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पुत्रदा एकादशी: इस दिन रखा जाएगा श्रावण महीने का अंतिम एकादशी व्रत

हिंदू धर्म में श्रावण पुत्रदा एकादशी को अत्यंत पुण्यदायी और महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है। आइए जानते है इस व्रत की तिथि और इसके महत्व।

Representational Picture of bhagwan Vishnu

भगवान विष्णु की प्रतीकात्मक तस्वीर| Photo Credit: AI

हिंदू धर्म में भगवान विष्णु की पूजा सृष्टि के पालन हार के रूप में की जाती है। भगवान विष्णु की विशेष पूजा करने के लिए के एकादशी व्रत रखा जाता है। एकादशी व्रत हर माह में दो बार आता है। एकादशी व्रत की तिथि एक कृष्ण पक्ष में और दूसरी शुक्ल पक्ष में आती है। श्रावण पुत्रदा एकादशी को हिंदू धर्म में एक अत्यंत पुण्यदायी और महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है। यह व्रत साल में सिर्फ दो बार ही आता है। एक श्रावण माह के शुक्ल पक्ष में और दूसरा पौष माह में आता है।

 

श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत विशेष रूप से संतान प्राप्ति की कामना के लिए रखा जाता है, इसलिए इसे 'पुत्रदा' (पुत्र देने वाली) एकादशी भी कहा जाता है। यह व्रत श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आता है। पौष माह की अपेक्षा श्रावण मास में पड़ने वाली पुत्रदा एकादशी का महत्व और भी अधिक माना गया है।

 

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श्रावण पुत्रदा एकादशी 2025 तिथि

वैदिक पंचांग के अनुसार, श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 4 अगस्त, 2025 को सुबह 11:45 से शुरू हो होगी और इस तिथि का समापन 5 अगस्त 2025 को दोपहर 1:1O मिनट पर होगा। ऐसे में श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत 5 अगस्त 2025 के दिन रखा जाएगा। इस व्रत का पारण 6 अगस्त 2025 को सुबह 5:50 से लेकर सुबह 8:26 तक किया जाएगा।  

 

पुराणों के अनुसार, इस एकादशी का व्रत करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। श्री विष्णु भगवान की कृपा से जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं। श्रावण मास की एकादशी, सावन महीने में पड़ने के कारण विशेष महत्व रखती है, क्योंकि सावन स्वयं शिव और विष्णु दोनों की आराधना का मास है। 

 

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पुत्रदा एकादशी की पैराणिक कथा

एक पुरानी कथा के अनुसार भद्रावती नगरी में महिजित नामक एक राजा था। वह धर्मशील और प्रजा का ख्याल रखने वाला था लेकिन उस राजा को संतान नहीं थी। दुखी होकर वह ऋषि लोमेश के पास गया। ऋषि ने ध्यान करके बताया कि पूर्व जन्म में राजा ने एक बार प्यास से व्याकुल गाय को पानी न देकर पाप किया था, इसलिए इस जन्म में उन्हें संतान सुख नहीं मिल रहा। ऋषि ने उपाय बताते हुए श्रावण मास की पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने को कहा। राजा ने पूरे नियम से व्रत का पालन किया और बाद में उन्हें संतान का सुख प्राप्त हुआ। तब से यह व्रत पुत्र प्राप्ति के लिए श्रेष्ठ माना गया।

व्रत की विशेषता

श्रावण पुत्रदा एकादशी का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह श्रावण मास में आती है, जो स्वयं भगवान शिव और विष्णु दोनों की कृपा का महीना माना जाता है। इस दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति को पूरी निष्ठा से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। व्रत रखने वाले को एक दिन पहले यानी दशमी से ही संयम बरतना चाहिए और एकादशी के दिन उपवास कर, भगवान विष्णु के 'नारायण' रूप की पूजा करनी चाहिए। पूजा में तुलसी दल, पंचामृत, दीपक, फल, फूल, और पीली मिठाई का विशेष महत्व है। साथ ही कथा सुनने और भगवान के नामों का स्मरण करने से पुण्य कई गुना बढ़ता है।

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