हिंदू धर्म में शनि देव को न्याय देवता के रूप में पूजा जाता है। शनि देव की उपासना करने से व्यक्ति को सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। बता दें कि ज्योतिष शास्त्र में भी शनि ग्रह के महत्व को विस्तार से बताया गया है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति शनि देव की विधिवत उपासना करता है, उसे जीवन में सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। हिंदू धर्म ग्रंथों में शनि देव को समर्पित कुछ विशेष मंत्रों का उल्लेख किया गया है, जिनका जाप शनिवार के दिन करने से लाभ प्राप्त होता है।
ॐ शं शनैश्चराय नमः
अर्थ: इस मंत्र में 'शं' बीज मंत्र है, जो शनि देव की ऊर्जा को आकर्षित करता है। 'शनैश्चराय' का अर्थ शनिदेव से है और 'नमः' का अर्थ प्रणाम या समर्पण करना है। इस मंत्र का जाप करने से शनि की कृपा प्राप्त होती है, जीवन में आने वाले कष्ट कम होते हैं और कार्यों में सफलता मिलती है। इसे हर शनिवार 108 बार जपने से विशेष लाभ होता है।
नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छायामार्तण्डसंभूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥
अर्थ: इस मंत्र में शनि देव के स्वरूप का वर्णन किया गया है। वे नीलमणि के समान चमकने वाले हैं, सूर्य के पुत्र और यमराज के बड़े भाई हैं। उनकी माता छाया देवी हैं और वे धीरे-धीरे चलने वाले ग्रह हैं। इस मंत्र के जाप से जीवन में आने वाले संकट कम होते हैं, शनि की साढ़े साती और ढैय्या का प्रभाव हल्का पड़ता है और व्यक्ति को कष्टों से मुक्ति मिलती है।
ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः
अर्थ: यह बीज मंत्र शनि देव की विशेष कृपा पाने के लिए जपा जाता है। इसमें 'प्रां, प्रीं, प्रौं' शनि ग्रह से संबंधित ध्वनियां हैं, जो उनकी ऊर्जा को जाग्रत करती हैं। 'सः शनैश्चराय नमः' का अर्थ शनि देव को नमन करना और उनकी कृपा प्राप्त करना है। इस मंत्र का नियमित जाप करने से जीवन में सकारात्मकता आती है, बुरी शक्तियां दूर होती हैं और मानसिक शांति प्राप्त होती है।
ॐ शनिदेवाय नमः
अर्थ: यह छोटा और सरल मंत्र शनि देव को समर्पित है। इसमें 'शनिदेवाय' शब्द शनि देव को संबोधित करता है और 'नमः' उनके प्रति समर्पण को दर्शाता है। मान्यता है इस मंत्र को रोज 108 बार जपने से शनि देव का आशीर्वाद मिलता है, बाधाएं दूर होती हैं और जीवन में स्थिरता आती है। विशेष रूप से वे लोग जो शनि की साढ़े साती या ढैय्या के प्रभाव में होते हैं, उन्हें इस मंत्र का जाप करना चाहिए।
ॐ शन्नो देवी रभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।
शं योरभि स्रवन्तु नः॥
अर्थ: इस वैदिक मंत्र में जल तत्व और शनि देव की कृपा की प्रार्थना की गई है। इसमें कहा गया है कि शनि देव हमारी रक्षा करें, हमें शुभ फल दें और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करें। इस मंत्र के जाप से नकारात्मकता दूर होती है, दुर्भाग्य कम होता है और व्यक्ति के जीवन में शुभ अवसरों की वृद्धि होती है।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।