धर्म-ग्रंथों में शनि देव को न्याय का देवता कहा गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि मान्यता है कि शनि देव व्यक्ति को उनके कर्म के आधार पर फल देते हैं। जो अच्छे कर्म करता है, उन्हें जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। वहीं उनकी दृष्टि से देवता भी भयभीत रहते हैं, क्योंकि जिस पर भी उनकी टेढ़ी दृष्टि पड़ती है, वह कठिनाइयों से घिर जाता है। क्या आप जानते हैं कि शनि देव को यह शक्ति भगवान शिव से प्राप्त हुई थी? आइए जानते हैं, कैसे शनि देव बने न्याय के देवता?
शनि देव की कठोर तपस्या
पौराणिक कथा के अनुसार, शनि देव अपने पिता सूर्य देव से अपमानित होकर अत्यंत दुखी हो गए। सूर्य देव को शनि देव के स्वभाव और गहरे रंग के कारण पसंद नहीं थे। इससे आहत होकर शनि देव ने भगवान शिव की घोर तपस्या करने का निर्णय लिया। वे एकांत में कठोर साधना की।
शनि देव ने वर्षों तक बिना अन्न-जल ग्रहण किए कठिन तपस्या की। उनकी तपस्या इतनी कठिन थी कि देवता भी चकित हो गए। शनि देव की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने प्रकट होकर उनसे वरदान मांगने के लिए कहा।
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शनि देव ने बड़ी विनम्रता से कहा, 'प्रभु! मैं चाहता हूं कि मुझे इतनी शक्ति प्राप्त हो कि मैं प्राणियों को उनके कर्मों के अनुसार फल देने में सक्षम हो सकूं। किसी को भी अन्याय न मिले और सभी को उनके कर्मों का उचित परिणाम प्राप्त हो।'
भगवान शिव ने शनि देव की भक्ति और उनके न्यायप्रिय स्वभाव को देखते हुए उन्हें वरदान दिया, 'तथास्तु! आज से तुम न्याय के देवता कहलाओगे। तुम्हारी दृष्टि अत्यंत शक्तिशाली होगी और जो भी व्यक्ति अधर्म या पाप करेगा, उसे तुम्हारी दशा से गुजरना होगा। साथ ही, तुम्हारी साढ़ेसाती और ढैय्या लोगों के जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव लाने वाली होगी।'
शनि देव का दायित्व
इस प्रकार भगवान शिव के आशीर्वाद से शनि देव नवग्रहों में एक महत्वपूर्ण ग्रह बन गए। वे मनुष्यों को उनके कर्मों के अनुसार दंड और पुरस्कार देने लगे। इस कारण से लोग शनि देव की पूजा और उपाय करने लगे ताकि उनकी कृपा हमेशा बनी रहे। धर्म-शास्त्रों में कई ऐसी कथाएं हैं, जिनका सीधा संबंध शनि देव की दशा, महादशा और साढ़ेसाती से जुड़ता है। इनमें रामायण-महाभारत जैसे पौराणिक धर्म-ग्रंथ भी शामिल है।
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