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जन्म से लेकर विवाह तक, राधा के जीवन के पड़ाव, जब कृष्ण नहीं रहे साथ

भगवान कृष्ण और राधा जी से जुड़ी बहुत सी कथाएं पुराणों और अन्य धार्मिक ग्रंथों में प्रचलित हैं। वहीं, कुछ ग्रंथों में श्रीकृष्ण और राधा जी के विवाह का भी वर्णन किया गया है।

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प्रतीकात्मक तस्वीर: Photo credit: AI

राधा जी का जीवन और उनका श्रीकृष्ण से संबंध भक्ति और प्रेम का सबसे गूढ़ रहस्य माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, राधा जी का जन्म वृषभानु जी और माता कीर्ति के घर बरसाना में हुआ था। उन्हें लक्ष्मी जी का अवतार और भक्ति की प्रतिमूर्ति माना जाता है। धार्मिक ग्रंथों में वर्णित कथाओं के अनुसार, बचपन से ही राधा जी का मन श्रीकृष्ण की ओर आकर्षित रहा और उनकी लीलाओं में राधा जी हमेशा अपनी सखियों के साथ शामिल रहतीं थीं। 

 

प्रचलित कथा के अनुसार, देवी राधा और श्रीकृष्ण का प्रेम सांसारिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक था। इसमें न अधिकार था और न ही स्वार्थ था। उनके प्रेम में केवल समर्पण और भक्ति का भाव था। इसी वजह से रासलीला में हजारों गोपियां होते हुए भी देवी राधा का स्थान सबसे ऊंचा था। कुछ पुराणों में कहा गया है कि राधा जी का विवाह अयांघोष नामक व्यक्ति से हुआ था लेकिन उन्होंने कभी दांपत्य जीवन नहीं निभाया। वहीं ब्रह्मवैवर्त पुराण में वर्णन है कि देवी राधा और श्रीकृष्ण का दिव्य विवाह हुआ था, जो सांसारिक बंधन से परे था।

 

श्रीकृष्ण के वृंदावन से जाने के बाद देवी राधा का जीवन

 

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वृंदावन और कृष्ण का प्रस्थान

भागवत पुराण और अन्य ग्रंथों के अनुसार, जब कंस ने अखाड़े में श्रीकृष्ण और बलराम को बुलाया, तब कृष्ण को मथुरा जाना पड़ा था। उसी समय से राधा जी और वृंदावन की गोपियां विरह से व्याकुल हो गईं थी। पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार, राधा जी का पूरा जीवन कृष्ण-विरह में बीत गया था।

रासलीला का अधूरा रह जाना

प्रचलित कथाओं के अनुसार, कहा जाता है कि श्रीकृष्ण ने रासलीला के समय ही संकेत दिया था कि वह हमेशा प्रत्यक्ष रूप में वृंदावन वासियों के साथ नहीं रह पाएंगे। जब श्रीकृष्ण मथुरा चले गए, तो राधा जी का श्रीकृष्ण के विरह में बुरा हाल हो गया था।  पुराणों में राधा जी की उस स्थिति को वियोग भक्ति का नाम दिया गया है।

 

राधा जी का जीवन वृंदावन में

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, श्रीकृष्ण के द्वारका चले जाने के बाद भी राधा जी ने कभी उनके बिना जीवन की कल्पना नहीं की थी। वह हर समय श्रीकृष्ण की याद में डूबी रहतीं थीं। ब्रह्मवैवर्त पुराण में वर्णन है कि राधा जी ने अपने जीवन का हर क्षण कृष्ण-स्मरण और भजन में बिताया था।

 

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राधा जी का अंत

ब्रह्मवैवर्त पुराण में वर्णन है कि जब राधा जी का अंतिम समय आया, तो वह द्वारका में श्रीकृष्ण के पास गईं थी। उन्होंने कृष्ण से प्रार्थना की कि वह उन्हें अपने साथ मिला लें। श्रीकृष्ण ने कहा कि वह हमेशा से एक हैं और कभी अलग नहीं। उसी क्षण राधा जी ने अपने सांसारिक शरीर का त्याग कर श्रीकृष्ण में लीन हो गईं थीं।

राधा जी से कहां हुई थी भगवान कृष्ण की पहली मुलाकात?

ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, राधा जी और श्रीकृष्ण का प्रेम केवल इस जन्म का नहीं था, बल्कि यह दिव्य और शाश्वत है। राधा जी को भगवान विष्णु की ह्लादिनी शक्ति कहा गया है, यानी वह आनंद और प्रेम की शक्ति हैं और श्रीकृष्ण उस शक्ति के परम पुरुष माने जाते हैं। इसलिए जब श्रीकृष्ण व्रजभूमि में जन्मे, तो उसी समय राधा जी भी धरती पर प्रकट हुईं थीं।

 

कहा जाता है कि राधा जी और कृष्ण जी की पहली मुलाकात संकेत स्थान पर हुई, जो बरसाना और नंदगांव के बीच में स्थित है। यही स्थान उनके दिव्य प्रेम की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है।

 

एक और मान्यता यह भी है कि जब नन्हे कृष्ण को नंद बाबा राधा जी की गोद में खेलने के लिए ले गए थे, तभी उनका पहला साक्षात्कार हुआ था। उसी समय से दोनों का रिश्ता और भी गहरा हो गया था।

 

 

कुछ कथाओं में यह भी बताया गया है कि किशोरावस्था में श्रीकृष्ण और राधा जी की पहली मुलाकात यमुना तट पर हुई थी। वहीं से उनके दिव्य प्रेम और रासलीला की शुरुआत मानी जाती है।

भगवान कृष्ण और देवी राधा का विवाह!

ब्रह्मवैवर्त पुराण में देवीराधा और श्रीकृष्ण की दिव्य प्रेम कथाओं को विशेष स्थान मिला है, जो पारंपरिक पुराणों से कहीं गहरे रूप में बतायी गई हैं।

 

दिव्य विवाह


प्रकृति की लौकिक सीमाओं और सामाजिक बंधनों से परे ब्रह्मवैवर्त पुराण (कृष्ण-जन्म-खंड, अध्याय 15) इस तथ्य का वर्णन करता है कि ब्रह्मा जी ने वृंदावन के भांडीरवन में देवी राधा और श्रीकृष्ण का गुप्त विवाह (गांधरव विवाह) संपन्न कराया था।

 

यह विवाह अत्यंत गुप्त था। पुराण के अनुसार, इसका दर्शन केवल कुछ चुनिंदा गोकुल वासियों (गोपियों, पक्षियों, वृक्षों, गोधूलि में शामिल सभी) को ही हुआ था।

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