सनातन संस्कृति में रामायण कथा को हजारों सालों से पढ़ और सुना जाता रहा है। इसमें भगवान श्री राम, माता सीता और हनुमान जी की पूर्ण कथा का वर्णन मिलता है। बता दें कि मूल रामायण महर्षि द्वारा लिखी गई थी, जिसे आज हम पढ़ रहे हैं। हालांकि, क्या आप जानते हैं कि सबसे पहली बार यह कथा किसने सुनाई थी? इस पवित्र कथा का प्रारंभिक उल्लेख हिंदू शास्त्रों में मिलता है और इसके पीछे एक दिव्य कथा जुड़ी हुई है।
पहली राम कथा किसने सुनाई?
सनातन धर्म के अनुसार, सबसे पहली राम कथा स्वयं भगवान शिव ने सुनाई थी। इस कथा के श्रोता थे भगवती पार्वती। शिव पुराण, रामचरितमानस और कई अन्य ग्रंथों में यह उल्लेख मिलता है कि एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से पूछा कि वे हमेशा 'राम-राम' क्यों जपते हैं? इस पर भगवान शिव ने माता पार्वती को भगवान श्रीराम की महिमा सुनाई और विस्तार से राम कथा का वर्णन किया। यह पहली बार था जब रामायण की कथा सुनाई।
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भगवान शिव द्वारा पहली राम कथा का वर्णन
पौराणिक कथा के अनुसार, एक दिन माता पार्वती ने भगवान शिव से पूछा, 'हे प्रभु! आप महादेव हैं, स्वयं आदि और अनंत शक्ति के स्वामी हैं, फिर भी आप हर समय 'राम-राम' का जाप क्यों करते हैं? कौन हैं ये राम जिनका आप इतना गुणगान करते हैं?'
इसपर भगवान शिव मुस्कुराए और बोले, 'हे देवी! राम कोई साधारण राजा नहीं, बल्कि स्वयं नारायण के अवतार हैं। वे धर्म, सत्य और करुणा के प्रतीक हैं। राम कथा सुनना और सुनाना जीवन का सबसे बड़ा पुण्य है।'
तब भगवान शिव ने माता पार्वती को बताया कि भगवान विष्णु ने त्रेता युग में अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र के रूप में श्रीराम के रूप में अवतार लिया। उनका जन्म राक्षसों के संहार और धर्म की स्थापना के लिए हुआ था। भगवान शिव ने माता पार्वती को राम के वनवास, सीता हरण, वानर सेना के साथ युद्ध और अंत में रावण के वध की कथा सुनाई। उन्होंने बताया कि श्री राम का जीवन आदर्श, त्याग और कर्तव्य का सबसे बड़ा उदाहरण है। भगवान शिव की इस कथा को आगे चलकर हनुमानजी ने सुना। हनुमानजी ने बाद में यह कथा महर्षि वाल्मीकि को सुनाई, जिन्होंने इसे रामायण के रूप में लिखा।
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राम कथा से जुड़ी कुछ खास बातें
भगवान शिव को श्रीराम के प्रति अनन्य भक्ति थी। जब रामेश्वरम में श्रीराम ने शिवलिंग स्थापित किया, तो भगवान शिव ने स्वयं उस लिंग को 'रामेश्वर' नाम दिया और कहा कि जो राम की भक्ति करेगा, वही असली शिवभक्त होगा। जब भगवान शिव माता पार्वती को राम कथा सुना रहे थे, तो हनुमानजी अदृश्य रूप में वहां मौजूद थे। वे यह कथा सुनकर श्रीराम के अनन्य भक्त बन गए।
भगवान शिव द्वारा पहली बार सुनाई गई राम कथा को बाद में महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत में 'रामायण' के रूप में लिखा, और फिर गोस्वामी तुलसीदास ने अवधी भाषा में 'रामचरितमानस' के रूप में संकलित किया। शास्त्रों के अनुसार, जो भी व्यक्ति राम कथा को सुनता या सुनाता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस कथा में धर्म, सत्य, प्रेम और भक्ति के गहरे संदेश छिपे हैं। इसके साथ भगवान शिव एक बार काशी (वाराणसी) में रामलीला देखने पहुंचे थे। उन्होंने एक वृद्ध व्यक्ति का रूप धारण किया और पूरी रामलीला देखी। जब भगवान राम ने समुद्र पर सेतु बनाया, तो भगवान शिव इतने भाव-विभोर हो गए कि उन्होंने 'जय श्रीराम' का उद्घोष किया।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।