सनातन धर्म-ग्रंथों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि जब भी पृथ्वी पर अधर्म बढ़ा है, तब-तब भगवान विष्णु ने अवतार लेकर उसका विनाश किया है। त्रेता युग में भगवान विष्णु ने श्रीराम के रूप में अवतार लिया, जो ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ कहलाए। श्रीराम का जन्म केवल राक्षसों के नाश के लिए ही नहीं, बल्कि एक श्राप और पिछले जन्म की घटनाओं का परिणाम भी माना जाता है। आइए जानते हैं इस कथा को विस्तार से।
जब भगवान विष्णु को मिला था श्राप
कथा के अनुसार एक समय जब असुरों का आतंक बहुत बढ़ गया था, तब भगवान विष्णु ने हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप जैसे राक्षसों का वध करके पृथ्वी को संकट से मुक्त किया। बाद में जब रावण ने तप करके ब्रह्मा से वरदान प्राप्त कर लिया कि उसे कोई देवता, दानव, गंधर्व या राक्षस नहीं मार सकता, तो वह अजेय बन गया।
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इसी दौरान भगवान विष्णु ने भृगु ऋषि की पत्नी ख्याति का वध किया था, जो एक राक्षसणी थी लेकिन तपस्विनी बन चुकी थी। भृगु ऋषि को जब यह ज्ञात हुआ, तो उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दे दिया कि 'जैसे तुमने मेरी पत्नी की मृत्यु की, वैसे ही तुम्हें भी मनुष्य रूप में जन्म लेकर स्त्री वियोग का दुख सहना होगा।' कहा जाता है कि यह श्राप ही श्रीराम के अवतरण का एक प्रमुख कारण बना।
दूसरा श्राप – तुलसी दानव की कथा
एक और कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने जालंधर नामक असुर का वध करने के लिए उसकी पत्नी तुलसी का छल किया। तुलसी अत्यंत पतिव्रता थीं और उनकी शक्ति से जालंधर अजेय बना हुआ था। श्री हरि ने रूप बदलकर तुलसी का पतिव्रत भंग किया, जिससे जालंधर मारा गया।
जब तुलसी को इस छल का पता चला, तो उसने भी भगवान विष्णु को श्राप दिया कि 'जैसे आपने मेरे साथ छल किया, वैसे ही आपको भी मनुष्य रूप में जन्म लेकर पत्नी वियोग सहना पड़ेगा!' एक मान्यता यह है कि यह श्राप भी भगवान राम के जीवन में सीता जी के वियोग के रूप में सामने आया।
वाल्मीकि रामायण में श्रीराम का अवतरण
वाल्मीकि रामायण के बालकांड में यह बताया गया है कि पृथ्वी देवी, रावण के अत्याचारों से दुखी होकर भगवान ब्रह्मा और अन्य देवताओं के साथ भगवान विष्णु के पास गए और रावण के विनाश के लिए उपाय मांगा। तब भगवान विष्णु ने कहा कि 'मैं स्वयं मनुष्य रूप में पृथ्वी पर जन्म लूंगा और रावण का अंत करूंगा।'
इसके बाद, अयोध्या के राजा दशरथ को पुत्र प्राप्ति का यज्ञ करने को कहा गया। उसी यज्ञ के फलस्वरूप श्रीराम और उनके तीनों भाइयों का जन्म हुआ।
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रामचरितमानस में अवतार की व्याख्या
गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में भगवान राम के अवतार को लीला और भक्तों की कृपा बताया है। तुलसीदास जी के अनुसार भगवान ने भक्तों की रक्षा और अधर्म के नाश के लिए मानव रूप लिया।
चौपाई:
'जब जब होहि धर्म की हानी।
बाढ़हि असुर अधम अभिमानी॥
तब तब धरि प्रभु मनुज शरीरा।
हरहि कृपानिधि सज्जन पीरा॥'
इसका अर्थ है कि जब-जब धर्म की हानि होती है और पाप बढ़ता है, तब-तब भगवान मनुष्य रूप में अवतार लेते हैं।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।