भारत में शनि देव के कई प्रसिद्ध मंदिर स्थित हैं, जिनका ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व बहुत अधिक है। इन्हीं में से एक मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले के पास मोरेना मार्ग पर स्थित शनिचरा मंदिर भारत का एक प्राचीन और अत्यंत पूजनीय स्थल है। यह मंदिर शनिदेव की उपस्थिति और उनके शांत रूप से जुड़ा हुआ माना जाता है। यह स्थान न केवल श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है, बल्कि इसकी पौराणिक कथा और ऐतिहासिक मान्यताएं भी इस स्थान को भक्तों के बीच लोकप्रिय बनाती है।
शनिचरा मंदिर की पौराणिक कथा और मान्यता
इस मंदिर से हनुमान जी और शनि देव से जुड़ी पौराणिक कथा बहुत लोकप्रिय है। कथा के अनुसार, हनुमान जी ने शनिदेव को बंदीगृह से मुक्त किया था। रामायण काल में लंका के राजा रावण ने अपनी ज्योतिष विद्या से सभी नवग्रहों को बंदी बना लिया था, जिससे वे उसकी विजय में बाधा न डाल सकें। हनुमान जी जब लंका जलाकर लौटे, तब उन्होंने शनिदेव को मुक्त किया था। शनिदेव ने आभार स्वरूप वचन दिया कि वे उस स्थान पर वास करेंगे जहां से उन्हें हनुमान जी ने पूर्ण रूप से स्वतंत्र किया था। ऐसा माना जाता है कि यही स्थान ग्वालियर के पास स्थित शनिचरा मंदिर है।
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इसके अलावा एक और मान्यता है कि सूर्य देव की पत्नी संज्ञा जब उनका तेज सहन नहीं पाई, तब उन्होंने अपने छाया रूप का निर्माण किया। उन्हीं से शनि देव का जन्म हुआ था। हालांकि, सूर्यपुत्र होने के बावजूद बचपन में उपेक्षा का सामना करना पड़ा, जिससे वह क्रोधित रहते थे। कहा यह जाता है कि इस मंदिर में उन्होंने तपस्या की। इसलिए इस मंदिर में उनके तपस्वी और शांत रूप की उपस्थिति है।
शनिचरा मंदिर का इतिहास
शनिचरा मंदिर का निर्माण लगभग 800 वर्ष पूर्व हुआ माना जाता है। इसे एक चमत्कारी स्थान के रूप में देखा जाता है, क्योंकि यहां पर शनिदेव की मूर्ति स्वयंभू (स्वतः प्रकट हुई) मानी जाती है।
इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां शनिदेव की मूर्ति लोहे की नहीं बल्कि काले पत्थर की बनी हुई है। शनिदेव को आमतौर पर लोहा प्रिय होता है लेकिन यहां उनकी पूजा विशेष पत्थर की मूर्ति के रूप में की जाती है।
मंदिर के आसपास के क्षेत्र में वर्षों से मेले और शनिवार को विशेष पूजा आयोजित होती रही है, जो इसे धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से जीवंत बनाए हुए है।
शनिचरा मंदिर में पूजा का महत्व और लाभ
सनातन धर्म में शनिदेव को न्याय का देवता माना जाता है, जो कर्मों के अनुसार फल देते हैं। मान्यता है कि यदि कोई व्यक्ति शनिचरा मंदिर में सच्चे मन से पूजा करता है, तो उसे शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या या अन्य दोषों से मुक्ति मिलती है।
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शनि जयंती या शनिवार के दिन यहां भक्तों की बड़ी भीड़ होती है। श्रद्धालु तिल का तेल, काले वस्त्र, उड़द की दाल, काले तिल, सरसों का तेल, और लोहे के सामान अर्पित करते हैं। कहा जाता है कि यह पूजा न केवल शनि दोष से राहत देती है, बल्कि जीवन में सुख, समृद्धि और मानसिक शांति भी प्रदान करती है।
मान्यता यह भी है कि यहां शनि चालीसा और शनि स्तोत्र का पाठ करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। कई श्रद्धालु यहाँ आकर तेल चढ़ाते हैं और मनोकामना पूरी होने पर पुनः दर्शन करने की प्रतिज्ञा करते हैं। इसके साथ यहां स्थित एक प्राचीन कुंड भी है, जिसके बारे में मान्यता है कि उसमें स्नान करने से पाप और ग्रह दोष दूर होते हैं।
Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं।