ज्योतिष विज्ञान में शनि देव को न्याय के देवता की उपाधि दी गई है, जो जातक को कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं। कहा जाता है कि शनि देव जिस व्यक्ति से प्रसन्न होते हैं, उन्हें जीवन में सभी प्रकार की सफलताएं प्राप्त होती हैं। वहीं शनि कि क्रूर दृष्टि की वजह से जीवन में कई प्रकार की समस्याएं आती हैं।
शनि देव का राशि परिवर्तन अन्य ग्रहों की तुलना में अधिक समय लेता है क्योंकि वे एक राशि से दूसरी राशि में जाने के लिए लगभग ढाई साल का समय लेते हैं। इसका कारण उनकी धीमी चाल है। शनि देव की इस धीमी गति और उनकी गंभीरता को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है।
शनिदेव की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया के पुत्र शनि देव हैं। जब शनि देव का जन्म हुआ, तो उनकी काली छाया और गंभीर स्वभाव देखकर सूर्य देव ने उन्हें स्वीकार नहीं किया। इससे शनि देव को गहरा आघात पहुंचा, और उन्होंने कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से महादेव को प्रसन्न हुए। महादेव ने उन्हें न्याय का देवता बनने का वरदान दिया और सभी ग्रहों में विशेष स्थान प्रदान किया।
शनि देव को यह दायित्व दिया गया कि वे सभी प्राणियों के कर्मों का हिसाब रखें और उन्हें उनके कर्मों के अनुसार फल दें। लेकिन शनि देव के स्वभाव में गंभीरता और धीमापन था, जो उनकी तपस्या का प्रभाव था। उनके धीमे स्वभाव के कारण, वे प्रत्येक राशि में ज्यादा समय लेते हैं ताकि उस अवधि में व्यक्ति को अपने कर्मों का सही फल मिल सके।
एक अन्य कथा के अनुसार, शनि देव ने अपनी तपस्या के दौरान महादेव से यह वरदान मांगा था कि वे न्याय देने में जल्दबाजी न करें और किसी को बिना उचित समय दिए सजा या पुरस्कार न दें। इसलिए शनि देव हर राशि में लगभग ढाई साल रुकते हैं और व्यक्ति के कर्मों का पूरा लेखा-जोखा लेने के बाद ही उसे फल प्रदान करते हैं।
शनि की धीमी चाल का महत्व
ज्योतिष शास्त्र में शनि देव की धीमी चाल के पीछे यह अर्थ दिया गया है कि वह कर्मों का गहन विश्लेषण करते हैं और उसी के अनुसार फल प्रदान करते हैं। उनकी दृष्टि जिस राशि या व्यक्ति पर पड़ती है, वह अपने जीवन में संघर्ष, सबक और स्थायित्व सभी चीजों का अनुभव करता है।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारियां सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।