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महादेव और मर्यादा पुरुषोत्तम: भक्ति और कर्म का दिव्य संगम

कई धर्म ग्रंथों में भगवान शिव और श्री राम के संबंध को विस्तार से बताया गया है। आइए विस्तार से जानते हैं।

AI Image of Bhagwan Shiv and Shri Ram

भगवान शिव और भगवान राम में है अनोखा संबंध।(Photo Credit: AI Image)

सनातन संस्कृति में भगवान शिव और श्रीराम दो ऐसे दिव्य चरित्र हैं जो भक्ति, तप, धर्म, मोक्ष और कर्म के आदर्श माने जाते हैं। दोनों देवताओं की उपासना को बहुत ही फलदाई माना जाता है। हिंदू धर्म में भगवान शिव को ‘महादेव’ कहा गया है, यानी जो सभी देवों के देव हैं, और भगवान श्री राम को ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ के रूप में पूजा जाता है, जो धर्म, कर्तव्य और आदर्श जीवन के प्रतीक माने जाते हैं। आइए आचार्य श्याम चंद्र मिश्र से जानते हैं कि महादेव और श्री राम किस तरह एक दूसरे के प्रति आदर रखते हैं।

रामचरितमानस में भगवान शिव की श्रीराम पर भक्ति

आचार्य मिश्र बताते हैं कि तुलसीदास जी की रामचरितमानस में भगवान शिव को श्री राम के परम भक्त और श्री राम को महादेव के परम उपासक के रूप में वर्णित किया गया है। वे बार-बार श्रीराम के गुणों का वर्णन करते हैं और उन्हें ईश्वर का अवतार मानते हैं। शिव जी ने माता पार्वती को श्रीराम की महिमा बताते हुए कहा:

 

'सत्य कहउँ तोहि पार्वती, संभु न मोहिं राम सम प्रीति।

गावत नाम राम को, हरै विपत्ति अघ कीती॥'

 

अर्थ: “हे पार्वती! मैं तुम्हें सत्य कहता हूँ, मुझे राम से जैसा प्रेम है, वैसा किसी और से नहीं। उनका नाम लेने मात्र से पाप और संकट दूर हो जाते हैं।”

 

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आगे आचार्य मिश्र बताते हैं कि वाल्मीकि रामायण में भी श्रीराम का भगवान शिव के प्रति गहरा आदर और श्रद्धा दिखाई देता  है। जब राम लंका विजय के लिए समुद्र पार करने निकलते हैं, तो वे रामेश्वरम में भगवान शिव की पूजा करते हैं। श्री राम शिवलिंग स्थापित कर प्रार्थना करते हैं:

 

'शिवोऽहम् शरणं यातः त्वं माम् रक्ष भवोद्भव।'
(वाल्मीकि रामायण, युद्धकांड)

 

अर्थात: 'हे शिव! मैं आपकी शरण में आया हूँ। आप मेरी रक्षा करें।'

 

रामायण कथा में इस बात का भी वर्णन मिलता है कि श्री राम ने समुद्र पर सेतु बनाने से पहले भी भगवान शिव की पूजा की थी और लंका विजय के बाद फिर एक बार रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना कर उसे पूजनीय बनाया। यह आज भी रामेश्वरम धाम के रूप में प्रसिद्ध है, जो चार धामों में से एक है।

 

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एक अलौकिक संबंध

भगवान शिव और श्रीराम का संबंध परस्पर भक्ति और आदर का दुर्लभ उदाहरण है। श्री राम देवधिदेव शिव के प्रति समर्पित हैं, वहीं भगवान शिव श्री राम को ईश्वर मानकर उनकी कथा सुनते हैं, उनके नाम का जप करते हैं। रामचरितमानस में एक और महत्वपूर्ण प्रसंग है जहाँ शिव जी श्रीराम को 'सच्चिदानंद' कहते हैं:

 

'राम भगत शिव, शिव भगत राम। एक अनन्य प्रेमधाम॥'

 

इसका अर्थ है कि राम और शिव एक-दूसरे के भक्त हैं। दोनों के बीच कोई भेद नहीं है। यह परस्पर भक्ति उन्हें जोड़ती है। दार्शनिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो राम कर्म और मर्यादा के प्रतीक हैं, जबकि शिव वैराग्य और ध्यान के आदर्श। राम सामाजिक और पारिवारिक जीवन के मार्गदर्शक हैं, तो शिव आत्म-ज्ञान और तप के शिक्षक हैं। दोनों मिलकर संपूर्ण जीवन का मार्गदर्शन करते हैं- एक बाहरी जीवन के लिए, दूसरा आंतरिक।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।

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