस दिन व्रत कथा मात्र को सुनने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। परिवर्तिनी एकादशी के दिन दान-पुण्य का करना अत्यधिक फलदायी माना जाता है। इस दिन विशेष रूप से अन्न और वस्त्र का दान किया जाता है।
परिवर्तिनी एकादशी पूजन विधि
स्नान और संकल्प
प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें। भगवान विष्णु के समक्ष व्रत का प्रण करें कि दिनभर उपवास और पूजा करेंगे।
व्रत का नियम
इस दिन पूर्ण उपवास का महत्व है लेकिन जिनसे संभव न हो वे फलाहार कर सकते हैं। ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक माना गया है।
भगवान विष्णु की पूजा
- भगवान विष्णु की प्रतिमा और तस्वीर को पीले वस्त्र पहनाकर आसन पर स्थापित करें।
- गंगाजल से शुद्धिकरण करें।
- धूप, दीप, पुष्प, तुलसीदल, फल और पंचामृत से पूजन करें।
- पीले फूल और तुलसीपत्र विशेष रूप से अर्पित करें क्योंकि यह भगवान विष्णु को प्रिय है।
व्रत कथा श्रवण
शाम के समय परिवर्तिनी एकादशी की व्रत कथा सुनना और सुनाना अनिवार्य माना गया है।
आरती और भजन
भगवान विष्णु की आरती करें और 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप करें।
दान का महत्व
इस दिन ब्राह्मण या जरूरतमंद को अन्न, वस्त्र और दक्षिणा दान करना बहुत पुण्यदायी माना गया है।
व्रत पारण
अगले दिन द्वादशी तिथि को स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की पूजा कर व्रत का पारण करें।
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परिवर्तिनी एकादशी पर ये चीजें करें दान
अनाज और भोजन - परिवर्तिनी एकादशी के दिन अनाज और भोजन का दान करना बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन जरूरतमंद लोगों को भोजन कराने या चावल, दाल और गेहूं आदि चीजों का दान करने से भगवान विष्णु खुश होते हैं और घर में धन-धान्य की कमी नहीं होती।
पीले वस्त्र - भगवान विष्णु को पीला रंग बहुत प्रिय है। इसलिए परिवर्तिनी एकादशी के दिन पीले वस्त्रों का दान करना बहुत अच्छा होता है। ऐसा करने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मकता आती है और आर्थिक संकट दूर होते हैं।
फल - इस दिन मौसमी फल का दान करना भी बहुत लाभकारी होता है। इस दान से अच्छे स्वास्थ्य और समृद्धि का वरदान मिलता है।
तिल - तिल का दान करने से शनि दोष से मुक्ति मिलती है और जीवन में स्थिरता आती है। यह दान आध्यात्मिक और भौतिक सुखों को बढ़ाता है।
गाय - गाय का दान, जिसे गो-दान भी कहते हैं, सभी दानों में सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। अगर आप गाय का दान नहीं कर सकते, तो गाय को चारा खिलाने जैसे अच्छे काम कर सकते हैं।
घी और शहद - परिवर्तिनी एकादशी पर घी और शहद का दान करने से घर में खुशहाली आती है और जीवन में मिठास बनी रहती है।
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