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कौन हैं राजेंद्र दास महाराज जिनकी तारीफ करते हैं प्रेमानंद महाराज

मलूक पीठ के पीठाधीश्वर राजेन्द्र दास महाराज को संस्कृत और उपनिषदों का गहन ज्ञान है। जानिए उनका परिचय।

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मलूक पीठ के पीठाधीश्वर राजेंद्र दास महाराज।(Photo Credit: Social Media)

वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज आज देश भर में अपने प्रवचनों के लिए विख्यात हैं। वृंदावन में स्थित उनके आश्रम में कई भक्त हर दिन उनके हितवचनों को सुनने के लिए आते हैं। उनके भक्तों में न सिर्फ आम लोग, बल्कि नेता-अभिनेता तक शामिल हैं। हालही में हिमाचल प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद प्रेमानंद महाराज से उनके आश्रम में मिलने आए। तब प्रेमानंद महाराज ने उनको सुझाव दिया कि वह मूल संस्कृत में श्रीमद्भागवत का पाठ करवाएं।

 

साथ ही उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि वह संकल्प लेकर भगवत पाठ करवाएं और अपनी पत्नी को सौंप दें। इसके बाद उन्होंने सबसे उत्तम व्यक्ति राजेन्द्र दास महाराज को बताया, साथ ही उनकी काफी प्रशंसा भी की। उन्होंने बताया कि उनकी वाणी में कोई भी गलती नहीं होती है। प्रेमानंद महाराज से मिलने के बाद मुकेश अग्निहोत्री ने मलूक पीठाधीश्वर राजेंद्रदास महाराज से भागवत कथा करवाया और खुद यजमान बनकर बैठे। आइए जानते हैं कि कौन हैं राजेंद्र दास महाराज?

राजेंद्र दास महाराज

राजेंद्र दास महाराज वर्तमान में वृंदावन के प्रसिद्ध मलूक पीठ के पीठाधीश्वर हैं। मलूक पीठ की स्थापना 16वीं-17वीं सदी में संत मलूकदास जी ने की थी, जो वंशीवट (जमुना पुलिन) में गुरु-शिष्य परंपरा के लिए विख्यात रहे। यह पीठ ब्रज क्षेत्र में धर्म, ज्ञान और भक्ति की गहरी जड़ें लिए हुए है।

 

राजेंद्र दास जी महाराज का जन्म चित्रकूट के निकट हुआ। बचपन में ही उन्हें आध्यात्मिक वातावरण मिला और उन्होंने संस्कृत, दर्शन और साहित्य में उच्च शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने मास्टर डिग्री संस्कृत व्याकरण, विशिष्टाद्वैत वेदान्त और साहित्य—इन सभी विषयों में हासिल की। इसके अतिरिक्त वे श्रीमद्भागवत, रामकथा एवं उपनिषदों में उनका ज्ञान बहुत गहराई से है।

मलूक पीठ परंपरा

मलूक पीठ की जड़ें संत मलूकदास जी तक जाती हैं, जिनकी समाधि पीठ में स्थित है। उन दिनों यह स्थान ‘श्री मलूक दास जी अखाड़ा’ के रूप में प्रसिद्ध था, जहां संतों का संघ था—करोड़ों संतों के माध्यम से ठाकुर—भक्ति का प्रसार होता था।

 

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वर्तमान पीठाधीश्वर बनने के बाद, राजेंद्र दास जी महाराज ने परमपरा को समृद्ध रूप से आगे बढ़ाया है, समाज में धार्मिक चेतना फैलाने के साथ-साथ शिक्षा, सेवा और भक्ति को समर्पित कार्य किए हैं।

 

राजेंद्र दास जी महाराज को एक प्रमुख कथा वाचक के रूप में जाना जाता है। उनकी भाषा सरल, स्पष्ट और सजीव होती है, जिससे राम कथा और भागवत कथा में जीवन-मूल्यों और आध्यात्मिक संदेश का भाव श्रोताओं के हृदय तक पहुंचता है। वह निरंतर यह प्रेरणा देते हैं कि भक्ति केवल शब्दों का उच्चारण नहीं, बल्कि हृदय की अवस्था होनी चाहिए।

उनका व्यक्तित्व मिलनसार, शांत, और जीवन को कृपालु दृष्टिकोण से देखने वाला है। भक्त उन्हें 'दरपन की तरह सत्य दिखाने वाला गुरु' मानते हैं।

शिक्षा और सेवा कार्य

मलूक पीठ के अंतर्गत गुरुकुल चलता है, जहां संस्कृत, वेद, शास्त्र और संगीत की शिक्षा दी जाती है। गौशाला का संचालन भी उनके मार्गदर्शन में होता है, जहां गायों की सेवा, संरक्षण और गौ-उत्पादों की व्यवस्था की जाती है। वृंदावन के संगत यहां आकर उनके ये सेवाकार्य देखती है और भक्तों को भी इसमें शामिल किया जाता है।

 

राजेंद्र दास जी महाराज ने ब्रज कामद सुरभि वन एवं शोध संस्थान की भी स्थापना की है, एक विस्तृत प्रयत्न जिसमें हजारों गायें सुरक्षित रखी गई हैं, जिनमें से कई बूढ़ी या कमजोर थीं—उनकी सेवा और उपचार के लिए योजनाएं बनाई गई हैं। भविष्य में गौ-हॉस्पिटल की दिशा में भी कार्य प्रगति पर है।

 

उनकी शिक्षा का मूल संदेश यही है कि वास्तविक जीवन धन, वैभव या सत्ता में नहीं, बल्कि भक्ति, सेवा और परमात्मा के स्मरण में निहित है। वे कहते हैं कि कठिनाइयों और मोह-माया से हटकर अगर मनुष्य ईश्वर का स्मरण करे, तो जीवन स्वयं दिशा पा जाता है।

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