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बिना तुलसी के नहीं मिलता एकादशी पूजा का फल, इस कथा से जानें कारण

एकादशी व्रत के दिन भगवान विष्णु की विधिवत उपासना की जाती है। साथ ही इस दिन तुलसी पूजा का भी विशेष महत्व, जानें इससे जुड़ी मान्यताएं।

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भगवान विष्णु।(Photo Credit: AI Image)

हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। हर महीने में दो बार पड़ने वाली एकादशी तिथि को भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना और व्रत रखने का विधान है। बता दें कि माघ महीने में पहला एकादशी व्रत षटतिला एकादशी के रूप में रखा जाएगा।

 

वैदिक पंचांग के अनुसार, षटतिला एकादशी व्रत 25 जनवरी 2025, शनिवार के दिन रखा जाएगा। इस विशेष दिन पर भक्त भगवान विष्णु की उपासना के साथ-साथ तुलसी के पौधे की भी पूजा करते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से व्यक्ति की सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती है। आइए जानते हैं, क्या है एकादशी के दिन तुलसी पूजा का महत्व और पौराणिक कथा।

तुलसी पूजा का महत्व

हिंदू धर्म में तुलसी को देवी की उपाधि प्राप्त है और इन्हें बहुत ही पवित्र माना गया है। ऐसी मान्यता है कि तुलसी माता भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय हैं। एकादशी के दिन तुलसी पूजा करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। एक मान्यता यह भी है कि इस विशेष दिन पर तुलसी के पौधे के सामने दीप जलाने और उनकी माला बनाकर भगवान विष्णु को अर्पित करने से पापों का नाश होता है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

 

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धर्म-ग्रंथों में यह कहा गया है कि तुलसी के बिना भगवान की पूजा को पूर्ण नहीं माना जाता है। इसके साथ आयुर्वेद शास्त्र में यह बताया गया है कि घर जो वातावरण को शुद्ध करती है और रोगों को दूर करती है। तुलसी पूजा से न केवल आध्यात्मिक शांति मिलती है, बल्कि इस पौधे में कई औषधीय गुण भी होते हैं। जो बिमारियों से लड़ने में सहायता करते हैं।

देवी तुलसी की पौराणिक कथा

देवी तुलसी से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, तुलसी जालंधर नामक दानव की पत्नी थीं। जालंधर ने अपनी तपस्या और शक्ति के बल पर देवताओं को हराकर तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया। वहीं तुलसी भगवान विष्णु की उपासना में लीन रहती थीं और उनकी पवित्रता के कारण जालंधर को कोई पराजित नहीं कर सकता था।

 

जब देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी, तो उन्होंने एक चाल चली। भगवान विष्णु ने जालंधर का वेश धारण कर तुलसी के पास गए और उनके पतिव्रता तप को भंग किया। जब तुलसी को इस बात का पता चला, तो उन्होंने क्रोधित होकर भगवान विष्णु को श्राप दिया कि वह पत्थर बन जाएंगे। भगवान विष्णु ने तुलसी से कहा कि उनका श्राप वरदान स्वरूप है और वह भगवान शालिग्राम के रूप में पूजे जाएंगे। तुलसी माता ने बाद में भगवान विष्णु से क्षमा मांगी और उनके चरणों में समर्पित हो गईं। इस प्रकार तुलसी को भगवान विष्णु की पत्नी के रूप में स्थान मिला।

 

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तुलसी पूजा और एकादशी का संबंध

भगवान विष्णु ने तुलसी को यह भी आशीर्वाद दिया कि बिना तुलसी के न तो कोई भोग और न ही किसी की पूजा स्वीकार करेंगे। इसलिए एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु की आराधना के साथ-साथ तुलसी माता की भी उपासना का विधान। इस दिन तुलसी के पत्तों को भगवान विष्णु को अर्पित करने से विशेष पुण्य मिलता है। यह माना जाता है कि तुलसी माता भगवान विष्णु के भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। हालांकि, इस बात का ध्यान रखें कि एकादशी के दिन तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए और न ही पौधे में जल अर्पित करना चाहिए।

 

Disclaimer- यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। Khabargaon इसकी पुष्टि नहीं करता।

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