logo

ट्रेंडिंग:

हर साल गुंडीचा मंदिर क्यों जाते हैं भगवान जगन्नाथ? सब जानें

पुरी में आयोजित होने वाली रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ गुंडीचा मंदिर तक जाते हैं। जानिए क्या है इस परंपरा के पीछे की कहानी।

Image of Jagannath Rath Yatra

रथ यात्रा में गुंडिचा मंदिर तक जाते हैं भगवान जगन्नाथ।(Photo Credit: PTI File Photo)

ओडिशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर की चमक आषाढ़ महीने में कुछ और ही रहती है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस दौरान भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और देवी सुभद्रा तीन विशाल रथों पर विराजमान होकर अपने मौसी के घर गुंडीचा मंदिर जाते हैं। यह यात्रा न केवल पुरी में बल्कि देश के विभिन्न हिस्सों में आयोजित की जाती है। हालांकि, पुरी में जगन्नाथ मंदिर से कुछ दूरी पर स्थित गुंडीचा मंदिर का भी अपना खास स्थान है।

 

रथ यात्रा के दिन भगवान जगन्नाथ अपने भाई और बहन के श्रीमंदिर लगभग 3 किलोमीटर की लंबी यात्रा कर गुंडीचा मंदिर तक जाते हैं। लंबी यात्रा इसलिए क्योंकि, 3 किमी आमतौर बहुत कम दूरी होती है, पर इस भव्य रथ यात्रा में लाखों की संख्या में भक्त एकत्रित होते हैं। इस वजह से तीनों रथों को श्री मंदिर से गुंडीचा मंदिर तक पहुंचने में 1 से 2 दिन का समय लगता है।

 

अब सवाल उठता है कि भगवान जगन्नाथ को अपने ही मंदिर से निकालकर गुंडीचा मंदिर क्यों ले जाया जाता है? इसके पीछे गहरी पौराणिक और ऐतिहासिक परंपराएं जुड़ी हुई हैं।

 

यह भी पढ़ें: दर्पदलन: देवी सुभद्रा के रथ के बारे में जानें, जिनके सारथी अर्जुन हैं

गुंडीचा मंदिर का इतिहास

गुंडीचा मंदिर भगवान जगन्नाथ के मुख्य मंदिर से उत्तर दिशा में स्थित है और इसे भगवान जगन्नाथ की मौसी (मां की बहन) का घर माना जाता है। ‘गुंडीचा’ वास्तव में एक रानी का नाम था, जो राजा इन्द्रद्युम्न की पत्नी थीं। राजा इन्द्रद्युम्न को भगवान विष्णु के दर्शन की तीव्र इच्छा थी। तब उन्होंने समुद्र तट पर एक मंदिर बनवाया और वहां भगवान विष्णु की मूर्ति की स्थापना की, जो बाद में जगन्नाथ रूप में पूजित हुई। माना जाता है कि गुंडीचा रानी ने इस मंदिर को बनवाने में विशेष भूमिका निभाई और भगवान को एक बार यहां आमंत्रित भी किया। तभी से यह परंपरा चली कि हर वर्ष भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी के घर सात दिनों के लिए जाते हैं।

 

गुंडीचा मंदिर का वास्तु बहुत ही साधारण और शांतिपूर्ण है। यह बागों और हरियाली के बीच स्थित है और इसका वातावरण आध्यात्मिक ध्यान और शांति के लिए अत्यंत उपयुक्त है। भगवान जब यहां आते हैं, तो उन्हें विशेष प्रकार का भोग — जैसे पोडा पीठा (चावल और गुड़ से बना भोजन) अर्पित किया जाता है, जो भगवान की बहुत प्रिय मानी जाती है।

रथ यात्रा और इससे जुड़ी पौराणिक कथा

एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण जब द्वारका में थे, तब उनकी बहन सुभद्रा अपने भाइयों (कृष्ण और बलराम) के साथ कुरुक्षेत्र घूमने की इच्छा व्यक्त करती हैं। तीनों भाई-बहन रथ पर सवार होकर कुरुक्षेत्र जाते हैं। यही घटना बाद में प्रतीकात्मक रूप में उड़ीसा के पुरी में रथ यात्रा के रूप में मनाई जाने लगी। इसमें भगवान जगन्नाथ (कृष्ण), बलभद्र (बलराम) और सुभद्रा एक-एक विशाल रथ में बैठते हैं और भक्त उन्हें खींचकर गुंडीचा मंदिर तक ले जाते हैं।

 

यह भी पढ़ें: नंदिघोष: भगवान जगन्नाथ का भव्य रथ, निर्माण से मान्यताओं तक सब जानें

 

एक अन्य मान्यता के अनुसार, भगवान जगन्नाथ श्रीमंदिर में वर्ष भर अपने भक्तों को दर्शन देते हैं लेकिन एक बार वे स्वयं अपने प्रिय भक्तों के बीच जाकर रहने का संकल्प लेते हैं। इसलिए वे अपने रथ पर सवार होकर मौसी के घर सात दिनों के लिए जाते हैं और वहां विश्राम करते हैं। यह यात्रा ईश्वर के अपने भक्तों के प्रति प्रेम का प्रतीक है।

गुंडीचा मंदिर में सात दिन का प्रवास

भगवान जगन्नाथ गुंडीचा मंदिर में सात दिनों तक विश्राम करते हैं। इस दौरान वहां विशेष पूजा-अर्चना होती है और हजारों भक्त वहां दर्शन के लिए पहुंचते हैं। सातवें दिन बहुड़ा यात्रा होती है, जिसमें तीनों भाई बहन फिर अपने रथों में सवार होकर श्रीमंदिर लौटते हैं।

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

और पढ़ें

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap