महाकाल की शाही सवारी से रथ यात्रा तक, जानें शोभायात्रा के सभी रूप
धर्म-कर्म
• UJJAIN 29 Jun 2025, (अपडेटेड 29 Jun 2025, 4:23 PM IST)
भगवान महाकाल की शाही सवारी और रथ यात्रा भारतीय प्राचीन परंपरा से जुड़ी हुई हैं। जानिए क्या हैं शोभायात्रा से जुड़ी जरूरी बातें।

भगवान महाकाल की शाही सवारी।(Photo Credit: AI Image)
भारत की संस्कृति विविधताओं से भरी हुई है और उसकी धार्मिक परंपराएं इस विविधता को जीवंत बनाती हैं। ऐसी ही एक परंपरा है ‘शोभायात्रा’ की, जिसमें देवता, संत या धार्मिक प्रतीकों को नगर में घूमाया जाता है। यह केवल एक धार्मिक चल समारोह नहीं होता, बल्कि समाज, परंपरा, कला और भक्ति का अद्भुत संगम होता है।
मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित भगवान महाकाल का मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं, जहां भगवान शिव के महाकाल रूप की उपासना की जाती है। इसी के साथ सावन के पवित्र महीने में भगवान महाकाल की खास शाही सवारी निकाली और इस दौरान भगवान नगर भ्रमण करते हैं।
उज्जैन महाकाल की शाही सवारी का इतिहास
श्रावण मास के हर सोमवार को महाकालेश्वर मंदिर से निकाली जाने वाली ‘शाही सवारी’ एक भव्य आयोजन होती है। मान्यता है कि इस दिन स्वयं भगवान महाकाल नगर भ्रमण पर निकलते हैं ताकि वे अपने भक्तों को दर्शन दें और नगर का कल्याण करें।
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इस परंपरा की शुरुआत कई सौ वर्ष पहले हुई थी। कुछ विद्वानों के अनुसार यह परंपरा मराठा शासन के दौरान प्रारंभ हुई, जब उज्जैन में पेशवा और शिंदे वंश का प्रभाव था। शाही अंदाज में पालकी, घोड़े, हाथी, बैंड-बाजे और अखाड़ों के साथ भगवान महाकाल की सवारी निकाली जाती थी, जिससे यह एक राजसी धार्मिक आयोजन बन गया।
इस शोभायात्रा में भगवान महाकाल को विशेष रूप से निर्मित चांदी की पालकी में विराजमान किया जाता है, जिसे ‘मनमहेश स्वरूप’ कहा जाता है। साथ ही अन्य देवताओं की भी प्रतीकात्मक झांकियां होती हैं। यह यात्रा नगर के प्रमुख मार्गों से होते हुए लौटती है और पूरा वातावरण “जय महाकाल” के नारों से गूंज उठता है।
शोभायात्रा का सनातन परंपरा में महत्व
शोभायात्रा केवल उज्जैन तक सीमित नहीं है। भारतीय सनातन संस्कृति में यह एक स्थापित धार्मिक अनुष्ठान है, जिसकी जड़ें वैदिक युग तक जाती हैं। वेदों और पुराणों में ‘यात्रा’, ‘नगर प्रदक्षिणा’ और ‘देव भ्रमण’ जैसे अनुष्ठानों का वर्णन मिलता है।
शोभायात्रा का मूल उद्देश्य ईश्वर की भक्ति को समाज में फैलाना, धार्मिक जागरूकता बढ़ाना व ईश्वरीय ऊर्जा को नगर-ग्राम में प्रसारित करना होता है। यह सामाजिक एकता और उत्सवधर्मिता का प्रतीक भी होता है, जिसमें सभी जाति, वर्ग और आयु के लोग एक साथ मिलकर भाग लेते हैं।
शोभायात्रा के प्रकार
शोभायात्रा कई प्रकार की हो सकती है, जो समय, स्थान और परंपरा के अनुसार बदलती रहती है, जैसे:
- देव शोभायात्रा – इसमें भगवान की मूर्ति या प्रतिमा को रथ या पालकी में नगर में भ्रमण करवाना। जैसे महाकाल की शाही सवारी, रामनवमी की श्री राम शोभायात्रा आदि।
- शक्ति शोभायात्रा – नवरात्रि या दुर्गा पूजा के दौरान देवी की झांकी को लेकर नगर भ्रमण करना इसमें शामिल है, जैसे बंगाल में दुर्गा विसर्जन यात्रा।
- संत शोभायात्रा – इसमें किसी संत या महापुरुष की जयंती या पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि स्वरूप यात्रा किया जाता है, जैसे संत रविदास या संत ज्ञानेश्वर की शोभायात्रा।
- ध्वज यात्रा / अखाड़ा यात्रा – जिसमें साधु-संत, अखाड़ा मंडली और धार्मिक झंडे के साथ चलते हैं। हरिद्वार या प्रयागराज में कुंभ मेले की शुरुआत इसी से होती है।
- रथ यात्रा – यह विशेष रूप से भगवान जगन्नाथ की यात्रा के रूप में प्रसिद्ध है लेकिन भारत के कई हिस्सों में अन्य देवताओं की भी रथ यात्राएं होती हैं।
- धार्मिक यात्रा / कथा यात्रा – किसी धार्मिक कथा या प्रसंग को जीवंत रूप से प्रस्तुत करते हुए नगर भ्रमण, जैसे झांकियों में रामलीला या कृष्णलीला।
भारत की कुछ प्रसिद्ध शोभायात्राएं
भारत में सैकड़ों शोभायात्राएं हर साल होती हैं लेकिन कुछ विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं, जिनमें:
जगन्नाथ रथ यात्रा (पुरी, उड़ीसा)
भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की विशाल रथ यात्रा हर साल लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है। यह दुनिया की सबसे भव्य शोभायात्राओं में से एक है।
पंढरपुर वारी (महाराष्ट्र)
विठोबा (भगवान विष्णु का अवतार) की यात्रा जिसमें लाखों भक्त पैदल चलते हुए भक्ति गीतों के साथ पंढरपुर पहुंचते हैं। यह श्रद्धा, अनुशासन और समर्पण का प्रतीक है।
रामनवमी शोभायात्रा (अयोध्या व अन्य शहरों में)
राम जन्मोत्सव पर श्रीराम की झांकी, रथ और भक्ति संगीत के साथ नगर में यात्रा निकाली जाती है।
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कुंभ मेला की नागा शोभायात्रा
यह विशेष यात्रा नागा साधुओं द्वारा की जाती है। कुंभ स्नान से पूर्व यह शोभायात्रा जुलूस के रूप में निकलती है और हजारों लोग इसका हिस्सा बनते हैं।
साईं पालकी यात्रा (शिर्डी)
साईं बाबा की पालकी यात्रा गुरुवार को निकलती है और उनकी समाधि स्थल तक ले जाई जाती है। यह हजारों श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र होती है।
शोभायात्रा का सामाजिक और आध्यात्मिक संदेश
शोभायात्रा न केवल धार्मिक होती है, बल्कि यह सामाजिक समरसता और लोक कला की भी झलक होती है। इसमें भजन मंडलियां, ढोल-नगाड़े, लोक नृत्य, सांस्कृतिक प्रस्तुतियां और धार्मिक संदेश शामिल होते हैं। इससे समाज में एकता, आस्था और उत्साह का संचार होता है। शोभायात्रा एक प्रकार की चलती-फिरती तीर्थ यात्रा बन जाती है, जहां श्रद्धालु अपने घर के सामने ही ईश्वर के दर्शन पाते हैं। यह उन लोगों के लिए भी अवसर होता है जो मंदिर नहीं जा पाते।
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