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राधा अष्टमी कब है, कैसे पूजन करें, मुहूर्त से पूजन विधि तक, सब जानिए

हिंदू धर्म में राधा अष्टमी को उतना ही महत्व दिया जाता है, जितना की श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को दिया जाता है। आइए जानते है इस साल पंचांग के अनुसार, कब और किस दिन राधा अष्टमी का व्रत, पूजन किया जाएगा।

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प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo Credit: AI

राधा अष्टमी का पर्व भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इसे श्रीकृष्ण की परम प्रेयसी और उनकी भक्ति की प्रतीक राधा रानी के जन्मोत्सव के रूप में श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। मान्यता है कि बिना राधा के श्रीकृष्ण का पूजन अधूरा माना जाता है, इसलिए राधा अष्टमी का महत्व जन्माष्टमी जितना ही माना जाता है। इस दिन का महत्व विशेष रूप से वृंदावन, मथुरा और ब्रज क्षेत्र के बरसाना में माना जाता है। यहां मंदिरों में भव्य सजावट होती है और राधा-कृष्ण के प्रेम की लीलाओं का अद्भुत उत्सव मनाया जाता है।

 

इस दिन श्रद्धालु उपवास और व्रत रखते हैं, विशेषकर महिलाएं संतान-सुख और परिवार की समृद्धि की कामना से पूजा करती हैं। भक्त सुबह स्नान-ध्यान के बाद राधा-कृष्ण की मूर्तियों को गंगाजल और पंचामृत से स्नान कराते हैं, उन्हें पुष्प, वस्त्र और श्रृंगार अर्पित करते हैं। इस दिन राधा रानी की आरती, भजन-कीर्तन और झांकी का आयोजन किया जाता है।

 

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कब है राधा अष्टमी 2025?

पंचांग के अनुसार, वर्ष 2025 में राधा अष्टमी की तिथि की शुरुआत 30 अगस्त, शनिवार को 10:40 रात से होगी और इस तिथि की समापन 01 सितम्बर को 12:57 दोपहर पर होगी। ऐसें में राधा अष्टमी 31 अगस्त, रविवार को मनाई जाएगी। यह दिन भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को आता है। इस दिन भगवान देवी राधा के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। पंचाग के अनुसार, देवी राधा के पूजन का शुभ मुहूर्त 31 अगस्त को दोपहर में 11:00 बजे से 1:30 रात के बीच का बताया गया है। 

राधा अष्टमी से जुड़ी पौराणिक कथा

देवी राधा के जन्म से जुड़ी कई कथाऐं प्रचलित हैं, जिसमें बताया गया है कि क्यों देवी राधा का जन्म पृथ्वी पर हुआ था। इसी से जुड़ी एक कथा प्रचलित है, जिसके बताया गया है कि राधा अष्टमी के दिन वृषभानु और उनकी पत्नी कीर्तिदा के घर राधा रानी का प्राकट्य हुआ था। कहा जाता है कि राधा जी जन्म के समय बिना आंखें खोले पैदा हुई थीं और उन्होंने पहली बार अपनी आंखें तब खोलीं जब उनके सामने श्रीकृष्ण प्रकट हुए। तभी से देवी राधा और श्रीकृष्ण का प्रेम आध्यात्मिक भक्ति और दिव्य प्रेम का प्रतीक माना जाता है।

 

कुछ मान्यताओं के अनुसार, राधा जी को वास्तव में भक्ति की देवी और स्वयं लक्ष्मी का अवतार माना जाता हैं, जिन्हें श्रीकृष्ण के साथ धरती पर अवतरित होकर मानवता को प्रेम और भक्ति का मार्ग दिखाने के लिए भेजा गया था।

 

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राधा अष्टमी की विशेषता

  • राधा अष्टमी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी जितना ही महत्व प्राप्त है।
  • यह दिन भक्ति, प्रेम और समर्पण का संदेश देता है।
  • बिना देवी राधा के श्रीकृष्ण का पूजन अधूरा माना जाता है।
  • विशेषकर वृंदावन, मथुरा और बर्साना में यह उत्सव अत्यंत भव्य रूप से मनाया जाता है।
  • इस दिन राधा-कृष्ण की झांकियां, भजन-कीर्तन और श्रृंगार विशेष रूप से किए जाते हैं।

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