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राधा अष्टमी: व्रत के नियम से कथा तक, वह सब जो आप जानना चाहते हैं

सनातन धर्म में राधा अष्टमी को विशेष महत्व दिया गया है। इस दिन लोग श्रीजी की कृपा पाने के लिए व्रत और पूजन करते है, आइए जानते हैं व्रत रखने के नियम और पूजा विधि।

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प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo credit: AI

राधा अष्टमी का पर्व भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इसे श्रीकृष्ण की परम प्रेयसी और उनकी भक्ति की प्रतीक राधा रानी के जन्मोत्सव के रूप में श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। मान्यता है कि बिना राधा के श्रीकृष्ण का पूजन अधूरा माना जाता है, इसलिए राधा अष्टमी का महत्व जन्माष्टमी जितना ही माना जाता है। इस दिन का महत्व विशेष रूप से वृंदावन, मथुरा और बृज क्षेत्र के बर्साना में माना जाता है। यहां मंदिरों में भव्य सजावट होती है और राधा-कृष्ण के प्रेम की लीलाओं का अद्भुत उत्सव मनाया जाता है।

 

इस दिन श्रद्धालु उपवास और व्रत रखते हैं, विशेषकर महिलाएं संतान-सुख और परिवार की समृद्धि की कामना से पूजा करती हैं। भक्त सुबह स्नान-ध्यान के बाद राधा-कृष्ण की मूर्तियों को गंगाजल और पंचामृत से स्नान कराते हैं, उन्हें पुष्प, वस्त्र और श्रृंगार अर्पित करते हैं। इस दिन राधा रानी की आरती, भजन-कीर्तन और झांकी का आयोजन किया जाता है।

 

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श्रीजी के साथ होती है इनकी पूजा

राधाष्टमी के दिन मुख्य रूप से देवी श्री राधारानी की पूजा अर्चना की जाती है। श्रीजी का जन्मोत्सव होने की वजह से उनके बाल किशोरी स्वरूप का पूजन और अभिषेक किया जाता है। श्री राधारानी के बाल स्वरूप को वृषभानु लली के नाम से जाना जाता है। इस दिन श्रीजी के पिता वृषभानु जी एवं माता कीर्तिदा की भी पूजा-अर्चना की जाती है।

राधा अष्टमी व्रत रखने के नियम

  • सुबह स्नान कर शुद्ध कपड़े पहनें।
  • मंदिर में राधा–कृष्ण की प्रतिमा स्थापित करें।
  • राधा रानी का पंचामृत से अभिषेक करें और श्रृंगार करें।
  • दोपहर में कथा पाठ, मंत्रोच्चारण और भजन-कीर्तन करें
  • उपवास रखें, कुछ लोग निर्जला व्रत रखते हैं। वहीं कुछ लोग फलाहार भी करते हैं।
  • अंत में, प्रसाद बांटें और दक्षिणा दें।

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पूजन विधि 

  • राधा-कृष्ण की प्रतिमा या चित्र को गंगाजल से स्नान कराएं।
  • श्रीजी को पुष्प, वस्त्र, आभूषण और श्रृंगार अर्पित करें।
  • श्रीजी का पंचामृत से अभिषेक करें।
  • राधा-कृष्ण के मंत्रों का जाप करें और आरती करें।
  • भजन-कीर्तन – दिनभर भक्ति संगीत, रासलीला और कीर्तन का आयोजन करें।
  • संध्या काल – कथा सुनें और व्रत का पारण फलाहार से करें।
  • दान-पुण्य – गरीबों और ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र, और दान देना शुभ माना गया है।

राधा अष्टमी व्रत का महत्व

भक्ति की सर्वोच्चता

  • राधा जी को भक्ति और प्रेम की प्रतिमूर्ति माना जाता है। इस दिन व्रत रखने से मनुष्य के भीतर सच्चे प्रेम, भक्ति और आध्यात्मिकता का संचार होता है।
  • सुख-शांति और समृद्धि
  • मान्यता है कि राधा अष्टमी का व्रत रखने से परिवार में शांति, आपसी प्रेम और समृद्धि आती है। यह व्रत नकारात्मकता और क्लेश को दूर करता है।

पति-पत्नी के रिश्ते में मजबूती

 

यह व्रत विशेषकर महिलाओं के लिए शुभ माना गया है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से वैवाहिक जीवन में सौभाग्य, प्रेम और सामंजस्य बढ़ता है।

 

मोक्ष की प्राप्ति

 

धार्मिक मान्यता के अनुसार, राधा अष्टमी के दिन व्रत और पूजा करने से जन्म-जन्मांतर के पाप कटते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

 

लक्ष्मी कृपा

 

राधा रानी को श्रीकृष्ण की हृदय संगिनी व लक्ष्मी स्वरूपा माना जाता है। उनकी उपासना से घर में लक्ष्मी और ऐश्वर्य की वृद्धि होती है।

 

राधा-कृष्ण कृपा

 

इस दिन व्रत रखने वाले भक्तों को भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी दोनों का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।

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