जगन्नाथ रथ यात्रा: वह सब कुछ जो आप जानना चाहते हैं
धर्म-कर्म
• BHUBANESWAR 01 May 2025, (अपडेटेड 03 May 2025, 7:06 AM IST)
ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के लिए हर साल की तरह इस साल भी अक्षय तृतीया के दिन से रथ का निर्माण शुरू हो चुका है। यह रथ निर्माण अगले 58 दिनों तक चलेगा।

भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा| Photo Credit: Social Media
ओडिशा के पुरी में अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर 30 अप्रैल से भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के लिए भव्य रथों के निर्माण की परंपरागत शुरुआत हो चुकी है। बुधवार को ही परंपरा के अनुसार, भगवान की 42 दिवसीय 'चंदन यात्रा' की भी शुरुआत हो चुकी है। सदियों पुरानी इस परंपरा की पौराणिक मान्यता के अनुसार, द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ अक्षय तृतीया के दिन नगर में घूमने के लिए रथयात्रा की थी। इसी घटना को याद करते हुए हर साल अक्षय तृतीया के दिन से ही इनका रथ निर्माण शुरू किया जाता है। इस साल भगवान जगन्नाथ की यात्रा 27 जून को होगी।
भगवान जगन्नाथ के मंदिर के सेवादारों ने श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन के मुख्य प्रशासक अरबिंद पाढ़ी, पुरी के जिलाधिकारी सिद्धार्थ शंकर स्वैन और पुलिस अधीक्षक विनीत अग्रवाल की उपस्थिति में मंदिर के बाहर ग्रैंड रोड पर 'रथ खला' में विशेष पूजा की। रथ खला उस जगह को कहते हैं, जहां रथ तैयार किया जाता है। मंदिर प्रशासन के मुख्य प्रशासक अरबिंद पाढ़ी ने बताया कि भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ के रथों का निर्माण अक्षय तृतीय से लेकर अगले 58 दिनों तक 'रथ खला' में की जाएगी।
अरबिंद ने बताया कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, हर साल तीन रथों का निर्माण किया जाता है, जिसमें नंदीघोष नामक रथ पर भगवान जगन्नाथ बैठते हैं, दर्पदलन रथ पर देवी सुभद्रा बैठती हैं और तालध्वज नामक रथ पर बलभद्र जी बैठते हैं।
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रथयात्रा की पौराणिक मान्यता
श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार, द्वारका में रहते हुए एक दिन भगवान श्री कृष्ण के मन में अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ नगर में घूमने की इच्छा हुई। इसी इच्छा को पूरा करने के लिए भगवान कृष्ण ने विश्वकर्मा से कहकर तीन भव्य रथों का निर्माण करवाया था। वहीं, दूसरी ओर लोग एक और मान्यता की चर्चा करते हैं, जिसको लेकर कहा जाता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण के मामा, कंस ने उन्हें मारने की योजना बनाई, तब कंस ने अपने दरबारी अक्रुर को एक रथ के साथ गोकुल भेजा, तब भगवान श्रीकृष्ण अपने भाई बलराम के साथ रथ पर बैठकर मथुरा के लिए रवाना हो गए थे। लोग कहते हैं कि गोकुलवासी इस दिन को रथ यात्रा का प्रस्थान मानते हैं।
कैसे बनते हैं जगन्नाथ यात्रा के रथ?
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में बनाए जाने वाले रथों में 'दारु नीम' की लकड़ी और 'साल' की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। इन पेड़ों की लकड़ियों को बहुत पवित्र माना जाता है। रथ की लकड़ी का चयन बसंत पंचमी के दिन किया जाता है। जगन्नाथ यात्रा के तीनों रथों को बनाने में किसी भी प्रकार के धातु का इस्तेमाल नहीं किया जाता। रथ को बनाने में लोहे की कील और लोहे के तारों का भी इस्तेमाल नहीं किया जाता है। पूरे रथ का निर्माण हाथों से किया जाता है। रथ बनाने के लिए किसी भी प्रकार की मशीन का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। इन रथों को खास कारीगर बनाते हैं। करीगरों की खास परंपरागत टीम को 'महरणा' और 'भूइन' कहा जाता है। ये कारीगर पीढ़ियों से इसी काम को करते आ रहे हैं।
महरणा: भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा में शामिल रथों के निर्माण में महरणा का महत्वपूर्ण योगदान शामिल है। ये लोग रथ के पहिए को सही आकार और माप देते हैं ताकि रथ, यात्रा के दौरान आसानी से चल सके। साथ ही ये लोग रथों की मजबूती को भी सुनिश्चित करते हैं। महरणा रथों की मरम्मत भी करते हैं, क्योंकि ये लोग मरम्मत में माहिर होते हैं।
भूइन: भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा में शामिल रथों के निर्माण में भूइन का भी महत्वपूर्ण योगदान शामिल है। ये लोग रथ के निर्माण के दौरान रथ को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने का काम करते हैं। यह रथ बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका है। भूइन सेवक भारी लकड़ियों को रथ निर्माण स्थल तक ले जाते हैं। ये लोग रथ के अलग-अलग हिस्सों को अपने हाथों से जोड़ते हैं। साथ ही रथ यात्रा के दौरान भूइन सेवक रथ को खींचने में भी मदद करते हैं।
रथ की लकड़ियों का इस्तेमाल
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा पूरी होने के बाद रथ के एक-एक हिस्से की लकड़ी को खास तरीके से इस्तेमाल किया जाता है। सूत्रों के मुताबिक, रथ यात्रा पूरी होने के बाद रथ के कुछ हिस्से की लकड़ियो का इस्तेमाल भगवान जगन्नाथ की रसोई में प्रसाद बनाने के लिए किया जाता है। वहीं, तीनों रथों के पहियों को भक्तों में बांट दिया जाता है।
नंदीघोष रथ की विशेषता
भगवान जगन्नाथ जी के रथ का नाम नंदीघोष है। नंदीघोष को बनाने में लकड़ी के 832 टुकड़ों का इस्तेमाल किया जाता हैं। यह भव्य रथ 16 पहियों पर खड़ा होता है। रथ की ऊंचाई 45 फीट और लंबाई 34 फीट होती है। इस रथ को दारूक नाम के सारथी चलाते हैं, जबकि इसकी रक्षा स्वयं गरुड़ भगवान करते हैं। रथ खीचने वाली रस्सी का नाम शंखचूर्ण नागुनी है और इस रथ पर फहराने वाली पताका का नाम त्रैलोक्य मोहिनी है। पुराणों के अनुसार, रथ को खीचने वाले चारों घोड़ों का नाम शंख, बहालक, सुवेत और हरिदश्व है। हालांकि, रथ को वहां जुटने वाले श्रद्धालु ही खींचते हैं। जगन्नाथ जी के रथ पर वराह, गोवर्धन, कृष्ण, गोपीकृष्ण, नृसिंह, राम, नारायण, त्रिविक्रम, हनुमान और रुद्र जैसे 9 देवता सवार होते हैं। इस रथ को गरुणध्वज और कपिध्वज के नाम से भी जानते हैं। नंदीघोष रथ न केवल भगवान जगन्नाथ के यात्रा का साधन है, बल्कि यह श्रद्धा,परंपरा और आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रतीक भी है।
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दर्पदलन रथ की विशेषता
भगवान श्रीकृष्ण की बहन देवी सुभद्रा के रथ का नाम देवदलन है, इसे लोग दर्पदलन के नाम से भी जाना जाता हैं। दर्पदलन को बनाने में लकड़ी के 593 टुकड़ों का इस्तेमाल किया जाता हैं। यह रथ 12 पहियों पर खड़ा होता है, जिसकी ऊंचाई 43 फीट और लंबाई 31 फीट होती है। मान्यता के अनुसार, इस रथ को स्वंय अर्जुन चलाते हैं, जबकि इसकी रक्षा जयदुर्गा देवी करती हैं। रथ खीचने वाली रस्सी का नाम स्वर्णचूड़ नागुनी है और इस रथ पर फहराने वाली पताका का नाम नंदबिका है। पुराणों के अनुसार, रथ को खीचने वाले चारों घोड़ों का नाम रुचिका, मोचिका, जीत और अपराजिता है। यह रथ देवी सुभद्रा की शक्ति, सौम्यता और विजय का प्रतीक माना जाता है।
तालध्वज रथ की विशेषता
बलभद्र जी तालध्वज नामक रथ से यात्रा करते थे। यह रथ तीनों रथों में सबसे मजबूत और विशाल होता है। तालध्वज को बनाने में लकड़ी के 763 टुकड़ों का इस्तेमाल किया जाता हैं। यह भव्य रथ 14 पहियों पर खड़ा होता है, जिसकी ऊंचाई 44 फीट और लंबाई 33 फीट होती है। इस रथ को मातली नाम के सारथी चलाते हैं, जबकि इसकी रक्षा स्वयं भगवान वासुदेव करते हैं। रथ खीचने वाली रस्सी को वासुकि नाग कहा जाता है और इस रथ पर फहराने वाली पताका का नाम उन्नानी है। पुराणों के अनुसार, रथ को खीचने वाले चारों घोड़ों का नाम तीव्र, घोर, दीर्घाश्रम और स्वर्णनाभ है। यह रथ बलराम जी की शक्ति और नेतृत्व का प्रतीक माना जाता है।
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