सनातन धर्म में देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु का संबंध प्रेम, समर्पण और अटूट विश्वास का प्रतीक माना जाता है। हालांकि, एक बार एक ऐसी घटना घटी, जब माता लक्ष्मी ने स्वयं भगवान विष्णु को भयानक श्राप दे दिया। इस रोचक कथा का उल्लेख श्रीमद्देवी पुराण में मिलता है। आइए जानते हैं, इस रोचक कथा के विषय में।
माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की कथा
एक बार भगवान विष्णु अपने वाहन गरुड़ के साथ पृथ्वी लोक की यात्रा पर निकले। इस यात्रा के दौरान उन्होंने भगवान शिव की घोर तपस्या करने वाले महर्षि भृगु के आश्रम का रुख किया। ऋषि भृगु अपनी साधना में लीन थे और उनका तेज इतना प्रखर था कि स्वयं देवता भी उनकी साधना को देख आश्चर्यचकित थे।
उसी समय देवताओं के बीच यह प्रश्न उठने लगा कि त्रिदेवों – ब्रह्मा, विष्णु और महेश – में से सबसे श्रेष्ठ कौन हैं? इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए ऋषि भृगु को चुना गया और उन्होंने स्वयं इन तीनों के धामों की यात्रा करने का निश्चय किया।
भृगु ऋषि की परीक्षा और भगवान विष्णु का अपमान
सबसे पहले ऋषि भृगु ब्रह्मलोक गए, जहां भगवान ब्रह्मा अपनी पत्नी सरस्वती के साथ विराजमान थे। लेकिन जब भृगु ने उनका अभिवादन नहीं किया तो ब्रह्मा जी क्रोधित हो गए। फिर वे कैलाश पर्वत पहुंचे, जहां भगवान शिव माता पार्वती के साथ ध्यान में लीन थे। भृगु ने भगवान शिव का भी अपमान किया, जिससे शिव अत्यंत क्रोधित हो गए, लेकिन पार्वती ने उन्हें शांत किया।
इसके बाद ऋषि भृगु वैकुंठ पहुंचे, जहां भगवान विष्णु माता लक्ष्मी के साथ शेष शैया पर विश्राम कर रहे थे। जब विष्णु ने भृगु को देखा, तो वह तुरंत उठकर उनके स्वागत के लिए आगे बढ़े लेकिन भृगु ने आव देखा न ताव और क्रोधित होकर भगवान विष्णु की छाती पर जोरदार लात मार दी।
विष्णु जी को इससे कोई क्रोध नहीं आया, बल्कि उन्होंने भृगु ऋषि का पांव पकड़ लिया और बोले, 'मुनिवर, आपको कहीं चोट तो नहीं लगी? मेरी कठोर छाती के कारण आपके चरणों को पीड़ा तो नहीं हुई?'
भगवान विष्णु की इस विनम्रता को देखकर भृगु ऋषि का हृदय पिघल गया और उन्होंने उन्हें सर्वोच्च देवता घोषित किया।
माता लक्ष्मी का क्रोध और श्राप
जब माता लक्ष्मी ने यह दृश्य देखा कि भगवान विष्णु किसी और के चरणों पर अपने हृदय से अधिक ध्यान दे रहे हैं, तो उन्हें अत्यंत पीड़ा हुई। माता लक्ष्मी यह देखकर क्रोधित हो गईं कि उनके प्रियतम विष्णु जी ने उनका अपमान सहन कर लिया लेकिन ऋषि भृगु का अनादर नहीं किया।
क्रोधावेश में माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु से कहा, 'प्रभु! आपने एक अन्य व्यक्ति का इतना सम्मान किया लेकिन मेरे अपमान को अनदेखा कर दिया। यह देखकर मुझे दुख हुआ। मैं आपको श्राप देती हूं कि आप अपने शरीर से विमुक्त हो जाएंगे और पृथ्वी लोक पर जन्म लेंगे!'
भगवान विष्णु माता लक्ष्मी का यह कठोर निर्णय सुनकर दुखी हो गए, लेकिन उन्होंने इस श्राप को सहर्ष स्वीकार कर लिया।
भगवान विष्णु का अवतार और श्राप की पूर्ति
माता लक्ष्मी के श्राप के कारण भगवान विष्णु को पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ा। इस श्राप की पूर्ति उनके श्रीराम और श्रीकृष्ण अवतारों में हुई।
श्रीराम अवतार – जब भगवान विष्णु ने श्रीराम के रूप में जन्म लिया, तब उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दी और जल समाधि ले ली।
श्रीकृष्ण अवतार – जब श्रीकृष्ण के रूप में विष्णु पृथ्वी पर आए, तो उनके जीवन के अंतिम चरण में शिकारी के तीर से उनके शरीर का अंत हुआ।
इस प्रकार, माता लक्ष्मी के श्राप के कारण भगवान विष्णु को पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ा और उन्हें मानव रूप में अपने जीवन का अंत करना पड़ा।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।