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पूर्णिमा और चंद्र स्तोत्र का है खास संबंध, अर्थ के साथ जानें लाभ

पूर्णिमा तिथि के दिन चंद्र देव की उपासना का विधान है। आइए जानते हैं चंद्र स्तोत्र का अर्थ और इसका लाभ।

Image of Chandra and Bhagwan Vishnu

सांकेतिक चित्र(Photo Credit: Creative Image)

भारत में हर पूर्णिमा तिथि को धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत शुभ माना जाता है। विशेष रूप से ज्येष्ठ पूर्णिमा का दिन चंद्रमा की पूजा के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है। इस दिन चंद्र देव को प्रसन्न करने के लिए एक विशेष स्तोत्र का पाठ किया जाता है, जिसमें उनकी सुंदरता, शांति और ऊर्जा का गुणगान किया गया है।

यह पांच श्लोकों का स्तोत्र चंद्र देव की स्तुति करता है और इसे पढ़ने या सुनने से मन, मस्तिष्क और शरीर को गहरी शांति मिलती है।

 

चंद्र स्तोत्र और इसका अर्थ

 

श्वेताम्बर: श्वेतवपु: किरीटी, श्वेतद्युतिर्दण्डधरो द्विबाहु: ।
चन्द्रो मृतात्मा वरद: शशांक:, श्रेयांसि मह्यं प्रददातु देव: ।।1।।

 

'श्वेत वस्त्र धारण करने वाले, उज्ज्वल प्रकाश वाले, दो भुजाओं में दंड लिए हुए, मस्तक पर मुकुट धारण करने वाले, अमृत रूप, वरदान देने वाले, शीतल चंद्रमा – ऐसे देवता मुझे कल्याण प्रदान करें।' चंद्र देव के दिव्य और सौम्य स्वरूप का वर्णन करते हुए यह श्लोक उनके आशीर्वाद की प्रार्थना करता है।

दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णवसम्भवम ।
नमामि शशिनं सोमं शम्भोर्मुकुटभूषणम ।।2।।

 

'दही, शंख और बर्फ के समान उज्जवल, क्षीर सागर से उत्पन्न हुए, शिव के मस्तक को सुशोभित करने वाले चंद्रमा को मैं नमन करता हूं।' इसमें चंद्रमा की उत्पत्ति और उनकी शिव से जुड़ी भूमिका को दर्शाया गया है।

 

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क्षीरसिन्धुसमुत्पन्नो रोहिणी सहित: प्रभु: ।
हरस्य मुकुटावास: बालचन्द्र नमोsस्तु ते ।।3।।


क्षीर सागर से उत्पन्न होकर रोहिणी नक्षत्र के साथ रहने वाले प्रभु, शिव के मुकुट में विराजमान – हे बालचंद्र! आपको बार-बार नमन।' चंद्र देव के कोमल बाल रूप और उनकी दिव्यता को नमस्कार है।

 

सुधायया यत्किरणा: पोषयन्त्योषधीवनम ।
सर्वान्नरसहेतुं तं नमामि सिन्धुनन्दनम ।।4।।

 

जिसके किरणों से औषधियां और वनस्पतियां पोषित होती हैं, जो संपूर्ण अन्न का स्रोत हैं – ऐसे समुद्र पुत्र चंद्रमा को मैं नमन करता हूं।' इसमें चंद्रमा के पोषण और कृषि से संबंध को बताया गया है।

 

राकेशं तारकेशं च रोहिणीप्रियसुन्दरम ।
ध्यायतां सर्वदोषघ्नं नमामीन्दुं मुहुर्मुहु: ।।5।।

 

'जो राका (पूर्णिमा) के देवता हैं, तारों के बीच सबसे उज्ज्वल हैं, रोहिणी को प्रिय हैं – उन्हें ध्यान करने से सभी दोष मिटते हैं। मैं ऐसे चंद्रदेव को बार-बार नमस्कार करता हूं।' चंद्रमा के पूजन से मनोविकार और मानसिक दोष मिटते हैं, यह बताया गया है।

ज्येष्ठ पूर्णिमा पर इस स्तोत्र का महत्व:

चंद्रमा मन का प्रतीक हैं। ज्येष्ठ की गर्मी और मानसिक अस्थिरता से राहत पाने के लिए चंद्र स्तोत्र अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है। साथ ही जिनकी कुंडली में चंद्रमा कमजोर होता है, उन्हें इस दिन यह स्तोत्र पढ़ना लाभकारी माना जाता है।

 

यह स्तोत्र चंद्रमा के शिव से जुड़े स्वरूप की भी स्तुति करता है, इसलिए यह भगवान शिव के भक्तों के लिए भी महत्वपूर्ण होता है। साथ ही चंद्रमा की किरणें औषधीय वनस्पतियों में शक्ति भरती हैं। इस स्तोत्र से प्रकृति और जीवनदायिनी ऊर्जा को सम्मान मिलता है।

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